ई-कॉमर्स बाजार पर सरकार ने नई राष्ट्रीय ई-वाणिज्य नीति का मसौदा जारी किया है. इसमें सीमा-पार डेटा प्रवाह पर रोक के लिए कानूनी और तकनीकी ढांचा तैयार करने एवं कंपनियों के लिये संवेदनशील आंकड़ों को स्थानीय तौर पर संग्रहण, प्रसंस्करण करने और उन्हें दूसरे देशों में रखने को लेकर कई तरह की शर्तों का प्रावधान किया गया है. 

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मसौदा नीति में कहा गया है कि सार्वजनिक स्थानों पर लगाए गए इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) उपकरणों के जरिए डेटा संग्रह और ई-वाणिज्य मंचों, सोशल मीडिया, सर्च इंजन के जरिए भारत में एकत्रित उपयोगकर्ताओं की जानकारी सहित खास स्रोतों से सीमा-पार आंकड़ों के प्रवाह को प्रतिबंधित करने का आधार तैयार करने के लिए रूपरेखा ढांचा बनाया जाएगा.

42 पृष्ठ के इस मसौदे में ई-वाणिज्य तंत्र के छह व्यापक विषयों - डेटा, अवसंरचना विकास, ई-वाणिज्य प्लेटफॉर्म, विनियमन संबंधी मुद्दों, घरेलू डिजिटल अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने और ई-वाणिज्य के जरिए निर्यात गतिविधियों को बढ़ावा देने- को शामिल किया गया है.

'राष्ट्रीय ई-वाणिज्य नीति- भारत के विकास के लिए भारतीय डेटा' शीर्षक से जारी मसौदे में कहा गया है, "आज के समय में यह आम धारणा हो गयी है कि डेटा नया ईंधन है. तेल के विपरीत डेटा का प्रवाह एक-दूसरे देश में बिना किसी रोक-टोक के होता है. विदेश में इसे संरक्षित किया जा सकता है या इसका प्रसंस्करण किया जा सकता है और प्रसंस्करण करने वाला सारी अहम जानकारी को अपने पास रख सकता है. इसलिए भारत के डेटा का इस्तेमाल देश के विकास में होना चाहिए और भारतीय नागरिकों एवं कंपनियों को डेटा के मौद्रीकरण का आर्थिक लाभ मिलना चाहिए." 

नीति के मसौदे के मुताबिक भारत में किसी संवेदनशील डेटा को एकत्र करने या प्रसंस्कृत करने एवं दूसरे देश में उसे संरक्षित करने वाली कंपनियों को कुछ खास शर्तों का पालन करना होगा. इन शर्तों में कहा गया है कि विदेश में संरक्षित ऐसे किसी भी डेटा को ग्राहक की सहमति के बावजूद भी देश के बाहर किसी अन्य कंपनी के साथ साझा नहीं किया जा सकता है.

मसौदे में कहा गया है कि डेटा को किसी भी मकसद से किसी तीसरे पक्ष को उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है. ऐसे आंकड़ों को भारतीय अधिकारियों की अनुमति के बगैर दूसरे देशों की सरकारों से भी साझा नहीं किया जा सकता है. 

उसके मुताबिक, "लोगों के व्यापक हितों की पूर्ति के लिए सामुदायिक डेटा को स्टार्टअप और कंपनियों से साझा करने के लिए उचित ढांचा विकसित किया जाएगा. व्यापक सार्वजनिक हित या लोगों का भला एक विकसित अवधारणा है. इस कार्य के लिए स्थापित किया जाने वाला 'डेटा न्यायाधिकरण' इस चीज को लागू करेगा." 

ई-वाणिज्य मंचों के बारे में इसमें कहा गया है कि नीति का लक्ष्य केवल मंच के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आमंत्रित करने एवं प्रोत्साहित करना है. 

नीति के मसौदे में कहा गया है, "विदेशी निवेश वाले ई-वाणिज्य प्लेटफॉर्म के पास मंच पर बेचे जाने वाले सामान का मालिकाना हक या नियंत्रण नहीं हो सकता है. इस तरह विदेशी निवेश को विभिन्न ब्रांड के उत्पाद बेचने वाले छोटे खुदरा कारोबारियों के लिए खतरे के तौर पर नहीं देखा जाएगा." 

उसमें कहा गया है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म किसी एक या कुछ विक्रेता या कारोबारी के साथ भेदभाव का कारोबारी मॉडल या रणनीति नहीं अख्तियार कर सकते हैं. इस मसौदे में कुछ ऐसे कदम प्रस्तावित हैं, जिन्हें सभी ई-वाणिज्य वेबसाइटों या एप को लागू करना होगा. 

इसमें नकली उत्पादों, प्रतिबंधित वस्तुओं एवं पायरेटेड सामग्रियों की बिक्री को रोकने के लिए भी कुछ उपाय किये गए हैं. उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा तैयार किया जा रहा यह दूसरा मसौदा है क्योंकि वाणिज्य विभाग की ओर से तैयार पहले मसौदे को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. 

इस क्षेत्र में कर से जुड़े मुद्दे पर नीति में कहा गया है कि बदलती डिजिटल अर्थव्यवस्था को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक संचरण पर आयात शुल्क नहीं लगाये जाने की वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा की जानी चाहिये. 

ई- वाणिज्य के जरिये निर्यात प्रोत्साहन के मामले में इसमें कहा गया है कि निर्यात शिपमेंट को इस माध्यम के जरिये प्रोत्साहन देने की जरूरत तथा प्रशासनिक जरूरतों को कम करने की जरूरत है. ‘‘कूरियर के जरिये अधिक मूल्य की शिपमेंट भेजने के लिये भारतीय ई-वाणिज्य निर्यात को आकर्षक बनाने के वास्ते मौजूदा 25,000 रुपये की सीमा को बढ़ाया जाना चाहिये.’’