Taxpayers Money: सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा कि टैक्सपेयर्स (करदाताओं) के पैसों का इस्तेमाल करके दिया गया मुफ्त उपहार (फ्री गिफ्ट) सरकार को ‘आसन्न दिवालियापन’ की तरफ ले जा सकता है. इसके साथ ही,शुक्रवार को सु्प्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार के वादे का मुद्दा उठाने वाली याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ के सामने लिस्ट किए जाने को निर्देश दिया. कोर्ट ने उसके समक्ष रखे गए पहलुओं की ‘व्यापक’ सुनवाई की जरूरत जताते हुए कहा कि हालांकि सभी वादों को मुफ्त उपहार (Freebies on taxpayers money) के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है, क्योंकि वे कल्याणकारी योजनाओं या जनता की भलाई के उपायों से संबंधित होते हैं, लेकिन चुनावी वादों की आड़ में वित्तीय जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता है.

मुद्दों पर विचार किये जाने की जरूरत

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खबर के मुताबिक, कोर्ट  (supreme court of india) ने कहा कि ये योजनाएं न सिर्फ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा हैं, बल्कि कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी भी हैं. प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया कि इन याचिकाओं में उठाए गए कुछ शुरुआती मुद्दों पर विचार किये जाने की जरूरत है. न्यायमूर्ति रमण के कार्यकाल का शुक्रवार को आखिरी दिन था और कोर्ट का यह आदेश ‘मुफ्त उपहार’ बनाम ‘कल्याणकारी योजनाओं’ को लेकर जारी बहस के बीच आया है.

करदाताओं के पैसे का गलत इस्तेमाल 

पीठ ने कहा कि मुफ्त सुविधाएं ऐसी स्थिति पैदा कर सकती हैं जहां राज्य सरकार धन की कमी के कारण बुनियादी सुविधाएं प्रदान नहीं कर सकती है. यह राज्य को आसन्न दिवालियापन की ओर धकेल सकती है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस तरह के मुफ्त उपहार की सुविधा प्रदान करके करदाताओं के पैसे का उपयोग केवल अपनी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने और चुनावी संभावनाओं के लिए किया जाता है. कोर्ट ने कहा कि उसके सामने तर्क रखा गया कि ‘एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य’ के मामले में शीर्ष अदालत के दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए 2013 के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है.

चार सप्ताह बाद जुड़ी याचिकाओं को सूचीबद्ध किया जाएगा

पीठ ने कहा कि इसमें शामिल मुद्दों की जटिलताओं और सुब्रमण्यम बालाजी मामले में इस कोर्ट के दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करने के अनुरोध को देखते हुए, हम याचिकाओं के इस समूह को प्रधान न्यायाधीश का आदेश मिलने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं. शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि चार सप्ताह बाद इन याचिकाओं को सूचीबद्ध किया जाएगा. कोर्ट ने 2013 के अपने फैसले में कहा था कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 में निर्धारित मापदंडों की समीक्षा करने और उन पर विचार करने के बाद, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता. पीठ ने कहा,आखिरकार, ऐसा मालूम होता है कि राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों को किसी भी आदेश को पारित करने से पहले व्यापक सुनवाई की जरूरत है.

याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील 

कोर्ट (supreme court) ने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील यह है कि इस तरह के चुनावी वादों का राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है और इसकी परमिशन नहीं दी जा सकती है पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारे जैसे चुनावी लोकतंत्र में, सच्ची शक्ति अंततः मतदाताओं के पास होती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मतदाता ही तय करता है कि कौन सी पार्टी या उम्मीदवार सत्ता में आएगा और वे विधायी कार्यकाल के आखिर में उक्त पार्टी या उम्मीदवार के प्रदर्शन का भी आकलन करते हैं. कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा था कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार (Freebies on taxpayers money) देने की प्रथा से संबंधित ‘गंभीर’ मुद्दे पर विचार होना चाहिए. पीठ ने पूछा था कि केंद्र इस मामले पर सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुला सकता.