Explainer: क्या भारत में आएगी मंदी, इन आर्थिक आंकड़ों से समझे क्या हैं संकेत?
भारत की अर्थव्यवस्था की 65 फीसदी निर्भरता घरेलू खपत है. ऐसे स्थिति में ग्लोबल मंदी का असर भारतीय इकोनॉमी पर ज्यादा नहीं पड़ेगा.
दुनियाभर में मंदी की आशंका से चिंताएं बढ़ गई हैं. सोना-चांदी की कीमतों में उछाल और कच्चे तेल में गिरावट की वजह भी यही है. इसके अलावा डॉलर इंडेक्स में जारी उछाल और यूरोप, अमेरिका समेत अन्य विकसित देशों में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. ऐसे में अब महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंक मजबूरी में ब्याज दरें बढ़ा रही हैं. आर्थिक जानकार मान रहे हैं कि यूरोप, अमेरिका में मंदी की शुरुआत हो चुकी है, जबकि कुछ जानकार मान रहे हैं कि इन देशों में मंदी आने वाली है. ऐसे में क्या ग्लोबल मंदी का असर भारत पर पड़ेगा और क्या भारत में भी मंदी आने वाली है?
दुनियाभर में मंदी की चिंता हालात?
बढ़ती महंगाई के चलते UK की ग्रोथ रेट जुलाई में पिछली 3 तिमाहियों से लगातार सुस्त है. यहां महंगाई की दरें 40 साल की ऊंचाई पर पहुंच गई है. इसका ही असर रहा कि जुलाई GDP ग्रोथ अनुमान से 0.2 फीसदी कम रही. अमेरिका में भी GDP ग्रोथ सालाना आधार पर 1.6 फीसदी फिसल गई. ब्याज दरों में बढ़ोतरी, रिकॉर्ड महंगाई, शेयर बाजार में जारी उतार-चढ़ाव समेत अन्य कारणों से ग्रोथ पर बुरा असर पड़ा है. IMF के मुताबिक चीन की ग्रोथ इस साल 3.3 फीसदी रह सकती है, जोकि 4 दशक में सबसे कम होगी. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की ये हालत कोरोना के बाद रूस-युक्रेन युद्ध के चलते हुआ है.सरकार को उम्मीद है कि इस साल ग्रोथ की रफ्तार पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा और ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी रह सकती है.
ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ की धीमी रफ्तार की कई वजह हैं, जिसमें आर्थिक पैकेज के नाम पर भारी खर्च, सप्लाई चेन में रुकावट, यूक्रेन-रूस युद्ध और अन्य शामिल हैं. इसकी वजह से दुनियाभर में महंगाई बीते कई दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है.इससे महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंक मजबूरी में ब्याज दरें बढ़ा रही हैं.
भारत की ग्रोथ पर वर्ल्ड बैंक का अनुमान
ग्लोबल मंदी की चिंता से भारत भी अछूता नहीं रहा है. वर्ल्ड बैंक ने भारत पर इकोनॉमिक ग्रोथ के अनुमान के घटाया है, जिसे अब 7.5 फीसदी कर दिया है. वर्ल्ड बैंक ने पहले ग्रोथ की दर 8.7 फीसदी दिया था. ग्रोथ अनुमान घटाने के पीछे की वजह है महंगाई, सप्लाई चेन की दिक्कतें और जियोपॉलिटिकल टेंशन. हालांकि, सरकार को उम्मीद है कि इस साल ग्रोथ की रफ्तार पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा और ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी रह सकती है.
क्या होती है मंदी?
हम और आप सभी पिछले कुछ महीनों से मंदी (Recession) शब्द को काफी सुन रहे हैं. ऐसे में पहले समझते हैं कि मंदी क्या होती है, तो मंदी का मतलब है किसी भी देश में या वैश्विक स्तर पर इकोनॉमिक एक्टिवटी के आंकड़ों में बड़ी गिरावट देखी जाए. कमजोर इकोनॉमिक एक्टिविटी का साफ मतलब है कि प्रोडक्शन लगातार कम हो रहा है और यह कई महीनों या सालों तक सकता है. जब लगातार 2 तिमाहियों में विकास दर शून्य से नीचे रहती है तो उसे तकनीकी तौर पर मंदी करार दिया जाता है.
भारत के घरेलू आंकड़े क्या कहते हैं?
- जून तिमाही में GDP ग्रोथ 13.5 फीसदी रही, जो पिछली तिमाही में 4.1 फीसदी रही थी
- अगस्त में GST कलेक्शन 28 फीसदी बढ़कर 1.40 लाख करोड़ रुपए रहा
- 30 अगस्त तक के आकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन औसत ई-वे बिल्स 21 लाख रहीं, जो जुलाई के मुकाबले 2 फीसदी ज्यादा है
- मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) अगस्त में लगातार 14वें महीने 50 के पार यानी पॉजिटिव रहा , 56.2 रहा
- जुलाई में औद्योगिक उत्पादन ग्रोथ रेट 2.4 फीसदी रही, जो 4 महीने का निचला स्तर है
- अगस्त में खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी रही, जो जुलाई में 6.71 फीसदी थी
महंगाई को रोकने के लिए एक्शन में सरकार
- दलहन पर आयात शुल्क और सेस में कटौती
- खाने वाले तेल और तिलहन पर स्टॉक सीमा लागू
- प्याज तथा दलहन के लिए बफर स्टॉक बनाकर रखने की पहल
- गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध
- आटा, मैदा और सूजी के निर्यात पर प्रतिबंध
- Broken Rice के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध
- चावल के विभिन्न ग्रेड के निर्यात पर 20% ड्यूटी लगाई
- चीनी के एक्सपोर्ट पर रोक लगी
- स्टील और प्लास्टिक इंडस्ट्री को राहत देने के लिए कुछ रॉ मैटिरियल पर इंपोर्ट ड्यूटी हटाई
- आयरन ओर के निर्यात पर एक्सपोर्ट ड्यूटी 50 % बढ़ाई
- पेट्रोल की कीमतें 9.5 रुपए और डीजल 7 रुपए प्रति लीटर घटाई
क्या ग्लोबल मंदी की हवा भारत तक पहुंचेगी?
ग्लोबल मार्केट के जानकार अजय बग्गा कहते हैं कि भारत में मंदी की संभावना नहीं है. हालांकि, ग्रोथ की रफ्तार धीमी पड़ सकती है. दरअसल, भारत की अर्थव्यवस्था की 65 फीसदी निर्भरता घरेलू खपत है. ऐसे स्थिति में ग्लोबल मंदी का असर भारतीय इकोनॉमी पर ज्यादा नहीं पड़ेगा. अगर दुनिया के बाकी देशों में मंदी आई तो इसका फायदा भारत को मिल सकता है. क्योंकि ग्लोबल मंदी से क्रूड की डिमांड पर असर पड़ेगा, जिससे कच्चे तेल की कीमतें घटेंगी. तेल की कीमतों में गिरावट से तेल का बिल कम आएगा. लेकिन ग्लोबल मंदी से नुकसान भी है, क्योंकि इससे एक्सपोर्ट घट सकता है. इससे टेक्सटाइल, लेदर, जेम्स एंड ज्वेलरी, फार्मा और IT सेक्टर पर पड़ सकता है.
ग्लोबल मंदी का असर शेयर बाजार पर पड़ेगा?
अजय बग्गा ने बताया कि ग्लोबल मंदी का असर शेयर बाजार पर भी पड़ेगा. उदाहरण के तौर पर 2008 की घटना देख सकते हैं. इसके अलावा 2019 में भी बाजार पर ग्लोबल चिंताओं का असर देखने को मिला. चुंकि निफ्टी 50 कंपनियों की 40 फीसदी आय विदेशों से आती है. ऐसे में ग्लोबल मंदी का असर शेयर पर दिख सकता है.