India's Most Iconic Budgets: ऐतिहासिक बजट, जिन्होंने बदल दी देश की दशा-दिशा
Budget 2022: आजादी के तुरंत बाद नवंबर 1947 का अंतरिम बजट, 1951, 1956, 1961, 1991 और 2014 तक कुछ ऐसे बजट हैं, जिन्होंने भारत में आर्थिक बदलाव की नई इबारत लिखी. इन बजट ने देश के अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा दोनों बदलने का काम किया.
Budget History: भारत का आर्थिक सफर हमेशा एक जैसा कभी नहीं रहा. हर नई बदलती सरकार के दौर में आए बजट ने नए बदलाव किए. पंडित नेहरू के लाइसेंस राज से डॉ. मनमोहन सिंह के उदारीकरण और नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ-सबका विकास' तक देश ने कई ऐसे बजट देखे, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नया आकार दिया. आजादी के तुरंत बाद नवंबर 1947 का अंतरिम बजट, 1951, 1956, 1961 और 1991 समेत ऐसे कुछ विशेष बजट हैं, जिन्होंने भारत में आर्थिक बदलाव की नई इबारत लिखी. 2014 में पूर्ण बहुमत से आई मोदी सरकार के पहले बजट के जरिए देश को नए रास्ते पर ले जाने का खांका खींचने का प्रयास किया गया.
1947 का बजट
खासियत: देश का पहला बजट
वित्त मंत्री: आर के षनमुखम चेट्टी ( देश के पहले वित्त मंत्री)
बजट पेश हुआ: 26 नबंबर 1947
बजट का फैसला: बजट पेश करने का फैसला ही इस बजट का सबसे अहम फैसला रहा. यह बजट 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक (7.5 माह) के लिए पेश किया गया. इससे देश में फरवरी में ही बजट पेश करने की परम्परा की शुरुआत हुई.
ऐसा करने की वजह: दरअसल, इससे पहले जिस बजट को सरकार की ओर से मंजूरी दी गई थी, वह देश के बंटवारे के साथ प्रभावहीन हो गया था. भारत के सामने पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को बसाने की बड़ी चुनौती थी. इसके लिए सरकार के पास पैसा नहीं था. ऐसे में बजट ने सरकार के खर्चों का मार्ग प्रशस्त किया.
खास बात: देश का यह पहला बजट 197.3 करोड़ रुपये का था. सरकार ने 171.1 करोड़ रुपये के राजस्व का अनुमान लगाया था. इस हिसाब से सरकार पहले ही बजट में 24.59 करोड़ के घाटे में रही. भारी गरीबी के बाद भी इस बजट में 92 करोड़ रुपये (बजट की करीब 45 फीसदी राशि) का आवंटन रक्षा के लिए किया गया था. इस बजट में पाकिस्तान से आए लोगों को बसाने और फूड सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए बड़े कदम उठाए गए थे.
1951 का बजट
खासियत: लोकतांत्रिक भारत का पहला बजट
वित्त मंत्री: जॉन मथाई
बजट पेश हुआ: 28 फरवरी 1950
बजट का फैसला: इस बजट ने देश में योजना आयोग (अब नीति आयोग) की स्थापना का रास्ता साफ किया. रूस के तर्ज पर बने इसी आयोग ने देश में विकास को एक आकार दिया.
ऐसा करने की वजह: तत्कालीन सरकार का मानना था कि आजादी के बाद से ही देश भारी महंगाई और गरीबी के अलावा लो प्रोडक्टिविटी के साथ खस्ताहाल निवेश और प्रोडक्शन की समस्या से जूझ रहा था. ऐसे में एक पूर्णकालिक आयोग ही देश के भीतर मौजूद संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल से जरूरत के मुताबिक, अलग-अलग क्षेत्रों में विकास का खाका खींच सकता था.
इससे भारत में क्या बदला: बाद के सालों में या कहें कि अब तक भारत ने बुनियादी विकास का जो सफर तय किया है, उसका रास्ता योजना आयोग ने ही दिखाया था. 2014 में आई मोदी सरकार ने इसे थोड़ा आधुनिक और इसकी कार्यप्रणाली को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए इसके ढांचे में बदलाव के साथ इसका नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया.
बजट की अहम बातें: पहली बार बजट की विस्तृत प्रति पेश की गई. बजट में इनकम टैक्स में कटौती की अब तक की सबसे बड़ी घोषणा की गई. सरकार ने इनकम टैक्स की दर को पांच आना (30 फीसदी) प्रति रुपये से घटाकर चार आना (करीब 25 फीसदी) कर दिया. वहीं, 1.21 लाख से अधिक आय वालों पर 8.5 आना प्रति रुपये के हिसाब से 'सुपर टैक्स' लगाया गया. उस समय अधिकतम इनकम टैक्स 12.5 आना (78 फीसदी) प्रति रुपये तक था.
1957 का बजट
वित्त मंत्री: टीटी कृष्णामचारी
खासियत: देश में एक टैक्स ढांचा सामने आया
बजट पेश करने की तरीख: 15 मई 1957
बजट का फैसला: इंपोर्टर लाइसेंस सिस्टम के जरिए इंपोर्ट पर बहुत से प्रतिबंध लगाए गए. एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए एक्सपोर्ट रिक्स इन्श्योरेंस कॉर्प का गठन किया गया. खर्च पर लगने वाले वेल्थ टैक्स की शुरुआत हुई. इसके अलावा रेल टिकट पर टैक्स लगाया गया. एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाकर मैक्सिमम 400 फीसदी तक किया. इनकम टैक्स की दर को बढ़ाया गया. बजट में पहली बार ऐक्टिव इनकम (सैलरी और बिजनेस) और पैसिव इनकम (ब्याज और किराया) की परिभाषा तय की गई.
ऐसा करने की वजह: फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व और बैलेंस ऑफ पेमेंट पर दबाव के कम करने के लिए सरकार ने यह कदम उठाए. खाद्यान्न के अधिक इंपोर्ट के कारण बढ़ी महंगाई इसका प्रमुख कारण थी.
भारत में क्या असर पड़ा: इंपोर्ट पर रोक और ज्यादा टैक्स से हालात खासे बिगड़ गए. बढ़ता बाहरी घाटा ज्यादा जटिल हो गया.
खास बात: टीटी कृष्णमचारी ने टैक्स से जुड़े ये निर्णय हंगरी के अर्थशास्त्री निकोलस कैल्डोर के कहने पर लिए थे. टीटी कृष्णामचारी ने IDBI बैंक, इंडस्ट्रियल क्रेडिट एड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, UTI और दामोदर घाटी कॉरपोरशन के गठन में अहम भूमिका निभाई.
1968 का बजट
खासियत: पहला पीपुल सेंसिटिव बजट
वित्त मंत्री: मोरारजी देसाई
बजट पेश करने की तारीख: 29 फरवरी 1968
बजट का निर्णय: फैक्टरी के गेट पर एक्साइज विभाग के अधिकारियों द्वारा किसी सामान की स्टैंपिंग और एसेसमेंट की बाध्यता को खत्म किया गया. इसकी जगह सेल्फ एसेसमेंट का सिस्टम लाया गया.
ऐसा करने की वजह: एक्साइज डिपार्टमेंट पर काम का बोझ कम करना और एक्साइज विभाग के फील्ड अधिकारियों को मिली असाधारण शक्तियों को कम करना.
इसका क्या असर हुआ: इसके चलते देश में मैन्युफैक्चरिेंग को बूस्ट करने में काफी मदद मिली. गुड्स रिमूवल की लंबी प्रक्रिया आसान और छोटी हो गई.
खास बात: मोरारजी देसाई एक मात्र वित्त मंत्री थे, जिन्होंने अपने जन्मदिन 29 फरवरी को दो बार 19664 और 1968 में देश का बजट पेश किया. देसाई सबसे ज्यादा 10 बार बजट पेश करने वाले वित्त मंत्री भी बने. पति और पत्नी दोनों के टैक्स पेयर होने पर उन्होंने इस बजट में छूट का एलान किया.
1973 का बजट
खासियत: बड़ी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण
वित्त मंत्री: यशवंत राव चव्हाण
बजट पेश किया गया: 28 फरवरी 1973
बजट का फैसला: देश की जनरल इन्श्योरेंस कंपनियों, कॉपर कॉर्प्स और कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण की अहम घोषणा की गई. सरकार ने इसके लिए 65 करोड़ रुपये का आवंटन किया. इसके चलते सरकार का बजट घाटा 550 करोड़ रुपये हो गया.
ऐसा करने का कारण: सरकार का मानना था कि पावर, सीमेंट और स्टील सेक्टर के लिए बढ़ी कोयले की मांग को पूरा करने के लिए ऐसा करना उस वक्त जरूरी था. ऐसा माना जा रहा था कि कोयला खदानों के सरकार के हाथ में आने से वहां काम करने वाले मजदूरों के शोषण में कमी आएगी.
क्या असर हुआ: तर्क दिया जाता है कि कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के चलते ही देश में कोयला उत्पादन में व्यापक बढ़ोतरी देखने को मिली. हालांकि, इसके चलते कोयले के मार्केट में कम्प्टिशन खत्म हो गया. कोयला उत्पादन में नई तकनीक का विकास नहीं हो सका.
खास बात: चव्हाण महाराष्ट्र के सीएम भी रहे. उन्होंने अपने दोनों बजट में सिगरेट पर टैक्स में बढ़ोतरी की.
1986 का बजट
खासियत: बहुत ही नपा-तुला बजट
वित्त मंत्री: वीपी सिंह
बजट पेश करने की तारीख: 28 फरवरी 1986
बजट का फैसला: इस बजट में MODVAT क्रेडिट का प्रावधान किया गया. इसके तहत फाइनल प्रोडक्ट की जगह रॉ मैटेरियल पर ड्यूटी लगाने का प्रावधान किया गया.
ऐसा करने की वजह: सामान की आखिरी कीमत पर पड़ने वाले टैक्स के भारी बोझ को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया.
भारत पर क्या असर पड़ा: यह भारत में इन डायरेक्ट टैक्स रिफॉर्म की छोटी सी शुरुआत थी.
खास बात: इसी बजट में स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक के गठन के साथ म्युनिसिपल सफाईकर्मियों के लिए दुर्घटना बीमा और रिक्शा वालों व मोची जैसा छोटा रोजगार करने वालों को बैंक लोन में सब्सिडी का प्रस्ताव किया गया. UTI और MTNL के गठन का प्रस्ताव भी इसी बजट में किया गया.
1987 का बजट
खासियत: देश में कॉरपोरेट टैक्स की शुरुआत
वित्त मंत्री: राजीव गांधी
बजट पेश करने की तारीख: 28 फरवरी 1987
बजट का फैसला: मिनिमिम कॉरपोरेट टैक्स का प्रावधान. बाद में इसे MAT कहा गया.
ऐसा करने की वजह: कानून की आड़ लेकर इनकम टैक्स से बचने वाली ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को टैक्स के दायरे में लाना था.
इससे भारत में क्या बदलाव आया: बाद के दिनों में कॉरपोरेट टैक्स भारत सरकार की आय का प्रमुख स्रोत बन गया. 1987 के बजट से सरकारी खजाने को इस टैक्स से 75 करोड़ रुपये के अतिरिक्त राजस्व की उम्मीद थी.
खास बात: कॉरपोरेट टैक्स का आइडिया अमेरिका से लिया गया था. साथ ही इस बजट में सिगरेट पर भी टैक्स बढ़ाने की एलान किया गया.
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1991 का बजट
खासियत: देश में उदारीकरण की शुरुआत
वित्त मंत्री: मनमोहन सिंह
बजट पेश करने की तारीख: 24 जुलाई 1991
बजट का फैसला: इंपोर्ट और एक्सपोर्ट के क्षेत्र में बड़ा फैसला हुआ. लाइसेंस राज की समाप्ति का एलान किया गया. सभी बड़े सेक्टर देशी-विदेशी कंपनियों के लिए खोले गए. भारतीय अर्थव्यवस्था को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया गया. कस्टम ड्यूटी को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी किया गया.
ऐसा करने का कारण: भारतीय आर्थव्यस्था नाजुक दौर में पहुंच चुकी थी. देश के सामने भुगतान संतुलन का संकट पैदा हो चुका था. सरकार के सामने रिफॉर्म के अलावा कोई चारा नहीं बचा था.
देश पर इसका क्या असर पड़ा: बाद के दिनों में आर्थिक उदारीकरण के चलते ही भारत वर्ल्ड इकोनॉमी के पावर हाउस के तौर पर उभरा. आज भारत दुनिया की सबसे तेज ग्रोथ करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है.
अहम बात: मनमोहन ने अपने वित्त मंत्री रहने के दौरान 1994 में सर्विस टैक्स की शुरुआत की. GST लागू होने तक यह सरकार की आय का सबसे बड़ा जरिया रहा. 1994 में सरकार को सर्विस टैक्स से 400 करोड़ रुपये की आय हुई थी.
2014 का बजट
खासियत: सबका साथ, सबका विकास
वित्त मंत्री: अरुण जेटली
बजट पेश करने की तारीख: 10 जुलाई 2014
बजट का फैसला: इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का नया दौर शुरू हुआ. वित्त वर्ष 2014 की शुरुआत में सत्तारूढ़ मनमोहन सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया था. जबकि, मई 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद अरुण जेटली ने बतौर वित्त मंत्री मोदी सरकार का पहला बजट पेश किया था. यह देश की पहली पूर्ण बहुमत वाली गैर-कांग्रेसी सरकार थी. जेटली ने अपने पहले बजट के जरिए देश की जीडीपी ग्रोथ 7-8 फीसदी पर ले जाने के लक्ष्य के साथ 'सबका साथ, सबका विकास' का मूल मंत्र दिया. 100 स्मार्ट सिटी बनाने के साथ-साथ 24 घंटे बिजली, हाईवे और रोड कंस्ट्रक्शन पर बड़े एलान हुए.
ऐसा करने का कारण: 2014 के चुनाव में यूपीए सरकार को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया था. भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कथित बदहाली से जनता पाने के मकसद से जनता ने नई सरकार चुनी. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि देश की जनता ने तेज आर्थिक ग्रोथ के जरिए देश से गरीबी को पूरी तरह खत्म करने के लिए नई सरकार चुनी है.
अहम बात: जेटली ने पर्सनल इनकम टैक्स छूट की लिमिट 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये की. 80C छूट की लिमिट 1 लाख से बढ़ाकर 1.50 लाख रुपये की गई. सीनियर सिटीजन के लिए 3 लाख तक की आमदनी टैक्स फ्री हुई. होम लोन के ब्याज पर 2 लाख रुपये टैक्स डिडक्शन और PPF में निवेश की सीमा एक लाख से बढ़ाकर 1.50 लख रुपये की गई. इस बजट में सरकार ने 100 स्मार्ट सिटी के लिए 7,600 करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया था.