दिवाला एवं ऋणशोधन (आईबीसी) प्रक्रिया से गुजर रहे इस्पात क्षेत्र में मजबूत घरेलू मांग के बाद भी कम से कम अगले चार-पांच वर्ष तक नए संयंत्रों की संभावना नहीं है. उद्योग जगत तथा विश्लेषकों का मानना है कि कंपनियां अभी पुराने संयंत्रों के क्षमता विस्तार पर ही ध्यान देने वाली है. इस्पात की घरेलू मांग वित्त वर्ष 2017-18 में 910 लाख टन पर पहुंच गई. इसके साथ ही भारत इस्पात की खपत करने के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया. वित्त वर्ष 2017-18 में इस्पात की वैश्विक मांग जहां पांच प्रतिशत की दर से बढ़ी, वहीं घरेलू मांग की वृद्धि दर आठ प्रतिशत रही.

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क्रिसिल के अनुसार, करीब 220 लाख टन क्षमता की कंपनियां इस समय दिवाला कानून के तहत समाधान प्रक्रिया में विभिन्न राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरणों (एनसीएलटी) के समक्ष प्रस्तुत की गई हैं. क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण विभाग और शेयर बाजारों को दी गई जानकारी के अनुसार इन कंपनियों की क्षमता में 200-210 लाख टन सालाना तक का विस्तार करने की संभावनाएं हैं.

क्रिसिल रिसर्च के एक निदेशक राहुल प्रीतियानी ने कहा कि अगले चार से पांच साल तक इस्पात क्षेत्र में पहले से मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाकर ही वृद्धि का अनुमान है. उन्होंने कहा कि अभी इस्पात संयंत्रों की 80-81 प्रतिशत क्षमता का दोहन हो पा रहा है और विस्तार शुरू होते ही यह बढ़ने लगेगा. एनसीएलटी प्रक्रिया के जरिये भूषण स्टील और उषा मार्टिन का अधिग्रहण करने वाली कंपनी टाटा स्टील की योजना घरेलू क्षमता अभी के 130 लाख टन से बढ़ाकर 2025 तक 300 लाख टन सालाना करने की है.

टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक टी.वी.रविंद्रन ने हाल ही में कहा था, ‘‘हम भूषण स्टील और उषा मार्टिन दोनों की क्षमता में विस्तार करेंगे.’’जेएसडब्ल्यू स्टील की भी योजना मौजूदा 180 लाख टन की क्षमता को 40 प्रतिशत बढ़ाकर 250 लाख टन करने और इसके बाद 2030 तक 450 लाख टन करने की है.

(इनपुट एजेंसी से)