90 घंटे काम वाले बयान पर घिरे L&T चेयरमैन, व्यापार मंडल ने की निंदा, दीपिका पादुकोण को किया सपोर्ट
L&T Chairman S.N.Subramanian statement: लार्सेन एंड टर्बो चेयरमैन एस.एन.सुब्रमण्यन ने हफ्ते में 90 घंटे काम करने की वकालत की है. इस पर अब कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने बयान जारी कर निंदा की है.
लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एस एन सुब्रमण्यन ने कहा है कि कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए और रविवार को भी काम करने से नहीं हिचकना चाहिए. उनके बयान को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी टिप्पणियां की हैं. अब इस बयान की, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने निंदा की है. CAIT ने कहा है कि एलएंडटी के चेयरमैन ने काम के घंटों को लेकर जो बयान दिया है, वो बहुत ही बेकार है.
सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने की आलोचना
CAIT के महासचिव और चांदनी चौक के सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि ये बयान बिलकुल भी व्यवहारिक नहीं है और इंसान की इज्जत और काम और जिंदगी के बीच संतुलन की धज्जियां उड़ाता है. खंडेलवाल जी ने जोर देकर कहा कि ऐसे बयान ये दिखाते हैं कि आजकल के जमाने में लोगों की मानसिक सेहत और उनकी भलाई कितनी जरूरी है, इस बात की समझ की कमी है.' प्रवीण खंडेलवाल ने इतनी जरूरी मुद्दे पर खुलकर बोलने के लिए एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के साहस की तारीफ की और कहा कि मशहूर हस्तियों और प्रभावशाली लोगों को अपनी पहचान का इस्तेमाल करके काम करने के बेहतर तौर-तरीकों की वकालत करनी चाहिए.
हर किसी को है संतुलित जीवन जीना का हक
प्रवीन खंडेलवाल ने कहा, "हम उस जमाने में वापस नहीं जा सकते जहां मजदूरों को सिर्फ मशीन समझा जाता था. हर व्यक्ति, चाहे वो कंपनी में काम करता हो या अपना खुद का काम करता हो, उसे एक संतुलित जीवन जीने का हक है, जहां वो अपने काम और निजी जीवन दोनों में आगे बढ़ सके." इस बारे में खंडेलवाल ने बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का सपोर्ट किया, जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं पर बात करने और काम करने के लिए एक स्वस्थ माहौल बनाने की जरूरत पर जोर दिया था.
काम के घंटे बढ़ाने से होगा उल्टा असर
भाजपा सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने आगे कहा, "भारतीय व्यापार, चाहे वो बड़ी कंपनियां हों या छोटे और मध्यम उद्योग (MSMEs), अपने कर्मचारियों की मेहनत पर चलते हैं. अगर हम काम के घंटों को बहुत ज्यादा बढ़ा देंगे तो इसका उल्टा असर होगा, काम की गुणवत्ता घटेगी, तनाव बढ़ेगा और पूरी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा." उन्होंने नीति निर्माताओं, व्यापारिक नेताओं और प्रभावशाली लोगों से अपील की कि वे सब मिलकर ऐसे कार्यस्थलों को बढ़ावा देने के लिए काम करें जो इंसानी मूल्यों का सम्मान करते हों, मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता देते हों और स्थायी और मानवीय तरीकों से प्रोडक्टिविटी बढ़ाते हों.