संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि भारत को प्राकृतिक आपदाओं से पिछले दो दशकों में 79.5 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय की ओर से बुधवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1998 से लेकर 2017 के बीच निम्न मध्यम आय वर्ग देशों के लिए दो साल खराब दौर रहा है. भारत इसी श्रेणी में आता है जहां 2002 में विकट सूखे की स्थिति से देश के 30 करोड़ लोग प्रभावित हुए. दोबारा 2015 में भारत समेत अन्य देशों को सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ा.

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संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन के खतरों की चेतावनी दी जिसका सबसे ज्यादा असर विकासशील देशों पर पड़ सकता है. रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले 20 साल में जलवायु संबंधित आपदाओं से सीधे तौर पर होने वाले आर्थिक नुकसान में अचानक 151 फीसदी का इजाफा हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान हुई 2,908 अरब डॉलर की आर्थिक क्षति का 77 फीसदी हिस्सा जलवायु से जुड़ी आपदाओं के कारण हुई है. 

आपदा न्यूनीकरण मामले के लिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस के विशेष प्रतिनिधि मामी मिजूटोरी ने कहा, "रिपोर्ट के विश्लेषण से स्पष्ट है कि मौसम के प्रचंड कहरों से होने वाला आर्थिक नुकसान अरक्षणीय है और दुनिया में गरीबी का उन्मूलन करने की राह में एक बड़ा बाधक है."

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में जनवायु परिवर्तन का जोखिम बढ़ता जा रहा है. कुल आर्थिक नुकसान में मौसमी घटनाओं से होने वाले नुकसान की हिस्सेदारी 77 प्रतिशत है. यह करीब 2,245 अरब डॉलर के करीब है. रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1978 से 1997 के बीच 895 अरब डॉलर का बड़ा आर्थिक नुकसान देखने को मिला था.

(इनपुट एजेंसी से)