हिमालय रेंज में अब भूकंप और भूस्खलन की मैपिंग करना अब काफी आसान होगा. इसके लिए निसार सेटेलाइट की मदद ली जाएगी. निसार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई SUV के आकार की आगामी सेटेलाइट है. ये सेटेलाइट एक टेनिस कोर्ट के लगभग आधे क्षेत्र में 0.4 इंच से भी छोटी किसी वस्तु की गतिविधि का अवलोकन करने में सक्षम होगा. इसकी मदद से डेटा इकट्ठा किया जाएगा. हर 12 दिनों में इकट्ठे किए गए डेटा का वैज्ञानिक अध्‍ययन करेंगे.

कैसे होगी मैपिंग 

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इसरो-राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर के निदेशक प्रकाश चौहान ने कहा कि जियोसाइंस कम्युनिटी इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए कर सकती है कि हिमालय के विभिन्न हिस्सों में तनाव कैसे बन रहा है? उन्होंने कहा कि ये दो फ्रीक्वेंसी बैंड एक साथ उच्च-रिजॉल्यूशन, उपग्रह से सभी मौसम का डेटा प्रदान करेंगे, जिसके सूर्य-समकालिक कक्षा (sun-synchronous orbit) का पालन करने की उम्मीद है और जनवरी 2024 में इसे लॉन्च किया जाएगा.

NISAR, अभूतपूर्व नियमितता के साथ हिमालय में सबसे अधिक भूकंप-प्रवण क्षेत्रों (Earthquake Prone Area) का मानचित्रण करेगा. इससे जो डेटा उत्पन्न होगा, वह संभावित रूप से भूमि के धंसने की अग्रिम चेतावनी दे सकता है, जैसा कि हाल ही में जोशीमठ, उत्तराखंड में देखा गया था, साथ ही उन स्थानों की ओर इशारा करता है जो अभी भूकंप से सबसे अधिक जोखिम में हैं.

मैपिंग से क्या होगा फायदा ?

जियोसाइंस कम्युनिटी इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए कर सकती है कि हिमालय के विभिन्न हिस्सों में दिक्कतें कैसे पैदा हो रही है. हिमालय विश्व की सबसे नई पर्वतमालाओं में से एक है जिसके कई हिस्सों में आज भी क्षरण जारी है. कई हिस्सों में होने वाले भू-स्खलन से हिमालय के तमाम हिस्सों में आपदा का जोखिम बना हुआ है.

इस प्रणाली के सफल उपयोग से हिमालय के ऐसे कई हिस्सों में होने वाले तनाव के बारे में अधिक जानकारी मिल सकती है. इससे प्राप्त होने वाले डाटा से हिमालय के कई ऐसे रहस्य उजागर हो सकते हैं जिससे आगामी योजनाओं को बनाने में सहायता मिल सकती है. बता दें कि भारतीय प्लेट हिमालय बनाने वाली यूरेशियन प्लेट से टकराई थी और ये आज भी लगातार इसे ऊपर की ओर धकेलती रही है.

हिमालय भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र

हिमालय न केवल दुनिया के सबसे ऊंचे और नए पहाड़ है बल्कि ये दुनिया में सबसे अधिक मानवीय प्रभावित पर्वतीय क्षेत्रों में से भी एक है. इस पर्वत शृंखला में इतने लोग रहते हैं जीतने दुनिया कि किसी अन्य पर्वत शृंखला में नहीं रहते. यहां से उत्तर भारत की कई महत्वपूर्ण नदियां निकलती है. सिंधु,गंगा और ब्रह्मपुत्र जो उत्तर-पश्चिम, उत्तर और पूर्वोत्तर भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी प्रणालियाँ है, वो तीनों हिमालय से ही निकलती है. ये नदी प्रणालियां भारत के आर्थिक,सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण आधार है.

निसार की भूमिका और कार्य

निसार नासा-इसरो-एसएआर (NASA- ISRO- SAR) का संक्षिप्त नाम है. SAR, सिंथेटिक एपर्चर रडार (Synthetic Aperture Radar) को बतलाता है जिसका उपयोग नासा द्वारा पृथ्वी की सतह में होने वाले परिवर्तनों को मापने में किया जाएगा.यह उच्च-रिजॉल्यूशन छवियों को प्राप्त करने वाली एक तकनीक को संदर्भित करता है. अपनी सटीकता के कारण यह बादलों और अंधेरे को भी भेदने में सक्षम है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी मौसम में दिन और रात, किसी भी समय डेटा एकत्र करने में सक्षम है.यह अपने तीन-वर्षीय मिशन के दौरान हर 12 दिनों में पृथ्वी की सतह का चक्कर लगाकर पृथ्वी की सतह, बर्फ की चादर, समुद्री बर्फ के दृश्यों का चित्रण करेगा.

निसार में नासा और इसरो की भूमिका और लक्ष्य

इसरो द्वारा स्पेसक्रॉफ्ट बस (अंतरिक्षयान बस), दूसरे प्रकार के रडार (जिसे S- बैंड रडार कहा जाता है), लॉन्च वाहन और संबद्ध लॉन्च सेवाएंँ उपलब्ध कराई जाएंगी. वहीं नासा, उपग्रह में प्रयोग किये जाने हेतु एक रडार, विज्ञान डेटा, जीपीएस रिसीवर और एक पेलोड डेटा सब-सिस्टम के लिये उच्च दर संचार उपतंत्र प्रदान करेगा.निसार, नासा द्वारा लॉन्च किये गए अब तक के सबसे बड़े रिफ्लेक्टर एंटीना (Reflector Antenna) से लैस होगा. निसार के हिमालय में होने वाले प्रयोग से इस क्षेत्र का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जा सकेगा और इससे हिमालय की बदलती संरचना की पूर्ण निगरानी की जा सकेगी. निसार भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ऊंची उड़ान है जिसकी वजह से भारत के भौगोलिक क्षेत्र का उचित अध्ययन किया जा सकेगा.

रिपोर्ट- PBNS

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