हर्षद मेहता शेयर घोटाले से जुड़े एक मामले में मुंबई की एक अदालत ने हर्षद के भाई अश्विन मेहता समेत नौ अभियुक्तों को बरी कर दिया है. इस मामले में इन लोगों पर 1992 में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के साथ 105 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप था. इस मामले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत की न्यायाधीश शालिनी फंसाल्कर जोशी ने पिछले सप्ताह इस निर्णय में कहा कि अदालत को यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि अभियोजन पक्ष इस मामले में आरोपों से आगे कुछ भी साबित करने में नाकाम रहा है.

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अश्विन मेहता के अलावा एसबीआई के सिक्‍योरिटन डिपार्टमेंट के प्रभारी राम सीतारमन और सात अन्य अधिकारी- भूषण राउत, सी रवि कुमार, एस सुरेश बाबू, पी मुरलीधरन, अशोक अग्रवाल, जनार्दन बंधोपाध्याय और श्याम सुंदर गुप्ता को बरी किया गया है. अभियोजन पक्ष के मुताबिक, बैंक के अधिकारियों ने एसबीआई कैप्स (एसबीआई कैपिटल मार्केट) के साथ धोखाधड़ी करने के लिए मेहता बंधुओं के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा. उन्होंने 1991 से 1992 के बीच प्रतिभूतियों के लेनदेन में बैंक के साथ 105 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की.

मामले में जांच एजेंसी सीबीआई ने कहा कि एसबीआई कैप्स ने हर्षद मेहता के माध्यम से धन के लेन देन के 24 सौदे किए थे. इनके माध्यम से धन की हेराफेरी की गयी थी.जिससे बैंक को कथित तौर पर नुकसान हुआ. सीबीआई की ओर से दावा किया गया था कि बैंक अधिकारियों की जानकारी के बिना पूंजी को दूसरी जगह नहीं भेजा जा सकता था.

हालांकि, अदालत ने बचाव पक्ष की उस दलील को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कहा गया था कि धन की हेराफेरी बैंक की मुख्य शाखा से बदला गया था और इसलिए प्रतिभूति विभाग के इन अधिकारियों के खिलाफ आरोप नहीं बनता.

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की बात में बहुत सी बाते अनुत्तरित हैं और वह बीच की कड़ियों को जोड़ने में विफल रहा है. हो सकता है कि ऐसा मुख्य आरोपी हर्षद मेहता की मौत और बहुत से अभियुक्तों के बरी होने के कारण हुआ हो. पर तथ्य यह है कि षडयंत्र का यह अभियोग सिद्ध नहीं किया जा सका है. मेहता की मौत के बाद 2001 के उसके खिलाफ मामला बंद कर दिया गया था.