केंद्र सरकार लगातार सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए छोटे कारोबारियों को प्रोत्साहित कर रही है. वहीं, राज्य सरकारें भी इसे बढ़ावा दे रही हैं. ऐसे में ऑपरेशन फ्लड यानी की दुग्ध क्रांति का केंद्र रहा गुजरात का आणंद जिला अब ऑरेंज रिवेल्‍यूशन (सोलर एनर्जी) का केंद्र बन चुका है. यहां सिर्फ सरकारी और निजी स्‍तर पर सोलर पार्क ही नहीं विकसित हो रहे हैं, बल्कि खेती करने वाले किसान भी अब सोलर फार्मर बन गए हैं. इसकी शुरुआत आणंद जिले में थामणा गांव के रहने वाले रमणभाई परमार ने की है. परमार देश के पहले सोलर फार्मर हैं.

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बिजली बेचकर करते हैं कमाई

खेतों में सोलर पैनल लगाने वाले रमण परमार के मुताबिक, उन्‍होंने शुरुआती चार महीने में ही 7500 रुपए की बिजली बेची दी थी. इसके बाद लगातार कमाई जारी है. इन्‍होंने अपनी खेतिहर जमीन पर सोलर पैनल के माध्यम से बिजली पैदा कर उसे सरकार को बेचकर कमाई की है. वे अपने खेतों की सिंचाई सोलर पैनल से प्राप्त ऊर्जा से करते हैं. सरकारी बिजली आपूर्ति पर अब रमण की निर्भरता खत्म हो गई.

पायलट प्रोजेक्ट के चलते बने सोलर फार्मर

एग्रीकल्चर रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन,  इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट (आईडब्ल्यूएमआई) एवं टाटा प्रोग्राम के ज्वाइंट प्रोजेक्ट के चलते रमणभाई परमार को भारत का पहला ‘सोलर फार्मर’ चुना गया. वे चार साल से सौर ऊर्जा एकत्रित कर उसका उपयोग कर रहे हैं. बचने वाली बिजली बेच रहे हैं. आईडब्ल्यूएमआई की सलाहकार नेहा दुर्गा के मुताबिक, ‘हमने पहले सोलर फॉर्मर प्रोजेक्ट के लंबे सर्वे और रिसर्च के बाद आणंद के थामणा गांव के रमणभाई को चुना है.’

कुछ ऐसा है प्रोजेक्ट

चार साल पहले रमण परमार के खेत में 8.50 किलोवॉट की सोलर पैनल लगवाई गई. इससे उनका 7.4 एचपी पम्प चलाया गया. सोलर फॉर्मर सेटअप के लिए 60 वर्गमीटर जगह की जरूरत होती है. इससे साल में किसान 50 से 60 हजार की बिजली प्राप्त कर सकते हैं. आधी का उपयोग खुद कर लें तो भी 25 से 30 हजार का अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है.

ये है उद्देश्य

आईडब्ल्यूएमआई रिसर्च का उद्देश्य है कि देश के किसानों की ट्रेडिशनल पावर से निर्भरता को खत्म कर इंडिपेंडेंट बनाया जा सके. ताकि बिजली संकट के चलते फसलें बर्बाद न हों. किसानों को उनकी जरूरत से अधिक पैदा हुई बिजली बेचकर कमाई का विकल्प भी मिले. इससे ग्राउंड वाटर का दोहन भी कम होगा.

आधी रात नहीं जाना पड़ता पानी देने

रमण परमार का कहना है कि- वे खुश हैं क्योंकि उन्हें खेत की सिंचाई के लिए रतजगा नहीं करना पड़ता. मैं दिन में ही ये काम कर सकता हूं. इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने से मुझे कृषि उपज के साथ अतिरिक्त आवक का स्रोत भी मिला है.

ऐसे करते हैं कमाई

सोलर पैनल से एक इन्वर्टर लगा है. इसके जरिए पैदा होने वाली बिजली ग्रिड में जाती है. ग्रिड से सप्लाई होने पर ‘सोलर फॉर्मर’ कमाई कर सकता है.

बारामासी किसान हैं रमणभाई

पायलट प्रोजेक्ट के प्रभाव और व्यवहारिक पहलू के लिए ऐसे क्षेत्र-किसान की दरकार जहां हर समय उपज ली जा सके. किसान स्वयं ही कृषि कार्य करता हो. आणंद में आईडब्ल्यूएमआई ने अपना शोधकार्य पूरा किया है. रमणभाई केले की खेती करते हैं. 12 महीने उपज लेते हैं.