Cough Syrup for Kids: हाल ही में मुंबई में एक ढाई साल के बच्चे के साथ बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी. बच्चे को कफ सिरप (Cough Syrup for Kids) दिया गया और बच्चे की हार्टबीट लगभग 20 मिनट के लिए थम गई और वो बेहोश हो गया. बच्चे को तुरंत CPR जैसा मेडिकल असिस्टेंस दिया गया, जिसके लगभग 17 मिनट बाद उसकी हार्टबीट वापस आ पाई. बेहोशी के कारणों की जांच की गई, लेकिन कफ सिरप के अलावा कोई कारण समझ नहीं आया. बच्चे को जो कफ सिरप दिया गया था, उसमें क्लोरोफेनरामाइन और डेक्सट्रोमेथोर्फ जैसे कंपाउंड थे, यूएस में ऐसे कंपाउंड्स पर सिरप चार साल के नीचे के बच्चों को नहीं देने को लेकर चेतावनी लिखना जरूरी है. ब्रिटेन में भी ऐसी पाबंदी है, लेकिन भारत में ऐसा कोई नियम नहीं है, ऊपर से ओवर द काउंटर दवाई लेना भी आसान हो गया है. कोडीन एक दूसरा कंपाउंड है, जो किसी कफ सिरप में हो, तो वो दिमाग पर असर डालता है और इससे नींद भी ज्यादा आती है.

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अब सरकार की सख्ती के बाद ऐसी दवाइयों को लेकर कुछ नियम-कायदे हैं, अब ये ओवर द काउंटर मिलनी भी मुश्किल हैं, डॉक्टर्स भी ऐसी दवाइयों बच्चों को देने से मना करते हैं. ज्यादातर कफ सिरप खांसी को दबा देते हैं. अगर बच्चे को ज्यादा खांसी है तो उसे एलर्जी के लिए एंटी-हिस्टामाइन की बस एक खुराक दी जा सकती है.

क्या कहते हैं डॉक्टर और एक्सपर्ट्स?

नानावती अस्पताल की पीडियाट्रिशियन डॉक्टर जागृति संघवी आमतौर पर खांसी के टाइप (Cough Syrup for Dry and Wet Cough) और जरूरत के हिसाब से खांसी की दवाई देते हैं, लेकिन पैरेंट्स कभी-कभी फोन पर ही बोलते हैं कि बच्चे को खांसी की दवाई बता दीजिए, जिससे बच्चे की जरूरत के हिसाब से दवा नहीं मिल पाती.

सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉक्टर पल्लवी सापले ने भी यही मुद्दा उठाया कि दवाई दवाई होती है, दवाई के अपने बेनेफिट्स के साथ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं. कफ सिरप भी मामूली चीज नहीं है, खासकर बच्चों के लिए. यह ध्यान रखना चाहिए कि 1 से 4 बच्चों को तो साल में तीन-चार बार खांसी होनी ही है, लेकिन ज्यादातर बच्चों में तो कफ सिरप की जरूरत भी नहीं पड़ती. देसी नुस्खे जैसे हल्दी का दूध, घरेलू तुलसी का काढ़ा जैसे ऐसे कई नुस्खे हैं जो पीडियाट्रिशियन असोसिएशन की ओर से रेकमेंडेड हैं, उनका इस्तेमाल करना चाहिए.

मैक्स हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजिस्ट हेड हैं डॉक्टर विवेक नांगिया, उन्होंने कहा कि फार्मेसी से जुड़े नियमों को सुधारने की जरूरत है. एंटी-बायोटिक्स आसानी से मिल जाती है, जो सही ट्रेंड नहीं है. कोई भी दवाई अपने आप से लेना सेफ नहीं है, जबतक कि आपको कोई डॉक्टर प्रिस्क्राइब न करें. पुरानी पर्ची पर भी कोई दवा नहीं लेना शुरू करना चाहिए.

खासकर बच्चों को देने का कई और नुकसान हो सकता है. बच्चों में ये सप्रेशन या हाइपरएक्टिविटी को बढ़ा सकता है. एडिक्शन जैसी चीजें देखने को मिल सकती हैं. उन्होंने कहा कि 6 साल से छोटे बच्चों को कफ सिरप नहीं देना चाहिए.

सरकार क्या कर सकती है? क्या होने चाहिए कायदे-कानून?

डॉक्टर संघवी ने कहा कि कभी-कभी सिचुएशन के हिसाब से बच्चों को कफ सिरप देना पड़ता है, इसके लिए डोज़ डॉक्टर की ओर से प्रिस्क्राइब किया गया होना चाहिए. लेकिन दूसरी ओर से सरकारी नियम-कायदे भी बहुत जरूरी है, क्योंकि अपने यहां ड्रग लाइसेंसिंग का प्रोसेस है वो छोटी-छोटी कंपनियों को आसानी से मिल जाता है, वहीं बड़ी कंपनियों को लंबे प्रोसेस से गुजरना पड़ता है, तो एक यूनिफॉर्म लॉ होना चाहिए.

डॉक्टर सापले ने कहा कि हमारे नियम हैं, लेकिन हर केमिस्ट के पास जाकर चेक करना मुश्किल है. ओवर द काउंटर नियमों को लेकर यह अनुशासन होना चाहिए कि बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाएं न दें. कफ सिरप जरूरी है लेकिन बिना डॉक्टर के सलाह के न लें. डॉक्टर नांगिया ने कहा कि अगर लोगों को कफ सिरप लेने के तरीकों को लेकर जागरूक करने की जरूरत है.

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