पीएम नरेन्द्र मोदी ने नई सरकार का कामकाज संभालते ही सबका साथ सबका विकास के साथ सबका विश्वास का नारा जोड़ दिया. उन्होंने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि मोदी सरकार की पहली ईद पर ही उन्होंने अल्पसंख्यक छात्रों को अगले पांच साल में 5 करोड़ 'प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति' देने का ऐलान किया. लेकिन लगता है संत समाज को सरकार का ये कदम रास नहीं आया. संत समाज ने इसका विरोध तो नहीं किया लेकिन तुरंत प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर पूछा कि देश के आठ राज्यों में भी हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें माइनॉरिटी का दर्जा मिलेगा. क्या उन्हें भी वही लाभ मिलेंगे जो सरकार अल्पसंख्यकों को देती है?

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अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्र ने कहा, 'संत समाज ने सरकार से अल्पसंख्यक की परिभाषा भी स्पष्ट करने का आग्रह किया है.' हालांकि सरकार ने भी इस पर अपना जवाब दिया है. सरकार का कहना है कि ये विषय कोर्ट में विचाराधीन है और फिलहाल ये राज्यों पर निर्भर करता है कि वो अपने राज्यों में कैसे अल्पसंख्यक दर्जा देते हैं?

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, 'मंत्रालय अल्पसंख्यक समुदाय के बेटे-बेटियों को पांच करोड़ से ज्यादा स्कॉलरशिप देने जा रहा है.' संत समाज का कहना है कि 2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार हिंदू 8 राज्यों में कम संख्या में हैं. ये राज्य हैं लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू और कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब. इन राज्यों में हिन्दुओं की आबादी ढाई फीसदी से लेकर 38 फीसदी तक है. 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को ही अल्पसंख्यक का दर्जा देना व्यावहारिक है? क्या सच में जिन राज्यों में हिन्दुओं की आबादी कम है वहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देना चाहिए? क्या अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करने का वक्त आ चुका है? क्या कम आबादी वाले इलाकों में हिन्दुओं के हितों की अनदेखी हो रही है?