बाहर के खाने में मिलावटखोरी से सेहत हारी, खुलेआम बिक रही है बीमारी
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 2018-19 में जांच के लिए लिए गए खाने के एक तिहाई नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे.
हम और आप बाहर खाना तो खाते ही हैं, लेकिन ये कैसे पता करें कि जो खाना हम खा रहे हैं, या अपने बच्चों को खिला रहे हैं, वो सुरक्षित है. उसमें कोई मिलावट नहीं की गई है. ये सवाल इसलिए क्योंकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 2018-19 में जांच के लिए लिए गए खाने के एक तिहाई नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे. यानी उनमें मिलावट थी. तो अब कहां जाएं... कहां खाएं... और ये कैसे पता करें कि खाना सुरक्षित है.
हम और आप अक्सर बाहर जाते हैं. बाहर खाना खाते हैं. फिर चाहे सड़क किनारे मिलने वाले चाट-पकौड़े हों या फिर रेस्टोरेंट में मिलने वाला छप्पन भोग. चीजें आसान तब और हो जाती हैं जब खाना मोबाइल ऐप से मंगवाना हो. बस एक क्लिक और खाना कुछ ही देर में आपके घर. लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि हम और आप जो खाना खा रहे हैं, जो खाना बड़े चाव से अपने बच्चों को खिला रहे हैं, वो कितना सुरक्षित है. ये सवाल इसलिए क्योंकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि खाने में बड़े पैमाने पर मिलावटखोरी हो रही है. जरा केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय के इन तथ्यों पर गौर कीजिए-
1. 2018-19 में जांच में खाने के 1/3 नमूने पास नहीं हुए.
2. सबसे ज्यादा मिलावटखोरी उत्तर प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु में देखने को मिली.
3. मध्यप्रदेश और जम्मू-कश्मीर भी ज्यादा पीछे नहीं हैं.
4. उत्तर प्रदेश में खाने के 19,173 नमूने में से 9,403 नमूने फेल हुए.
5. पंजाब में 11,920 नमूने में से 3,403 नमूने मानकों खरे नहीं उतरे.
6. तमिलनाडु में 5,730 नमूने में से 2,601 नमूने जांच में फेल हुए.
7. मध्यप्रदेश के 7,063 नमूने में से 1,352 नमूने गलत पाए गए.
8. जम्मू और कश्मीर 3,600 नमूने में से 701 नमूने मानकों के मुताबिक नहीं पाए गए.
9. 2017-18 में 99,000 नमूनों में 24,000 नमूने जांच में फेल हुए.
10. 2016-17 में 78,000 नमूनों में 18,000 नमूने जांच में फेल हुए.
सरकार ने हालांकि मिलावटखोरों पर नकेल कसते हुए उन पर कार्रवाई भी की है. जुर्माना भी लगाया है और जेल भी भेजा है. लेकिन सरकार की सख्ती मिलावटखोरों पर नाकाफी साबित हो रही है. क्योंकि आंकड़े खुद अपनी ही जुबानी बढ़ती मिलावटखोरी की दास्तान सुनाते दिख रहे-
1. उत्तर प्रदेश में 2017-18 में 8,375 नमूनों में मिलावट पाई गई, जबकी 2018-19 में ये आंकड़ा बढ़कर 9,403 पर पहुंच गया.
2. पंजाब में 2017-18 में 3,053 नमूने मानकों पर खरे नहीं उतरे, वहीं 2018-19 में 3,403 नमूने जांच में फेल हो गए.
3. तमिलनाडु में 2017-18 में 2,461 नमूनों में मिलावट पाई गई, जबकी 2018-19 में ये आंकड़ा बढ़कर 2,601 पर पहुंच गया.
मिलावटखोरी के ये बढ़ते मामले हमारी और आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक तो हैं ही, लेकिन ये अपने आप में कई सवाल भी खड़े करते हैं. सवाल ये कि मिलावटखोरी पर लगाम लगाने वाली सरकारी एजेंसियां क्यों नाकाम साबित हो रही है. सवाल ये भी है लोग आखिर बाहर खाएं तो क्या खाएं, कहां खाएं और ये कैसे पता चलेगा कि जो खाना खा रहे हैं, वो ठीक है. यानी उसमें कोई मिलावट नहीं की गई है. या फिर बाहर खाना खाना ही बंद करना सही होगा. क्योंकि अगर ऐसा है, तो सड़क किनारे की दुकानों से लेकर महंगे महंगे रेस्टोरेंट्स पर भीड़ नहीं दिखेगी. सिर्फ ताला लगा दिखेगा.