Year Ender 2022: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिये यह साल मिला-जुला रहा. आरबीआई जहां एक तरफ पहली बार टारगेट के मुताबिक महंगाई (inflation target) को काबू में नहीं रख पाया, वहीं पायलट आधार पर डिजिटल रुपया जारी कर और अपनी कोशिशों से बैंकों के बही-खातों को मजबूत करने में सफल रहने से सुर्खियों में रहा. भाषा के मुताबिक, अब जब मुद्रास्फीति तय लक्ष्य के दायरे में आ रही है, ऐसे में नए साल में अब जोर आर्थिक वृद्धि को गति देने पर हो सकता है. खासकर मई, 2022 के बाद से नीतिगत दर में 2.25 प्रतिशत की वृद्धि को देखते हुए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि पर विशेष ध्यान दिये जाने की उम्मीद है. 

retail inflation लगातार नौवें महीने उच्चतम सीमा से ऊपर 

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खबर के मुताबिक, नीतिगत दर में वृद्धि से आर्थिक वृद्धि पर विपरीत असर पड़ सकता है. 12 अक्टूबर को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, कुल मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से ऊपर रही. इसके साथ, यह पहली बार हुआ हुआ जब खुदरा मुद्रास्फीति लगातार नौवें महीने छह प्रतिशत की उच्चतम सीमा से ऊपर रही. इसकी वजह से तय व्यवस्था के मुताबिक, आरबीआई (RBI) को लेटर लिखकर सरकार को यह बताना पड़ा कि आखिर वह महंगाई (inflation target) को लक्ष्य के मुताबिक काबू में क्यों रख सका. साथ यह भी बताना पड़ा कि आखिर मुद्रास्फीति कब चार प्रतिशत पर आ सकती है.

दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के बीच रखने की जिम्मेदारी

आरबीआई (reserve Bank of India) को खुदरा महंगाई दर दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत यानी दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के बीच रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. बढ़ती महंगाई का एक प्रमुख कारण इस साल फरवरी में रूस का यूक्रेन पर हमला रहा. इससे जिंसों खासकर कच्चे तेल के दाम पर असर पड़ा. हालांकि, महंगाई के मामले में भारत की स्थिति दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर है और यह राहत की बात रही. कई देशों में महंगाई दर 40-40 साल के उच्चस्तर पर पहुंच गई. बढ़ती महंगाई को काबू में लाने के लिये आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने अचानक से बैठक कर इस साल चार मई को प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी की. इससे पहले, लंबे समय तक रेपो दर को यथावत रखा गया था.

तीन बार Repo Rate में 0.50-0.50% की बढ़ोतरी

कई विशेषज्ञों ने कहा कि आरबीआई ने मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसने के लिए कदम उठाने में देरी की. हालांकि, केंद्रीय बैंक ने इससे इनकार किया और कहा कि उसने समय रहते पहल की है. उसके बाद लगातार तीन बार रेपो दर में 0.50-0.50 और दिसंबर में द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में 0.35 प्रतिशत की वृद्धि की गई. आरबीआई ने दिसंबर में रेपो दर 0.35 प्रतिशत की वृद्धि कर यह भी संकेत दिया कि नीतिगत दर में वृद्धि की गति अब धीमी होगी. खुदरा मुद्रास्फीति (retail inflation) नरम पड़कर नवंबर में 5.8 प्रतिशत पर आ गई है. इसको देखते हुए कई विश्लेषकों ने कहा है कि आने वाले समय में नीतिगत दर में वृद्धि थमेगी. एमपीसी की बैठक के ताजा ब्योरे से भी इस बात की पुष्टि होती है. इसका एक कारण आर्थिक वृद्धि को गति देना भी है. आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 6.8 प्रतिशत कर दिया है.

रुपये की विनिमय दर में भी उल्लेखनीय गिरावट 

मुद्रास्फीति (inflation) में वृद्धि से डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में भी उल्लेखनीय गिरावट आई. इसको देखते हुए केंद्रीय बैंक ने बाजार में हस्तक्षेप किया. इससे कुल विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर से ज्यादा की कमी आई है. आरबीआई ने रुपये को थामने के लिए दूसरे कदम भी उठाए. इसमें रुपये में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना तथा विदेशों में रह रहे भारतीयों को बैंकों में जमा के लिये प्रोत्साहित करना शामिल है. केंद्रीय बैंक पायलट आधार पर डिजिटल रुपया (digital rupee) जारी कर और अपने प्रयासों से बैंकों के बही-खाते को मजबूत करने में सफल रहने से चर्चा में रहा. आरबीआई ने पायलट आधार पर थोक और खुदरा दोनों उपयोग के लिये केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) जारी की. इसके साथ इस साल बैंकों की वित्तीय सेहत भी बेहतर हुई हैं. बैंकों में फंसे कर्ज में उल्लेखनीय कमी आई है. यह आरबीआई (RBI) के पिछले पांच-छह साल से उठाये जा रहे कदमों का नतीजा हो सकता है.

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