सिंगल यूज प्लास्टिक (Plastic Ban) के इस्तेमाल पर रोक लगने से बांस से बने उत्पादों का नया मार्केट बनकर उभर रहा है. अब बांस की क्रॉकरी का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है, जिसका सीधा फायदा किसानों को मिल रहा है. उधर, बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) ने भी नई योजनाएं तैयार की हैं. बांस को हरा सोना यानी ग्रीन गोल्ड (Green Gold) कहा जाता है. 

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बिहार के बाढ़ ग्रस्त इलाके कोसी में तो बांस की खेती को बड़े पैमाने पर किए जाने का प्लान तैयार किया गया है, ताकि बाढ़ के समय किसानों को फसल चौपट होने का खतरा न रहे. बांस की खेती के लिए वन प्रमंडल सहरसा ने पूरी तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए प्रथम चरण में बीज लगाने को लेकर नर्सरी में मिट्टी

भराई कार्य को भी पूरा कर लिया गया है.

प्रथम चरण में नर्सरी में राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) के अंतर्गत बांध पौधशाला 2019-20 के तहत कहरा प्रखंड के सहरसा बांस पौधशाला में 16 हजार पौधा तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित है. बांस की खेती से किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु को सुदृढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान होगा.

प्लास्टिक बैन से बांस को फायदा

बांस की खेती के लिए कोसी क्षेत्र की जलवायु एवं भौगोलिक स्थिति बेहद उपयुक्त एवं लाभकारी माना जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, बांस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, बड़े-बड़े होटलों में फर्नीचर, टिम्बर मर्चेट से लेकर संस्कृति से जुड़े कार्यो तक बांस का उपयोग होता है. इसके साथ-साथ बांस को खाया भी जाता है. बांस औषधीय गुणों से भरपूर होता है.

राष्ट्रीय बांस मिशन योजना कोसी क्षेत्र के सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, किशनगंज, सीतामढ़ी, मुंगेर, बांका, जमुई, नालंदा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण व शिवहर शामिल है.

राष्ट्रीय बांस मिशन

सहरसा जिला के 10 प्रखंड क्षेत्रों के किसानों को जून एवं जुलाई माह से पौधे का वितरण किया जाएगा. उन्होंने कहा कि नर्सरी में मार्च तक पौधा तैयार हो जाएगा.

बांस की खेती से बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद मिलेगी. इससे भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझौले किसानों और महिलाओं को आजीविका मिलेगी और उद्योग को गुणवत्ता संपन्न सामग्री उपलब्ध हो सकेगी.

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एक एकड़ में 1.5 लाख रुपये की आमदनी

एक एकड़ में 80 से 100 पौधे लगाए जा सकते हैं. जो 4 साल में अपनी परिपक्वता के बाद करीब 1000 से 1500 के बीच बांस तैयार होगा और किसानों को एक लाख से 1.5 लाख रुपये सालाना की आमदनी हो सकती है.