बदली जाएगी खाने-पीने के सामान की पैकिंग, सेहत को लेकर सरकार का बड़ा फैसला
खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग के लिए एल्यूमिनियम, ब्रास, कॉपर, प्लास्टिक और टिन का इस्तेमाल किया जाता है. पैकेजिंग की ज्यादातर चीजें सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं.
सरकार जल्द ही खाने-पीने के सामान की पैकिंग व्यवस्था को बदलने जा रही है. सरकार ने यह कदम लोगों की सेहत को देखते हुए उठाया है. जल्द ही फूड पैकेजिंग का नया नियम आ सकता है. एफएसएसएआई (fssai) इसको लेकर इसी हफ्ते नोटिफिकेशन जारी कर सकती है.
नया नियम लागू होने के बाद खान-पीने की चीजों की पैकेजिंग पूरी तरह बदल जाएगी. मौजूदा नियमों के मुताबिक, खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग के लिए एल्यूमिनियम, ब्रास, कॉपर, प्लास्टिक और टिन का इस्तेमाल किया जाता है. पैकेजिंग की ज्यादातर चीजें सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं. अब पैकेजिंग में शरीर को हानि पहुंचाने वाले खनिज का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. जिस खनिज से किसी भी फूड की पैकेजिंग की जाएगी, उसकी मात्रा तय की जाएगी. साथ ही रिसाइकल किया गया प्लास्टिक भी पैकिंग में प्रयोग नहीं जाएगा.
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के पास पैकेजिंग के नियम थे. बीआईएस पैकेजिंग से ज्यादा लेबलिंग पर ध्यान देता है. बीआईएस की पैकेजिंग के नियम अनिवार्य नहीं थे. लेकिन अब एफएसएसआई के नियम अनिवार्य होंगे.
एफएसएसआई ने फूड पैकेजिंग को तीन हिस्सों में बांट दिया है. पैकेजिंग, लेबलिंग और क्लेम एंड एडवरटाइजमेंट. जिसमें से पैकेजिंग के नियम आने जा रहे हैं, क्लेम एंड एडवरटाइजमेंट के नियम आ गए हैं.
सेहत का ध्यान रखेगी fssai
नए नियमों में साफ लिखा होगा कि जिस भी खनिज का इस्तेमाल पैकेजिंग में हो रहा है उसकी मात्रा क्या होगी. खाने-पीने का कोई भी सामान किसी ऐसी चीज से पैक नहीं होगा, जो सेहत के लिए नुकसानदायक हो. साथ ही नए नियमों के तहत मल्टीलेयर पैकेजिंग की जाएगी, ताकी खाने का सामान सीधे पैकेट के संपर्क में न आ सके. इसके अलावा सेहत का ध्यान रखने के लिए प्रिंटिंग इंक का भी खास ध्यान रखा जाएगा. न्यूज पेपर या किसी भी प्रकार से लिखे हुए कागज से कुछ भी पैक करना गलत होगा.
नए नियम के तहत सस्ते और घटिया किस्म के उत्पाद पैकिंग में इस्तेमाल नहीं किए जा सकेंगे. मिनरल वाटर या पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर ट्रांसपेरेंट और रंगहीन डब्बे में ही पैक होंगे. एक अनुमान के मुताबिक 2020 तक भारत का फूड मार्केट 18 बिलियन डॉलर का होगा. साल 2016 में यह मार्केट 12 अरब डॉलर का है. यही नहीं एफएसएसआई का मानना है कि इससे खाद्य पदार्थों की बर्बादी को भी रोका जा सकेगा.
(सुमन अग्रवाल की रिपोर्ट)