घटती पैदावार और पानी की कमी से खस्ताहाल कॉटन सेक्टर, कैसे सुधरेंगे हालात
कपास, रुई या फिर कॉटन सेक्टर इन दिनों खस्ता हालात से जूझ रहा है. कॉटन उत्पादक कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में कॉटन की फसल पर कीटों का हमला हो रहा है. कीटों के हमले के चलते किसान परेशान हैं और इसका सीधा असर पैदावार पर पड़ेगा. कॉटन पर इस समय पिंक बॉलवर्म नामक कीट का हमला देखा जा रहा है. कीटों के अलावा मॉनसून की कमी का भी असर कॉटन पर देखने को मिल रहा है.
कपास, रुई या फिर कॉटन सेक्टर इन दिनों खस्ता हालात से जूझ रहा है. कॉटन उत्पादक कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में कॉटन की फसल पर कीटों का हमला हो रहा है. कीटों के हमले के चलते किसान परेशान हैं और इसका सीधा असर पैदावार पर पड़ेगा. कॉटन पर इस समय पिंक बॉलवर्म नामक कीट का हमला देखा जा रहा है. कीटों के अलावा मॉनसून की कमी का भी असर कॉटन पर देखने को मिल रहा है.
इस बार कॉटन के कम उत्पादन का अनुमान जारी किया गया है. इस दशक का यह सबसे कमजोर यील्ड दर्ज किया गया है.
कम हुआ उत्पादन
कॉटन इंडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष अतुल गनात्रा ने बताया कि कॉटन में इस साल पिछले एक दशक का सबसे कम उत्पादन हुआ है. कम पैदावार होने से 312 लाख गांठ कॉटन का ही उत्पादन हुआ है. जबकि पिछली बार 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था. उत्पादन कम होने की वजह के बारे में उन्होंने बताया कि भारत में जहां-जहां कॉटन की खेती होती है, वहां 80 फीसदी खेती मॉनसून पर आधारित है. और इस बार बारिश कम हुई है, जिससे कम उत्पादन हुआ है. सरकार को इन इलाकों में सिंचाई के इंतजाम करने चाहिए.
कॉटन के MSP का उत्पादन पर असर
कॉटन का एमएसपी इस बार महज 2 फीसदी बढ़ा है, जबकि सोयाबीन की 10 फीसदी और मूंगफली की एमएसपी में 5 फीसदी का इजाफा हुआ है. कॉटन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में मूंगफली और सोयाबीन के मुकाबले कम बढ़ोत्तरी का असर भी कॉटन की पैदावार पर देखने को मिलेगा.
120 दिन की होती है कॉटन की फसल
अतुल गनात्रा बताते हैं कि महाराष्ट्र में कॉटन और सोयाबीन, ये दो ही मुख्य फसल हैं. किसानों को सोयाबीन में ज्यादा मुनाफा दिखाई दे रहा है, इसलिए किसान कॉटन को छोड़कर सोयाबीन की खेती को ज्यादा तरजीह देंगे, जिसका सीधा असर आने वाले समय में कॉटन की पैदावार पर पड़ने वाला है. गुजरात के किसानों का झुकाव मूंगफली की तरफ ज्यादा देखने को मिल रहा है.
इसकी एक वजह और है कि सोयाबीन या मूंगफली की फसल 90 दिन की होती है, जबकि कॉटन की फसल 120 दिन की होती है. साथ ही कॉटन की तुड़ाई (पेड़ से रुई चुनना) भी काफी महंगा पड़ता है.
इंडियन कॉटन एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि गुजरात, कर्नाटक, तेलांगना में सबसे ज्यादा कॉटन की खेती है और इन राज्यों में सिंचाई बारिश के भरोसे होती है. इसलिए उत्पादन में प्रमुख समस्या पानी की है. क्योंकि बीज अच्छी क्वालिटी का है, कीट और बीमारियों पर हमारे कृषि वैज्ञानिक कंट्रोल कर ही लेते हैं.