क्या संघर्ष के बिना सफलता मिल सकती है? देश की सबसे बड़ी बायोफार्मा कंपनी बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ की कहानी में इस सवाल का जवाब छिपा है. आज दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं की Forbes लिस्ट में शामिल किरण मजूमदार शॉ को अपने करियर की शुरुआत में सिर्फ 'महिला' होने के कारण नौकरी नहीं मिली. उन्होंने अपनी कंपनी बनाकर शुरुआत की और आज बायोकॉन का मार्केट कैप करीब 37000 करोड़ रुपये है.

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नौकरी की तलाश

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 'जब किरण मजूमदार शॉ नौकरी की तलाश कर रही थीं, तो सभी ने उन्हें महिला होने के कारण 'मना' किया.' ये 1978 की बात है, जब वे 25 साल की उम्र में ऑस्ट्रेलिया से ब्रूइंग (किण्वन की प्रक्रिया, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर शराब बनाने में होता है) में मास्टर्स की डिग्री लेकर वापस भारत आईं थीं. उनके पास योग्यता होने के बावजूद भारत की जिन बीयर कंपनियों में उन्होंने आवेदन किया, सभी ने कहा कि 'उन्हें लेना संभव नहीं है.' 

किरण मजूमदार शॉ ने बीबीसी को बताया, 'उन्होंने स्वीकार किया कि ब्रूवर के रूप में किसी महिला को हायर करने में वे सहज नहीं हैं.' भारत में कहीं काम नहीं मिलने पर उन्हें विदेश का रुख करना पड़ा और यहीं से तकदीर ने ऐसा खेल खेला कि कुछ सालों बाद उन्होंने अपने फार्मास्युटिकल्स कारोबार 'बायोकॉन' की स्थापना की.

बायोकॉन का जन्म

आज इस कंपनी का मार्केट कैप 37000 करोड़ रुपये से अधिक है और वे फोर्ब्स की सूची में दुनिया की 100 सर्वाधिक शक्तिशाली महिलाओं में हैं. वे भारत की एक मात्र महिला हैं, जो अपने दम पर अरबपति बनीं. उनका जन्म बेंगलुरू के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ.

जब उन्हें भारत में काम नहीं मिला तो उन्होंने स्कॉटलैंड में ब्रूवर की नौकरी कर ली. यहां उनकी मुलाकात आइरिश उद्यमी लेस्ली औचिनक्लॉस से हुई. लेस्ली भारत में फार्मास्युटिकल्स कारोबार शुरू करना चाहती थीं और वे मजूमदार से बेहद प्रभावित थीं. उन्होंने मजूमदार से उनका पार्टनर बनने और कारोबारी को लीड करने के लिए कहा.

मजूमदार ने शुरुआत में तो मना किया. वे बताती हैं, 'मैंने उनसे कहा, मैं अंतिम व्यक्ति हूं, जिसे उन्हें ये ऑफर देना चाहिए क्योंकि मेरे पास बिजनेस का कोई अनुभव नहीं है और मेरे पास निवेश करने के लिए एक भी रुपया नहीं है.' लेकिन लेस्ली ने आखिरकार उन्हें मना ही लिया और 1978 में बायोकॉन का जन्म हुआ. 

गैरेज से हुई शुरुआत

किरण मजूमदार ने कारोबार की शुरुआत गैरेज से की और अपनी बचत के 150 डॉलर इसमें निवेश किए. उस समय एक डॉलर की कीमत करीब 8.5 रुपये के बराबर थी. इस तरह उन्होंने करीब 1200 रुपये से कारोबार शुरू किया. एक बार फिर उनका जेंडर उनके लिए बाधा बना. कोई भी एक महिला के साथ काम करना नहीं चाहता था. उन्होंने बताया, 'सिर्फ पुरुष ही नहीं, यहां तक कि महिलाएं भी एक महिला के साथ काम करना नहीं चाहती थीं. वे गैरेज में आते और मुझे देखते. उन्हें लगता कि मैं यहां सेकेट्री हूं.' 40 उम्मीदवारों से मिलने के बाद वह अपने पहले कर्मचारी को हायर कर सकीं और वे था एक रिटायर गैरेज मैकेनिक.

कारोबार के लिए पूंजी जुटाना दूसरी चुनौती थी, क्योंकि बैंक कारोबार शुरू करने के लिए लोन देने को तैयार नहीं थे. उन्होंने बताया, 'मेरी उम्र सिर्फ 25 साल थी, इसलिए बैंकों को लगा कि मैं एक लड़की हूं, जो ऐसा कारोबार शूरू करना चाहती है, जिसके कोई नहीं समझता है.' आखिरकार 1979 में एक बैंकर उन्हें लोन देने के लिए तैयार हो गए. ये उनके संघर्ष की कहानी है. इसके बाद जो हुआ वो दुनिया जानती है, क्योंकि वो बायोकॉन की सफलता की कहानी थी. बायोकॉन अब पूरी दुनिया में छा जाने के लिए तैयार थी.