ढांचागत क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये या उससे अधिक की 369 परियोजनाओं की लागत 3.58 लाख करोड़ रुपये बढ़ गयी है. इसका कारण विभिन्न समस्याओं के कारण परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हो रही है. एक रिपोर्ट में यह कहा गया है. सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये और उससे अधिक की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर नजर रखता है. मंत्रालय की सितंबर 2018 के लिये ताजा रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘ढांचागत क्षेत्र की 1,420 परियोजनाओं की मूल लागत 18,05,667.72 करोड़ रुपये थी और उनके पूरा होने की संभावित लागत बढ़कर 21,63,672.09 करोड़ रुपये हो गयी है. अर्थात कुल लागत में 3,58,004.37 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है जो मूल लागत से 19.83 प्रतिशत अधिक है.’’

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369 परियोजनाओं की लागत बढ़ी

इन 1,420 परियोजनाओं में से 369 में लागत बढ़ी है और 366 को पूरा करने के समय में बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर, 2018 तक इन परियोजनाओं पर खर्च 7,83,503 करोड़ रुपये है जो परियोजनाओं की संभावित लागत का 36.21 प्रतिशत है. हालांकि इसमें कहा गया है कि परियोजनाओं के पूरा होने के लिये ताजा कार्यक्रम के आधार पर क्रियान्वयन में देरी वाली परियोजनाओं की संख्या कम होकर 300 पर आ गयी है. विलम्ब वाली 366 परियोजनाओं में से 100 में एक से 12 महीने की देरी हुई है, वहीं 69 में 13 से 24 महीने, 91 में 25 से 60 महीने तथा 106 परियोजनाओं में 61 महीने और उससे अधिक की देरी हुई है. रिपोर्ट के अनुसार इन परियोजनाओं में औसतन 45.95 महीनों की देरी हुई है.

 

जमीन अधिग्रहण में हुई देरी

परियोजना क्रियान्वयन एजेंसियों के अनुसार परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी के कारणों में जमीन अधिग्रहण में विलम्ब, वन मंजूरी तथा उपकरण की आपूर्ति आदि हैं. इसके अलावा कोष बाधा, अचानक से आयी भौगोलिक समस्याएं, खनन स्थिति, निर्माण कार्यों में धीमी प्रगति, श्रम की कमी, माओवादी समस्या, अदालती मामले, ठेका संबंधी मामले, कानून व्यवस्था की स्थिति समेत अन्य मसले हैं.