Firecrackers History: पटाखों के बिना दिवाली अधूरी है. खुशियां मनाने के लिए दुनियाभर के लोग पटाखों का इस्तेमाल करते हैं. भारत में न्यू ईयर , शादी-ब्याह के मौके से लेकर विशेष कार्यक्रम और दिपावली में पटाखे जलाए जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी शुरुआत कब और कहां हुई और उसे सबसे पहले कहां बनाया गया? पटाखों को लेकर कई कहानियां प्रसिद्ध है. कुछ लोगों का कहना है कि इसकी शुरुआत चीन में छठी सदी के दौरान हुई थी. वहीं कुछ लोग कहते हैं कि गलती से इसका आविष्कार हुआ था. प्रचलित कहानी एक रसोइए की है जो खाना बनाते समय गलती से पोटैशियम नाइट्रेट को आग में फेंक दिया था. इससे एक जोरदार धमाका हुआ था. यही से पटाखे की शुरुआत  हुई.

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पटाखों का आविष्कार किसने किया था? कई इतिहासकारों का मानना ​​है कि आतिशबाजी मूल रूप से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन लिउ यांग, चीन में विकसित की गई थी. ऐसा माना जाता है कि पहले प्राकृतिक "पटाखे" बांस के डंठल थे जो आग में फेंकने पर, बांस में खोखले हवा की जेब के अधिक गर्म होने के कारण धमाके के साथ फट जाते थे. कैसे हुआ था बारूद को इस्तेमाल बारूद की शुरुआत गलती से हुआ था. इसके पीछे की कहानी है कि खाना बना रहे रसोइये ने खाना बनाते समय पोटेशियम नाइट्रेट को आग में फेंक दिया था. आग में फेंकने से बाद उससे रंगीन लपटें निकलने लगी. जब रसोइये ने इसके साथ कोयले और सल्फर का पाउडर भी आग में डाला तो काफी तेज धमाका हुआ. इस तरह बारूद का आविष्कार हुआ था और फिर इसे पटाखों में भरकर उसकी शुरुआत की गई. कैसे हुआ पटाखे का आविष्कार बारूद से पटाखा चीनी सैनिकों ने बनाया था. उन्होंने बारूद को बांस में भरकर पटाखे बनाए थे. वहीं भारत में इसकी शुरुआत 15वीं सदी में हुई थी. बारूद का इस्तेमाल युद्ध में भी किया जाता था. इसकी आवाज से दुश्मनों को भगा दिया जाता था. इसके अलावा चीन में एक और कहानी प्रचलित है जिसमें यह बताया गया है कि लगभग कई साल पहले लोग आग में बांस को डालते थे तो गर्म होने के बाद जब इसकी गांठ तेज आवाज के साथ फटती थी. उस समय चीन के लोगों का मानना था कि बांस के फटने की तेज आवाज से बुरी आत्माएं भाग जाती हैं और बुरे विचारों का भी अंत होता है. इससे घर में सुख-शांति आती है. भारत में पटाखों की शुरुआत भारत में पटाखों की शुरुआत काफी पहले हो गयी थी. महाभारत काल में पटाखों के बारे में सुनने को मिलता है. जिसमें रुक्मिणी और भगवान कृष्ण के विवाह में आतिशबाजी का उल्लेख है. भारत में 15वीं की कई पेंटिंग और मूर्ति में आतिशबाजी और फुलझड़ियां देखने को मिलते हैं. पटाखा नाम कैसे पड़ा 19वीं सदी में एक मिट्टी की छोटी मटकी में बारूद भरकर पटाखा बनाने का ट्रेंड था. बारूद भरने के बाद उस मटकी को जमीन पर पटक कर फोड़ा जाता था, जिससे रोशनी और आवाज होती थी. इसी ‘पटकने’ के कारण इसका नाम ‘पटाखा’ पड़ा. पटाखा बनाने का सबसे बड़ा केंद्र भारत में तमिलनाडु का शिवकाशी पटाखा बनाने का सबसे बड़ा केंद्र है. लेकिन इसकी शुरुआत अंग्रेजी सरकार के दौर में कलकत्ता में हुआ. अंग्रेजी सरकार में बंगाल उद्योग का केंद्र था. वहां माचिस की फैक्टरी थी, जहां बारूद इस्तेमाल होता था. यहीं पर आधुनिक भारत की पहली पटाखा फैक्ट्री लगी, जो बाद में शिवकाशी ट्रांसफर हो गई. भारत में अधिकांश पटाखों का उत्पादन शिवकाशी में होता है. यहां देश के 80% पटाखों का निर्माण होता है.