देश की जानी पहचानी 49 हस्तियों ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर चिंता जताई है. इस चिट्ठी से देश की सियासत में भूचाल आया हुआ है. मॉब लिंचिंग के बहाने बॉलीवुड, इतिहासकार और लेखकों के निशाने पर मोदी सरकार है. इस चिट्ठी में अल्पसंख्यकों और दलितों पर हुई मॉब लिंचिंग की दुहाई देते हुए इन पर तुंरत रोक लगाने की मांग की गई है. यही नहीं चिट्ठी में श्रीराम का भी जिक्र है. कहा गया है कि श्रीराम का नारा युद्ध उद्घोष बन गया है. और तो और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लिंचिंग की घटनाओं की निंदा को भी नाकाफी बताया गया.

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चिट्टी में प्रधानमंत्री से पूछा गया कि दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. पीएम मोदी को लिखे लेटर में मणिरत्नम, अदूर गोपालकृष्णन, रामचंद्र गुहा, अनुराग कश्यप, श्याम बेनेगल जैसी हस्तियों के हस्ताक्षर हैं. उन्होंने पीएम मोदी से एक ऐसा भारत बनाने की मांग की है, जहां असहमति को कुचला नहीं जाए.

 

बीजेपी ने कह कर दिया है कि चिट्ठी की आड़ में मोदी विरोध की राजनीति हो रही है. बीजेपी और सरकार समर्थक पूछ रहे हैं कि जब भीड़ का धर्म सिर्फ हिंसा है तो फिर चिट्ठी में सिर्फ अल्पसंख्यक और दलित समुदाय का जिक्र ही क्यों. इस चिट्ठी में श्रीराम के नाम के जिक्र पर भी आपत्ति जताई जा रही है. चिट्ठी लिखने वालों से पूछा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में जय श्रीराम का नारा लगाने वालों पर ज्यादती का जिक्र क्यों नहीं.

चिट्ठी के बहाने मोदी सरकार पर निशाना साधने की इस कोशिश पर सरकार ने भी अपना जवाब दिया. गृह मंत्रालय ने आकंड़ा दिया कि देश में 2013 की तुलना में 2018 में सांप्रदायिक घटनाओं में कमी आई है. मोदी सरकार ऐसी घटनाओं पर न सिर्फ चिंतित है बल्कि सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के नारे पर आगे बढ़ रही है. सरकार के मुताबिक देश की संस्कृति ही सहिंष्णुता और जियो और जीने दो की है. 

सवाल ये है कि क्या ये चिट्ठी जानबूझकर मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए जारी की गई है. चिट्ठी में श्रीराम के नाम से परहेज की वकालत आखिर क्यों. भीड़तंत्र का शिकार जब हर धर्म के लोग हुए हैं तो फिर अल्पसंख्यकों पर ही तवज्जो क्यों. ये चिट्ठी 2015 के अवार्ड वापसी गैंग की वापसी है. इन्हीं सब मुद्दों पर होगी देश की बात.