भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के निवेश को लेकर एक ऑपरेशनल फ्रेमवर्क जारी किया है. इसके तहत यदि किसी इकाई का निवेश निर्धारित सीमा को लांघता है, तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में री-क्लासिफाइड किया जाएगा. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा वर्तमान में अपने निवेशक समूह (FPI) के साथ किया गया निवेश कुल चुकता इक्विटी पूंजी (कंपनी के विभिन्न विकल्पों में मौजूद सभी शेयरों सहित) के 10 प्रतिशत से कम होना चाहिए. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

निर्धारित सीमा का उल्लंघन कर निवेश करने वाले किसी भी FPI के पास उल्लंघन करने वाले लेनदेन के निपटान की तारीख से पांच कारोबारी दिन के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा निर्दिष्ट शर्तों के अधीन अपनी हिस्सेदारी को बेचने या ऐसी हिस्सेदारी को FDI के रूप में री-क्लासिफाइड करने का विकल्प है. आरबीआई ने FPI द्वारा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को FDI में री-क्लासिफाइड करने के लिए एक ऑपरेशनल फ्रेमवर्क जारी की है. 

इस रूपरेखा के अनुसार, संबंधित FPI को सरकार से आवश्यक अनुमोदन तथा संबंधित भारतीय निवेशकर्ता कंपनी की सहमति लेनी होगी. पुनर्वर्गीकरण के लिए ऐसे FPI द्वारा किए गए संपूर्ण निवेश की जानकारी विदेशी मुद्रा प्रबंधन (भुगतान का तरीका तथा गैर-ऋण साधनों की जानकारी) विनियम, 2019 के तहत निर्दिष्ट समयसीमा के भीतर दी जानी चाहिए. 

केंद्रीय बैंक ने कहा कि जानकारी देने के बाद FPI को अपने ‘कस्टोडियन’ से संपर्क कर भारतीय कंपनी के इक्विटी माध्यमों को अपने विदेशी पोर्टफोलियो निवेश डीमैट खाते से अपने FDI को रखने के लिए बनाए गए डीमैट खाते में स्थानांतरित करने का अनुरोध करना चाहिए. आरबीआई ने कहा कि ये निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं.