पिछले कुछ महीनों से बार-बार ये बात सुनने में आ रही है कि दुनिया भर में मंदी (Recession) आने वाली है. अमेरिका के तो कई विशेषज्ञों ऐसा कहने भी लगे हैं कि वहां मंदी का दौर शुरू हो चुका है. पिछले हफ्तों में दुनिया भर के शेयर बाजारों में इसी मंदी के डर से एक तगड़ी गिरावट भी आई थी. मंदी का पता लगाना इतना आसान नहीं होता, इसका पता तब चलता है जब यह पूरी तरह से आ जाती है. मंदी आने से पहले सिर्फ इसका अनुमान लगाया जाता है. मंदी का पता लगाने के लिए वैसे तो बहुत सारे इंडेक्स हैं, लेकिन एक दिलचस्प इंडेक्स है जो लड़कियों की स्कर्ट से मंदी का अनुमान लगाता है.

क्या है स्कर्ट इंडेक्स?

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यह इंडेक्स सबसे पहले साल 1929 में चर्चा में आया था. ये बात है साल 1929 की, जब वॉल स्ट्रीट में भारी गिरावट हुई और अचानक से लड़कियों का छोटी स्कर्ट पहनना कम होना शुरू हो गया. यह पाया गया कि बेरोजगारी बढ़ने के साथ-साथ लड़कियों की स्कर्ट का साइज यानी लंबाई भी बढ़ती चली गई. 

कुछ ऐसा ही हुआ 1939 में, जब दुनिया दूसरे विश्व युद्ध की गिरफ्त में गई. उस दौरान तमाम देशों की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी. उस दौरान देखा गया कि बाजार से लेगिंग्स के फैब्रिक में कमई आने लगी और लड़कियों की स्कर्ट घुटनों तक लंबी हो गई. हालांकि, 1950 के करीब हालात बेहतर हुए और लड़कियों की स्कर्ट का साइज एक बार फिर से छोटा हो गया.

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अंडरवियर की सेल बताती है अर्थव्यवस्था का हाल

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के पूर्व प्रमुख एलन ग्रींसपैन (Alan Greenspan) मंदी पर कुछ इसी तरह नजर रखते थे. वह देखते थे कि पुरुषों के अंडरवियर की ब्रिक्री कैसी रही है और मंदी का अनुमान लगाते थे. अगर आप एलन ग्रींसपैन की इस थ्योरी को बेतुका समझ रहे हैं तो आप ये भी जान लीजिए कि उनकी गिनती बड़े अर्थशास्त्रियों में होती है. वह 1987 से लेकर 2006 तक फेडरल रिजर्व के प्रमुख भी रह चुके हैं. अभी वह करीब 98 साल के हो चुके हैं. 

वह मानते हैं कि वैसे तो पूरे साल अंडरवियर की बिक्री समान बनी रहती है, लेकिन अगर मंदी आने लगती है तो इसमें गिरावट देखने को मिलती है. इसके पीछे उनका तर्क ये होता है कि मंदी के दौरान लोग इतना अधिक दबाव महसूस करते हैं कि वह अंडरवियर पर भी कम पैसे खर्च करने लगते हैं. अंडरवियर एक जरूरी चीज है, जिस पर पैसे कम खर्च करने का मतलब है कि शख्स अधिक से अधिक पैसे भविष्य के लिए बचाना चाहता है या फिर उसके पास पैसे ही नहीं हैं. अंडरवियर पर लोग कम खर्च करने लगते हैं, क्योंकि वह कपड़ों के अंदर होता है, तो अगर वह थोड़ा पुराना या अगर थोड़ा फटा हुआ भी होगा तो उससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा.

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लिपस्टिक इंडेक्स के बारे में भी जान लें

पिछले एक दशक में प्रसिद्ध हुए सूचकांकों में से एक लिपस्टिक इंडेक्स भी है, जिसकी मदद से आर्थिक मंदी का पता लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल सबसे पहले एसटी लाउडर के चेयरमैन  Leonard Lauder ने किया था, जिन्होंने 2000 की मंदी में देखा कि महिलाओं की लिपस्टिक की सेल तेजी से बढ़ गई. कई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि आर्थिक हालात बेहतर होने पर महिलाएं ज्यादा कपड़े खरीदती हैं, जबकि इसकी तुलना में मंदी में महिलाएं लिपस्टिक ज्यादा खरीदती हैं. 

किसी अर्थव्यवस्था में लिपस्टिक की बिक्री के माध्यम से लंबे समय की मंदी का अनुमान लगाया जा सकता है. मुश्किल हालात में महिलाएं ज्यादा आकर्षक दिखने के लिए लिपस्टिक पर अधिक पैसे खर्च करने लगती हैं. यह देखा गया है कि ऐसे वक्त में महिलाओं की दिलचस्पी कपड़े, जूते, पर्स जैसी मंहगी चीजों से घटकर लिपस्टिक की तरफ मुड़ जाती है. मंदी की स्थिति में जहां एक ओर हर प्रोडक्ट की सेल घटती है, वहीं दूसरी ओर लिपस्टिक की सेल बढ़ने लगती है.