लौट आएंगे रुपये के 'अच्छे दिन'? अमेरिका जल्द ले सकता है भारत के लिए यह फैसला
अमेरिका का मानना है कि भारत ने पिछले कुछ समय में ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है और अमेरिका की चिंता कम हुई है.
किसी भी देश की करेंसी पॉलिसी और फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी पर शक होने पर अमेरिका उस देश को करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में डाल देता है और फिर आर्थिक विशेषक उस देश की हर आर्थिक गतिविधि पर नजर रखते हैं. इस लिस्ट से तय होता है कि अंडर स्कैनिंग देश में निवेश करना कितना सुरक्षित और फायदे का सौदा है या नहीं. भारत के लिए यह अच्छी खबर है कि अमेरिका इस लिस्ट से भारत को हटाने पर विचार कर रहा है.
इसी साल किया था लिस्ट में शामिल
अमेरिका का मानना है कि भारत ने पिछले कुछ समय में ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है और अमेरिका की चिंता कम हुई है. अमेरिका के आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में निवेश के अच्छे अवसर मौजूद हैं. भारत को इसी साल अप्रैल के महीने में इस निगरानी सूची में डाला गया था. हालांकि, जब करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में भारत को शामिल किया गया था, तो उस समय भारत ने इसका विरोध किया था.
इसलिए भारत के लिए राहत
अमेरिका के ट्रेजरी विभाग ने बुधवार को अपनी छमाही रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट जारी करते हुए अमेरिका ने कहा कि अगर भारत में अर्थव्यवस्था की यही स्थिति रहती है और भारत अपनी फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी के इसी रुख पर कायम रहता है तो अगली छमाही रिपोर्ट जारी करने से पहले उसे इस लिस्ट से हटाया जा सकता है.
अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत की आर्थिक गतिविधियों में बदलाव आया है. उसके केंद्रीय बैंक की जून 2018 तक विदेशी मुद्रा खरीद शुद्ध रूप से कम होकर 4 अरब डॉलर रह गई. यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.2 प्रतिशत के बराबर है. वित्त मंत्रालय ने कहा कि 2017 की तुलना में इसमें काफी बदलाव आया है. इस दौरान पहली तीन तिमाहियों (सितंबर तक) में भारत की विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद जीडीपी के दो प्रतिशत से अधिक थी.
साल के पहले छह महीने के दौरान विदेशी निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार से निकासी की. पहले छह महीने में रुपया डॉलर के मुकाबले करीब सात प्रतिशत और वास्तविक आधार पर चार प्रतिशत से अधिक गिर गया है.
अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष (यानी अमेरिका का व्यापार घाटा) जून 2018 तक 23 अरब डॉलर है लेकिन भारत के चालू खाते का घाटा जीडीपी का 1.9 प्रतिशत हो गया है. चालू खाते के घाटे के बढ़ने की वजह सोना और पेट्रोलियम पदार्थों का आयात है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत तीन में से सिर्फ एक मानदंड को पूरा कर पाया है. यदि अगली रिपोर्ट तक भारत का यह रुख बरकरार रहता है तो उसे निगरानी सूची से हटा दिया जायेगा.
लिस्ट में शामिल होने से होता है नुकसान
अमेरिका ने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपये के लगातार गिरते स्तर के बाद भी वहां के शीर्ष बैंक भारतीय रिजर्व बैंक ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया, बल्कि करेंसी मार्केट को मजबूत करने के लिए कई जरूरी कदम उठाए. अमेरिका की इस निगरानी लिस्ट में शामिल होने पर किसी भी देश की शाख को नुकसान होता है और उसकी मुद्रा में भी गिरावट आती है. अप्रैल में भारत को जब इस लिस्ट में शामिल किया गया था, तब भारत के साथ चीन, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड को शामिल किया गया था.