अगले 40 दिन दिल्ली के लिए क्यों हैं अहम? पर्यावरण मंत्री ने जारी की चेतावनी, बताया बढ़ रही है Stubble Burning
Stubble Burning: सितंबर से नवंबर के अंतिम सप्ताह तक गेहूं की बुवाई के लिए खेत से धान की फसल के अवशेषों को हटाने की एक तरीका स्टबल बर्निंग कहलाता है.
Stubble Burning: पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का ताजा बयान सामने आया है. जिसमें वे दिल्ली और आसपास के इलाके में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर काफी चिंतित है. पर्यावरण मंत्री ने कहा कि अगले 40 दिन दिल्ली के लिए काफी अहम है. दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में तेजी से Stubble Burning बढ़ रहा है. इस साल 24 लाख टन पराली को खत्म करने के लिए mechanism तैयार किए गए हैं. दरअसल, इसी मौसम में किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं.
क्या होता है स्टबल बर्निंग सितंबर से नवंबर के अंतिम सप्ताह तक गेहूं की बुवाई के लिए खेत से धान की फसल के अवशेषों को हटाने का एक तरीका स्टबल बर्निंग कहलाता है. इसे पराली जलाना भी कहते हैं. यह फसल की कटाई के बाद छोड़े गए पतवार या अवशेष को आग लगाने की एक प्रक्रिया है. क्यों जलाए जाते हैं पराली फसल काटने के लिए एक खास तरह की मशीन का उपयोग होता है. जिससे फसल तो कट जाता है लेकिन वे जड़ से निकल नहीं पाता. वह खेत में ही रह जाता है. उसे अपने आप सड़ कर खत्म होने में लगभग 1 से डेढ़ महीने का समय लगता है. लेकिन किसानों के पास इतना समय नहीं होता है कि वे इसका इंतजार करें क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए मिट्टी तैयार करना होता है. इसलिए फसल के बचे हुए हिस्से को वे जला देते हैं. पराली जलाने से नुकसान पराली जलाने के कई नुकसान हैं. इसे जलाने से मीथेन और कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे गैस निलकते हैं. जो हमारे हेल्थ के लिए काफी नुकसानदायक है. ये जहरीले धुएं हमारे शरीर में जाकर कई तरह की परेशानियां करती हैं. इससे फेफड़े की समस्या, सांस लेने में तकलीफ, कैंसर समेत अन्य बीमारी के होने का खतरा भी बढ़ जाता है. हवा में धूल के कण और अन्य प्रदूषित गैस होती हैं. पराली जलाने से कौन सी गैस निकलती है?- कार्बन डाइऑक्साइड
- कार्बनिक कंपाउंड
- नाइट्रोजन ऑक्साइड
- हाइड्रोकार्बन
पराली जलाने पर जुर्माना कितना है? पराली जलाने वाले किसानों पर लगेगा 15000 रुपये का जुर्माना, हो सकती है 6 महीने की जेल है. इन राज्यों में पराली जलाने के ज्यादा मामले पराली जलाने (Stubble Burning) के सबसे ज्यादा मामले पंजाब और हरियाणा में हैं. जबकि दिल्ली सरकार ने ऐसी घटनाओं पर सौ फीसदी कंट्रोल कर लिया है. दिल्ली में सबसे पहले से पूसा डीकंपोजर के बारे में किसानों (Farmers) को बताया जा रहा है. पराली जलाने से नुकसान फसल के अवशेष को जलाने से फसल के ऊपरी परत में मौजूद सूक्ष्म जीवों को नुकसान होता है. इससे मिट्टी की जैविक गुणवत्ता प्रभावित होती है. पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान से अधिक मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है. केवल एक टन पराली जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फास्फोरस, 25 किग्रा पोटेशियम और 1.2 किग्रा सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. पराली की आग की गर्मी से मिट्टी में मौजूद कई उपयोगी बैक्टीरिया और कीट(insects) भी नष्ट हो जाते हैं. पराली जलाने से जमीन के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. पराली को आग लगाने से एक एकड़ में 25 किलो पोटाश और पांच किलो नाइट्रोजन नष्ट हो जाती है. मशीनों की खरीद के लिए सब्सिडी पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को खत्म करने के लिए 2018-19 से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए एक योजना लागू की गई थी. इसके तहत फसल अवशेषों के मैनेजमेंट के लिए आवश्यक मशीनरी पर सब्सिडी दी जाती है. केजरीवाल सरकार भी लेकर आयी नया प्लान इससे पहले अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी दिल्लीवासियों को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए नया प्लान तैयार किया है. दिल्ली में सर्दियां शुरू होते ही हवा की क्वालिटी खराब हो जाती है. इससे निपटने के लिए केजरीवाल सरकार ने सर्दियां शुरु होने से पहले ही नए एक्शन प्लान की घोषणा की है. क्या है नया एक्शन प्लान नए एक्शन प्लान के मुताबिक, पराली गलाने के लिए बायो डीकम्पोजर का इस्तेमाल किया जाएगा. इतना ही नहीं पुराने पेट्रोल-डीजल वाहनों पर सख्ती की जाएगी. साथ ही पटाखों पर भी बैन रहेगा. इसके साथ ही केजरीवाल ने ऐलान किया है कि दिल्ली सरकार 233 एंटी स्मॉग गन और 150 मोबाइल एंटी स्मॉग गन इंस्टॉल की जाएगी. इसके मैनेजमेंट के लिए PUSA द्वारा तैयार किया गया बायो डी कंपोजर का छिड़काव किया जाएगा. पिछले साल 4,000 एकड़ में किया गया था इस बार 5,000 एकड़ में किया जाएगा.