क्या कानून की जगह हथियार से होगा मॉब लिंचिंग का मुकाबला या माहौल बिगाड़ने की है साजिश?
मॉब लिंचिंग! अंग्रेजी के इन दो शब्दों ने बीते कुछ सालों से लोकतंत्र को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हर कोई स्तब्ध है. सुप्रीम कोर्ट से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक चिंतित हैं, व्यथित हैं और सोचने पर मजबूर कि आखिर कैसे इस नासूर से देश को छुटकारा मिले.
मॉब लिचिंग के खिलाफ मोदी सरकार का रवैया सख्त रहा है.
मॉब लिचिंग के खिलाफ मोदी सरकार का रवैया सख्त रहा है.
भीड़ की कोई जात नहीं, कोई धर्म नहीं, संप्रदाय नहीं. भीड़ का केवल एक ही मजहब है...हिंसा. भीड़ कोई कानून नहीं जानती, ये जानती है तो बस उन्माद. जी हां मॉब लिंचिंग! अंग्रेजी के इन दो शब्दों ने बीते कुछ सालों से लोकतंत्र को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हर कोई स्तब्ध है. सुप्रीम कोर्ट से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक चिंतित हैं, व्यथित हैं और सोचने पर मजबूर कि आखिर कैसे इस नासूर से देश को छुटकारा मिले.
मॉब लिंचिंग से निपटने के लिए सख्त और अलग कानून की वकालत सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है. अब उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने इस दिशा में एक शानदार पहल की है. लेकिन उससे पहले जान लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा के किस बयान पर बवाल मचा हुआ है. महमूद प्राचा कानून के अच्छे जानकार हैं, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर सक्रिय भी हैं, लेकिन मॉब लिचिंग को लेकर खुलेआम हथियारों की वकालत कर रहे हैं.
#LIVE | #DeshKiBaat में देखिए मॉब लिंचिंग से जंग, शुरुआत यूपी संग! @AnilSinghviZEE https://t.co/tQvzrxKyTP
— Zee Business (@ZeeBusiness) July 12, 2019
प्राचा का कहना है कि मुस्लिम और दलित समाज के लोगों को आत्मरक्षा में हथियार रखने चाहिए. लेकिन सवाल ये है कि मॉब लिचिंग से क्या हथियारों से बचा जा सकता है, दूसरा बड़ा सवाल है कि क्या मॉब लिचिंग धर्म को देखकर ही की जाती है? भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती है, कोई दीन धर्म नहीं होता है और इसी का फायदा भीड़ में शामिल कुछ लोग उठाते हैं और मॉब लिचिंग जैसी जघन्य हिंसा को अंजाम देते हैं. लेकिन महमूद प्राचा जैसे वरिष्ठ वकील भी इस भीड़ की सोच को खास राजनीतिक दल से जोड़ देते हैं. महमूद प्राचा का तर्क है कि हथियार रखने से भीड़ हमले से पहले सोचेगी, लेकिन क्या ऐसा संभव है?
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लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इज़ाज़त नहीं दी जा सकती, कानून तोड़ने वालों के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन हथियार रखने की वकालत कर भीड़ को उकसाने से क्या कानून नहीं टूटेगा. 9 जुलाई को संसद में बीएसपी सांसद दानिश अली ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाने की मांग उठाई.
मॉब लिचिंग के खिलाफ मोदी सरकार का रवैया सख्त रहा है, बीजेपी शासित राज्यों में मॉब लिचिंग की ज्यादा घटनाएं होने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन इस नासूर से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए यूपी सरकार ने पहल की है और भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाने जा रही है. उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने भीड़ हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की है. सिफारिश में मॉब लिंचिंग पर उम्रकैद तक की कठोर सज़ा की सिफारिश की गई है. आयोग ने अपनी सिफारिश को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को सौंप दी हैं.
मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन पहली बार होगा कि मॉब लिचिंग के खिलाफ हथियार रखने की इजाजत के लिए प्रदर्शन का ऐलान किया गया है. 26 जुलाई को लखनऊ से 25 हज़ार अल्पसंख्यक और एससी समाज के लोगों के साथ मौलाना कल्बे जव्वाद हथियार रखने से जुड़ी ट्रेनिंग की मुहिम शुरू करेंगे. सवाल ये है कि क्या मॉ़ब लिंचिंग के खिलाफ हथियार रखने के लिए उकसाना सही है. क्या ये हिंसा का जवाब हिंसा से देने जैसा नहीं है. क्या इससे देश में गन कल्चर को बढ़ावा नहीं मिलेगा और क्या कानून के जानकार प्राचा साहब जैसे लोगों को कठोर कानून पर भरोसा नहीं है.
08:10 PM IST