आज देशभर में नामीबिया से आए आठ चीतों की चर्चा है. 70 साल बाद इन चीतों की घर वापसी हुई है. PM मोदी ने लीवर घुमाकर वुडेन बॉक्स से इन चीतों को बाड़ों के पार रिलीज किया. अब भारत में इन चीतों का नया घर कूनो नेशनल पार्क बना है. बता दें चीतों को 1952 में विलुप्‍त घोषित कर दिया गया था. चीतों को भारत में फिर से लाने की कवायद लंबे समय से चल रही थी, जिसमें अब जाकर सफलता मिल पाई है. लेकिन ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि आखिर चीते भारत की धरती से विलुप्‍त कैसे हो गए, इनके अलावा ऐसे और कौन से जीव हैं, जो अब भी विलुप्‍त हैं ? आइए आपको बताते हैं.

जानें चीतों के विलुप्‍त होने की कहानी

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चीतों की विलुप्ति का मुख्‍य कारण उसका शिकार होना माना जाता है. इसके अलावा चीतों को पालतू बनाकर रखा जाता था. अपनी तेज गति व बाघ व शेर की तुलना में कम हिंसक होने की वजह से इसको पालना आसान था. उस समय राजा और जमींदार शिकार के समय चीतों का इस्‍तेमाल करके दूसरे जानवरों को पकड़ते थे. इन्‍हें पिंजरो में रखने की बजाय, जंजीर में बांधकर रखा जाता था. इसके बाद ब्रिटिश सरकार के समय में चीते को हिंसक जानवर घोषित कर दिया गया और इसको मारने वालों को पुरस्कार दिया जाने लगा. 

20वीं शताब्दी में भारतीय चीतों की आबादी में बहुत तेजी से गिरावट आ गई थी. कहा जाता है कि 1947 में चीतों को आखिरी बार देखा गया था. उस समय छत्तीसगढ़ की एक छोटी रियासत कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार कर उन्हें मार दिया. इसके बाद से चीते कभी नजर नहीं आए. 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया.

चीतों के अलावा ये जीव-जंतु भी हो चुके हैं विलुप्‍त

सुमात्रन गैंडे

दो सींगों वाला सबसे छोटे गैंडे को कहते हैं सुमात्रन गैंडा. इसे भी भारत में विलुप्त घोषित किया गया है. ये केवल 275 से कम संख्या में अनुमानित हैं और भारत के पड़ोसी देशों में पाए जाते हैं.

पिंक-हेडेड डक

पिंक-हेडेड डक को कभी भारत के खूबसूरत पक्षियों में से एक माना जाता था. पिंक-हेडेड डक एक बड़ी डाइविंग ब्लैकिश-ब्राउन डक थी,  इसकी गर्दन से लेकर सिर तक का हिस्‍सा गुलाबी होता था. अब ये विलुप्‍त हो चुकी है.

मालाबार सिवेट

 7 किलो की सिवेट बिल्ली पश्चिमी घाट के तट पर पाई जाती थी. 1990 के बाद इसे कभी नहीं देखा गया. इसे भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में भी शामिल किय़ा गया है

हिमालयी बटेर

ये पक्षी अंतिम बार मसूरी में 1867 में देखा गया था. यह मध्यम आकार का पक्षी कभी उत्तराखंड में पाया जाता था. हिमालयी बटेर मध्यम आकार की तीतर कुल की प्रजाति थी. इस प्रजाति का नर पक्षी गहरे हरे रंग का होता था. इस पर काले धब्बे होते थे और इसका सिर सफेद रंग का होता था. वहीं, मादा पक्षी का रंग भूरा था, जिस पर काली धारियां और भौंहे भूरे रंग की होती थीं. अब इसे विलुप्‍त प्रजाति में शामिल किया जाता है.

भारतीय ऑरोच

ये सुंदर जानवर घरेलू मवेशियों की तुलना में काफी बड़े थे. ये भारत के गर्म और शुष्क क्षेत्रों में रहते थे. इनकी ऊंचाई 6.6 फीट और वजन 1,000 किलोग्राम था. अब इन्‍हें विलुप्‍त प्रजाति की श्रेणी में रखा गया है.