RBI MPC Meeting: रिजर्व बैंक (RBI) की तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक सोमवार (5 दिसंबर) से शुरू हो गई है. तीन दिन की बैठक के नतीजों की घोषणा 7 दिसंबर को की जाएगी. MPC की मीटिंग में महंगाई को काबू करने के लिए ब्याज दर में बढ़ोतरी पर फैसला हो सकता है. एक्‍सपर्ट व एलीमेंट्स प्‍लेटफॉर्म्‍स के चेयरमैन अजय बग्‍गा ने कहा कि अभी इकोनॉमी को ग्रोथ की जरूरत है. लेकिन, महंगाई के टारगेट और घरेलू चिंताओं के चलते ब्‍याज दरों में 35 बेसिस प्‍वाइंट का इजाफा हो सकता है. 

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अजय बग्‍गा का कहना है, ''पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने महंगाई को लेकर 4 फीसदी (2 फीसदी कम या ज्‍यादा) का आंकड़ा लिया था, उससे मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं. भारत जैसे देश में आपको थोड़ी इन्‍फ्लेशन लानी पड़ेगी, क्‍योंकि इसका बहुत मजबूत कोरिलेशन ग्रोथ के साथ है. नॉमिनल ग्रोथ तो बहुत आसान है. इकोनॉमी को लेकर यह बात साफ है कि नॉमिनल ग्रोथ रहेगी, तो आपकी इकोनॉमी बड़ेगी. लेकिन, डिफ्लेशन लाकर भारत में जो गरीब तबका है उसकी आमदनी बिलकुल खत्‍म कर सकते हैं. पहले ही आरबीआई ने रेपो रेट 4 फीसदी से 5.9 फीसदी लाया है, मेरा यही मानना है कि अभी रुक जाना चाहिए. इसका इम्‍पैक्‍ट पूरी इकोनॉमी में आ जाए.'' 

RBI को क्‍यों महंगा करना पड़ सकता है कर्ज?

अजय बग्‍गा का कहना है, अगर आप देखें तो क्रेडिट 14 फीसदी बढ़ रहे हैं और डिपॉजिट 9 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं. इसका मतलब कि किल्‍लत आ रही है. मार्केट से लिक्विडिटी निकल रही है. मनी मार्केट में लिक्विडिटी टाइट हो रही है. रिजर्व बैंक काफी सफल हो गया. इन्‍फ्लेशन नीचे की ओर है. तेल की कीमत 120 डॉलर से 87 डॉलर आ गई है. उससे भी राहत मिली है. अब उसके सामने आरबीआई के लिए क्‍या दिक्‍कतें है, उनका टारगेट 4 फीसदी (2 फीसदी कम/ज्‍यादा) है. महंगाई 10 महीने 6 फीसदी से ज्‍यादा रही. उनका संसद को भी चिट्टी लिखनी पड़ी, जो कॉन्फिडेंशियल है. उन्‍होंने उपाय बताए हैं कि आगे क्‍या करेंगे. अब ये दूसरी बात है कि इन्‍फ्लेशन बाहर से आई. ये अंदरूनी इन्फ्लेशन नहीं है. तेल और कमोडिटी की कीमतें बढ़ने के कारण बाहर से महंगाई आई.

35 बेसिस प्‍वाइंट की बढ़ोतरी संभव 

अजय बग्‍गा कहते हैं, दूसरी तिमाही के नंबर बता रहे हैं पर्सनल कंजम्‍शन की डिमांड में अभी तक ज्‍यादा नहीं आई है. नवंबर के ऑटो के नंबर ज्‍यादा अच्‍छे नहीं हैं. लीडिंग इंडिकेटर दिखा रहे हैं कि इकोनॉमी में थोड़ी मंदी आती हुई दिख रही है. ग्रोथ उतनी मजबूत नहीं है. ऐसे समय में अगर रिजर्व बैंक और हॉकिश होता है तो ग्रोथ के मोर्चे पर मुश्किल पड़ती है.

उन्‍होंने कहा, ''महंगाई के टारगेट और घरेलू चिंताओं के चलते मुझे लगता है कि 35 बेसिस प्‍वाइंट बढ़ाएंगे. मेरी निजी सोच यही थी कि इस बार ब्‍याज दरों में बढ़ोतरी छोड़ सकते थे लेकिन उनके उपर महंगाई का दबाव बहुत रहेगा इसलिए 35 बेसिस प्‍वाइंट की बढ़ोतरी होगी. फिर फरवरी में 25 बेसिस प्‍वाइंट बढ़ोतरी करके 6.5 फीसदी पर इस रेट हाइक का साइकिल का खत्‍म हो जाना चाहिए. बशर्ते कोई बहुत बड़ा संकट न आए.''

 

उन्‍होंने कहा कि सरकार का फिस्‍कल डेफिसिट 6 फीसदी से ज्‍यादा है. हमारा डेट टू जीडीपी रेश्‍यो बढ़ता जा रहा है. ऐसे में हर बार अगर रेट बढ़ा रहे हैं, तो सरकार का इंटरेस्‍ट आउटगो ज्‍यादा होता है. कंपनीज और हाउसहोल्‍ड का भी का इंटरेस्‍ट आउटगो ज्‍यादा जाता है. यानी, उन्‍हें लोन पर ज्‍यादा ब्‍याज चुकाना पड़ता है. इससे इकोनॉमी पर असर पड़ता है. जब रेट्स लगातार बढ़ते हैं, तो इकोनॉमी स्‍लोडाउन होने लगती है. मेरे ख्‍याल से तो नहीं बढ़ाना चाहिए लेकिन विवशतावश बढ़ाना पड़ेगा.