5% से नीचे आया भारत का गरीबी स्तर, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में हो रही प्रगतिः नीति आयोग
नीति आयोग के CEO बी.वी.आर. सुब्रमण्यम ने कहा कि नवीनतम घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Latest Household Consumer Expenditure Survey) से संकेत मिलता है कि भारत का गरीबी स्तर 5 प्रतिशत से नीचे गिर गया है.
नीति आयोग के CEO बी.वी.आर. सुब्रमण्यम ने कहा कि नवीनतम घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Latest Household Consumer Expenditure Survey) से संकेत मिलता है कि भारत का गरीबी स्तर 5 प्रतिशत से नीचे गिर गया है. इसके साथ ही ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोग अधिक समृद्ध हो रहे हैं. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च 2011-12 की तुलना में 2022-23 में दोगुना से अधिक हो गया है, जो देश में समृद्धि के बढ़ते स्तर को दर्शाता है.
प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च हुआ दोगुना नीति आयोग के CEO ने कहा कि उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण सरकार द्वारा उठाए गए गरीबी उन्मूलन उपायों की सफलता को भी दर्शाता है. सर्वेक्षण में जनसंख्या को 20 अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया और आंकड़ों से पता चला कि सभी श्रेणियों के लिए औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 3,773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,459 रुपये है. देश में गरीबी केवल 0-5 प्रतिशत निचले 0-5 प्रतिशत वर्ग का औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 1,373 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2,001 रुपये आंका गया है. नीति आयोग के सीईओ ने कहा, "अगर हम गरीबी रेखा को लें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के साथ आज की दर तक बढ़ाएं, तो हम देखेंगे कि सबसे निचले 0-5 प्रतिशत वर्ग की औसत खपत लगभग समान है. इसका मतलब है कि देश में गरीबी केवल 0-5 प्रतिशत समूह में है. यह मेरा आकलन है. लेकिन अर्थशास्त्री इसका विश्लेषण करेंगे और बिल्कुल सही आंकड़े सामने लाएंगे. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लगभग 2.5 गुना बढ़ा खपत एनएसएसओ का अनुमान 1.55 लाख ग्रामीण परिवारों और 1.07 लाख शहरी परिवारों से एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित है. सुब्रमण्यम ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत लगभग 2.5 गुना बढ़ गई है. इससे पता चलता है कि देश में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रगति हो रही है.ग्रामीण क्षेत्रों में खपत हो रही ज्यादा
सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खपत शहरी क्षेत्रों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, जिससे दोनों क्षेत्रों के बीच असमानताएं कम हो रही हैं. सर्वेक्षण में सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभ को भी शामिल किया गया है, जिसने उन गरीब परिवारों की खपत में योगदान दिया है, जिन्हें अपने बच्चों के लिए मुफ्त खाद्यान्न और साइकिल और स्कूल यूनिफॉर्म जैसे सामान मिले हैं.
दूध,फल और सब्जियों पर खर्च कर रहे लोग सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2011-12 में अंतर 84 प्रतिशत था और 2022-23 में घटकर 71 प्रतिशत हो गया है. 2004-05 में यह अंतर 91 प्रतिशत था. एनएसएसओ सर्वेक्षण देश में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवारों के कुल खर्च में अनाज और भोजन की खपत की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय गिरावट का भी संकेत देता है. इसका मतलब है कि लोग अतिरिक्त आय के साथ समृद्ध हो रहे हैं. इस बढ़ी हुई समृद्धि के साथ वे भोजन के अलावा अन्य चीजों पर अधिक खर्च कर रहे हैं. यहां तक कि भोजन में भी, अधिक दूध पी रहे हैं, फल और अधिक सब्जियां खा रहे हैं. सीपीआई मुद्रास्फीति में भोजन का योगदान कम होगा और शायद पहले के वर्षों में भी कम था. इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा था और शायद कम है, क्योंकि मुद्रास्फीति में भोजन का प्रमुख योगदान रहा है.