तेल निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) की अब क्रूड ऑयल पर 'बादशाहत' खत्‍म हो चुकी है. अब क्रूड प्रोडक्‍शन के 'राजा' अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप, रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादीमिर पुतिन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्‍मद बिन सलमान हैं. 2019 में क्रूड की कीमतों इन्‍हीं के एक्‍शन पर निर्भर करेंगी और आगे भी ऐसा होने की संभावना है. ऐसे में पेट्रोल की कीमतें भी इसी पर निर्भर होंगी कि क्रूड किस ओर जाता है. ये तीनों देश वैश्विक सप्‍लाई में सबसे आगे रहेंगे. इनका कुल तेल उत्‍पादन OPEC के 15 सदस्‍यों के प्रोडक्‍शन से कहीं ज्‍यादा है. भारत का सऊदी अरब और रूस से पहले से अच्‍छा तालमेल रहा है. अमेरिका से भी संबंधों में सुधार आया है. प्रतिबंध के बाद भी अमेरिका ने भारत को ईरान से तेल खरीदने की छूट दी है.

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जून में सऊदी अरब और रूस ने क्रूड का रिकॉर्ड उत्‍पादन किया. वहीं अमेरिका का उत्‍पादन भी जबरदस्‍त रहा. ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अुनसार जब क्रूड के दाम गिरने लगे तो सऊदी अरब ने कहा था कि वह 5 लाख बैरल प्रति दिन तेल निर्यात रोक देगा. साथ ही अन्‍य तेल उत्‍पादक देशों को चेतावनी दी थी कि वे 1 मीलियन बैरल प्रतिदिन का निर्यात रोकें. सऊदी अरब के इस कदम से पुतिन और ट्रंप सहमत दिखे थे. उनके टि्वटर हैंडिल पर ऐसा ही रिस्‍पांस आया था.

क्‍या है बिन सलमान की चुनौती

बिन सलमान सऊदी अरब का वारा-न्‍यारा करना चाहते हैं. इसके लिए उन्‍हें धन तेल के निर्यात से ही मिलता है. अंतरराष्‍ट्रीय मोनिटरी फंड (IMF) ने अनुमान लगाया है कि सऊदी अरब को अपना वित्‍तीय बजट संभालने के लिए 73.3 डॉलर प्रति बैरल के तेल की कीमत चाहिए होगी. ब्रंड क्रूड इस समय इस स्‍तर से 5 डॉलर नीचे हैं.

पुतिन और ट्रंप देंगे चुनौती

पुतिन दोबारा नहीं चाहते कि वह तेल उत्‍पादन कम या बंद करें. क्‍योंकि रूस की अर्थव्‍यवस्‍था तेल पर निर्भर नहीं है. हालांकि पुतिन और क्राउन प्रिंस के बीच राजनीतिक गठजोड़ मजबूत हुआ है लेकिन यह रूस को तेल उत्‍पादन घटाने पर मजबूर करने के लिए काफी नहीं है. पुतिन का कहना है कि क्रूड की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास अच्‍छी हैं. क्राउन प्रिंस और ट्रंप का राजनीतिक गठजोड़ भी मजबूत है. लेकिन पत्रकार जमाल खशेगी की हत्‍या से अमेरिकी सीनेटर खफा हैं. इससे तेल उत्‍पादन के मामले में अमेरिका-सऊदी अरब के संबंधों में तनाव आया है.

क्‍या है भारत की योजना

सऊदी अरब, अमेरिका और रूस के तेल उत्‍पादन बढ़ने के बीच भारत अलग ही योजना पर काम कर रहा है. वह ईरान, रूस जैसे मित्र राष्‍ट्रों से क्रूड ऑयल समेत विभिन्‍न उत्‍पादों की खरीदारी (इम्‍पोर्ट) डॉलर की बजाय रुपए में करने की पहल कर रहा है. हालांकि ईरान से रुपए में लेन-देन पहले भी हुआ है. जानकारों का कहना है कि रुपये में भुगतान की व्यवस्था से भारत के ईरान के साथ व्यापार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही देश में महंगाई घटेगी, क्‍योंकि भारत के लिए अभी सबसे बड़ी चिंता महंगे डॉलर में तेल की खरीदारी करना है. 

भारतीय व्यापार संवर्द्धन परिषद (TPCI) ने बीते दिनों कहा था कि अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन रुपये में भुगतान की व्यवस्था से दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहन मिलेगा. सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने हाल में ईरान से 12.5 लाख टन कच्चे तेल के आयात के लिए कांट्रेक्‍ट किया है. टीपीसीआई ने कहा कि यूको बैंक के वॉस्ट्रो खाते के जरिये रुपये में कारोबार से व्यापार का मौजूदा स्तर कायम रहेगा. हालांकि, यदि भारत इसका फायदा उठाते हुए ईरान की जरूरत के उत्पादों का निर्यात करता है, तो यह और बढ़ सकता है. टीपीसीआई वाणिज्य मंत्रालय समर्थित निकाय है. टीपीसीआई के चेयरमैन मोहित सिंगला ने कहा था कि भारत ने ईरान और रूस के संदर्भ में जो मजबूत कदम उठाए हैं उससे विश्व व्यापार में तटस्थ खिलाड़ी के रूप में भारत की छवि सुधरी है.