जिस देश में विदेशों से लोग इलाज करवाने के लिए आते हैं, जहां पर मेडिकल टूरिज्म पर नए-नए दावे गढ़े जाते हैं, उसी देश की स्वास्थ्य व्यवस्था आज वेंटिलेटर पर है. क्योंकि देश में 82 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों कमी है. फिर चाहे सर्जन हो या फिर बच्चों के डॉक्टर. सरकारी अस्पतालों में मरीज भगवान भरोसे हैं. ये हालात तब और भी गंभीर लगते हैं जब देश ने 150 से ज्यादा बच्चों को मौत के मुंह में जाते हुए देखा हो और जिसका कारण दिमागी बुखार को बताया जा रहा है.

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क्या आपने कभी सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाया है या कभी सरकारी अस्पताल के चक्कर काटे हैं. अगर हां, तो आप जानते होंगे कि मरीजों के लिए ओपीडी की पर्ची लेने से शुरू होने वाली जद्दोजहद, डॉक्टर के पर्चे और फिर दवा की लाइन तक आते-आते हिम्मत दम तोड़ देती है. मरीजों के साथ आए परिजन भी खुद मरीज जैसे या कहें कि बीमार दिखने लगते हैं. और ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इन अस्पतालों में मरीजों का रखवाला खुद ऊपरवाला है.

क्या कहती है नीति आयोग की रिपोर्ट

हाल ही में हेल्थ और डॉक्टरों पर नीति आयोग की रिपोर्ट में इस पर चिंता जाहिर की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में डॉक्टरों और नर्सों की मौजूदगी का बुरा हाल है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हालात और खराब हैं. इन केंद्रों में स्टाफ और नर्सों दोनों की भारी कमी है. 6 राज्यों में 40% मेडिकल स्टाफ के पद खाली हैं. दिल्ली में भी 46% पद खाली पड़े हैं.

जिला अस्पतालों में डॉक्टरों की भी भारी कमी है. केरल, तमिलनाडु और पंजाब को छोड़ पूरे देश के हालात खराब हैं. छत्तीसगढ़ में 70%, उत्तराखंड में 68% डॉक्टरों के पद खाली हैं. बिहार में डॉक्टरों के 59% पद खाली पड़े हैं. राजधानी दिल्ली में 40% विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद खाली हैं.

 

देश में फिलहाल 25 से 30 हजार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और करीब 6 हजार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. नियमों के मुताबिक, हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 4 विशेषज्ञ डॉक्टर, 7 नर्सिंग स्टाफ, 1 लैब टेक्नीशियन और 1 फार्मासिस्ट होना चाहिए. लेकिन इन केंद्रों के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. डॉक्टर और दूसरे स्टाफ की कमी तो है ही, यहां पर जो ड्यूटी पर होते हैं उन्हें तलाशना मरिजों और उनके परिजनों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता है. 

ये हालात तब हैं जब देश में मेडिकल टूरिज्म तेजी से बढ़ रहा है. लोग विदेशों से भारत इलाज करवाने आ रहे हैं. जब देश के अधिकांश लोगों के लिए प्राइवेट अस्पतालों में इलाज दूर की कौड़ी है. तब सवाल ये कि सरकारी अस्पतालों में इलाज की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को दवा कौन देगा, इलाज कौन करेगा.

ये हालात इसलिए हैं क्योंकि- 

- देश में डॉक्टरों की भारी कमी है.

- अस्पतालों में 82% स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स हैं ही नहीं.

- सर्जन, स्त्री-रोग विशेषज्ञों की अस्पतालों में कमी.

- फिजिशियन और बाल-रोग विशेषज्ञों की भी भारी कमी. 

- सामुदायिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में हालात और खराब हैं.

- लेबोरेटरी टेक्नीशियन के भी 40% पद खाली हैं.

- नर्स और फार्मासिस्ट भी जरूरत से 12-16% तक कम हैं.