बीजेपी के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का आज दिल्ली के एम्स में निधन हो गया. दोपहर 12.07 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली. वे काफी समय से बीमार चल रहे थे और 9 अगस्‍त से एम्‍स में भर्ती थे. जेटली के निधन पर राजनीतिक गलियारे में शोक छा गया है. तमाम राजनीतिक दलों ने उनके निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है. 

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2018 में अरुण जेटली का दिल्‍ली स्थित एम्‍स में किडनी ट्रांसप्‍लांट हुआ. जनवरी, 2019 में डॉक्‍टरों को अरुण जेटली को सॉफ्ट टिशू सर्कोमा होने का पता चला. यह कैंसर का एक रूप था. इसके बाद न्‍यूयॉर्क में उनकी सफल सर्जरी हुई.

अरुण जेटली ने वित्त मंत्री रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था को ऊंचाई देने के लिए कई अहम फैसले लिए थे. 

उनका जन्‍म 28 दिसंबर, 1952 को दिल्‍ली में हुआ था. उनके पिता पेशे से वकील थे. अरुण जेटली ने नई दिल्ली के सेंट जेवियर्स स्कूल से 1957-69 तक पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम किया. उन्‍होंने दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से 1977 में लॉ की पढ़ाई पूरी की. 

 

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पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में प्रवेश

अरुण जेटली लॉ की पढ़ाई के दौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्र नेता भी थे. डीयू में पढ़ाई के दौरान ही वह 1974 में डीयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने.

आपातकाल में गए थे जेल

अरुण जेटली पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में सक्रीय रुप से भाग लेने लगे थे और 1975 में देश में लगे आपातकाल का विरोध करने के पर उन्‍हें 19 महीनों तक नजरबंद रखा गया था. 1973 में वह जयप्रकाश नारायण और राजनारायण द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्‍टाचार विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय रहे. नजरबंदी खत्‍म होने के बाद उन्‍होंने जन संघ पार्टी ज्‍वाइन की.

राजनीतिक जीवन

अरुण जेटली 1977 में दिल्‍ली एबीवीपी के अध्यक्ष और ऑल इंडिया सेक्रेटरी बनाए गए. साल 1980 में उन्हें बीजेपी युवा मोर्चा का अध्‍यक्ष और दिल्‍ली ईकाई का सेक्रेटरी बनाया गया था.

वह पेशे से एक कामयाब वकील थे. 1989 में उन्हें वीपी सिंह की सरकार में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्‍त किए गए. उन्‍होंने बोफोर्स घोटाले की जांच की दस्‍तावेजी प्रक्रिया पूरी की थी.

सन 1991 से अरुण जेटली बीजेपी की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्‍य रहे. 1999 के आम चुनाव में बीजेपी ने उन्‍हें पार्टी प्रवक्‍ता बनाया. 2009 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए और पार्टी ने उन्हें नेता विपक्ष बनाया.

एनडीए की सरकार में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें 13 अक्टूबर, 1999 को सूचना प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया. इसके अलावा पहली बार एक नया मंत्रालय बनाते हुए उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया. कानून मंत्री राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद 23 जुलाई, 2000 को जेटली को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया.

नवंबर 2000 में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया और कानून, न्याय और कंपनी मामले के साथ ही जहाजरानी मंत्रालय भी सौंप दिया गया. भूतल परिवहन मंत्रालय के विभाजन के बाद जहाजरानी मंत्रालय के पहले मंत्री अरुण जेटली ही थे. लेकिन 2002 में इन्होंने अपने सभी पदों से इस्तीफा देते हुए वापस पार्टी के महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता बन गए. 

हालांकि ये फिर 29 जनवरी, 2003 को वाजपेयी सरकार से जुड़ गए और केंद्रीय न्याय एवं कानून और उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री बने. मई, 2004 में एनडीए के चुनाव हारने के बाद जेटली वापस बीजेपी के महासचिव बने और इसके साथ उन्होंने फिर से वकालत भी शुरू कर दी थी.