अनधिकृत अधिभार लगाने और उच्च एमडीआर शुल्क जैसे कारणों से ही प्रोत्साहन के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में डिजिटल भुगतान की वृद्धि आशातीत गति नहीं पकड़ सकी है. एक अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है. आईआईटी बंबई की ओर से किये गए एक अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया है कि भुगतान उत्पादों (जैसे-एमडीआर) के शुल्क में विकृति लाई जा रही है और बैंकों एवं बड़े व्यापारियों द्वारा धोखाधड़ीपूर्ण तरीके से अधिभार लिया जा रहा है.

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अध्ययन में कहा गया है, 'एक तरफ छोटे/मध्यम व्यापारियों और दूसरी तरफ ग्राहकों को इससे नुकसान हो रहा है. कुल मिलाकर इसका डिजिटल भुगतान को व्यापक बनाने के सरकार के प्रयासों में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं.' आकलन है कि व्यापारियों पर अकेले 2018 में ही क्रेडिट कार्ड मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) के रूप में 10,000 करोड़ रुपये का भार पड़ा है. 

 

वहीं डेबिट कार्ड एमडीआर के रूप में उनपर 3,500 रुपये की लागत आई है. हालांकि, मूल्य के रूप में बात करें तो क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड दोनों से 2018 में लगभग 5.7-5.7 लाख करोड़ रुपये मूल्य के लेनदेन हुए. सांख्यिकी के प्रोफेसर आशीष दास द्वारा किये गये इस अध्ययन में कहा गया है कि अनधिकृत अधिभार वसूलने से भी भुगतान प्रणाली का इस्तेमाल करने वालों पर काफी अतिरिक्त भार पड़ा है. 

(इनपुट एजेंसी से)