उत्तराखंड कैबिनेट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को दी मंजूरी, राज्य विधानसभा में पेश होगा बिल, जानिए क्या होंगे प्रावधान
Uttarakhand Uniform Civil Code: उत्तराखंड सरकार के मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसौदे को मंजूरी दे दी है. जानिए क्या हो सकते हैं इस बिल के प्रावधान.
Uttarakhand Uniform Civil Code: उत्तराखंड सरकार के मंत्रीमंडल ने समान नागरिक संहित यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड के ड्रॉफ्ट को मंजूरी दे दी है. इसी के साथ इस बिल को विधानसभा में पेश होने का रास्ता साफ हो गया है. सीएम पुष्कर सिंह धामी की सरकार आगामी विधानसभा सत्र में इस बिल को पेश कर सकती है. गौरतलब है कि दो फरवरी को यूनिफॉर्म सिविल कोड पर गठित कमेटी ने राज्य सरकार को मसौदा सौंप दिया था. यदि विधानसभा से ये बिल पारित हो जाता है तो आजादी के बाद उत्तराखंड इस कानून को राज्य करने वाला पहला राज्य बन जाएगा.
Uttarakhand Uniform Civil Code: बहुविवाह और बाल विवाह पर लगेगा प्रतिबंध, शादी का रजिस्ट्रेशन करना होगा जरूरी
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के यूसीसी के मसौदा की प्रमुख सिफारिशों में बहुविवाह और बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध,सभी धर्मों की लड़कियों के लिए विवाह योग्य समान आयु और तलाक के लिए समान आधार व प्रक्रियाएं शामिल होने की बात कही जा रही है. लड़कों और लड़कियों को समान विरासत का अधिकार होगा, विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया जाएगा और लड़कियों के लिए विवाह योग्य आयु बढ़ाई जाएगी, ताकि वे शादी से पहले स्नातक तक की पढ़ाई कर सकें.
Uttarakhand Uniform Civil Code: इन लोगों को नहीं मिलेगी सरकारी सुविधा, मुस्लिम महिलाओं को मिलेगा गोद लेने का अधिकार
पीटीआई के सूत्रों ने कहा कि जिन जोड़ों की शादियां पंजीकृत नहीं हैं, उन्हें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी और ग्रामीण स्तर पर विवाह पंजीकरण की व्यवस्था की जाएगी. मुस्लिम महिलाओं को भी गोद लेने का अधिकार होगा और इसकी प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि हलाला और ‘इद्दत’ की प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि इसके अलावा, ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ के बारे में जानकारी देना अनिवार्य होगा.
Uttarakhand Uniform Civil Code: महिला, पुरुष को होंगे एक जैसे तलाक के अधिकार, दादा-दादी को मिलेगी कस्टडी
सूत्रों ने बताया कि मसौदे में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए तलाक के मामले में समान आधार और बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने की सिफारिश की गई है. उन्होंने कहा कि अदालत के माध्यम से तलाक दी जा सकेगी और ऐसे मामलों में सभी को ‘सोचने-समझने’ के लिए छह महीने का समय दिया जाएगा. सूत्रों ने कहा कि माता-पिता के बीच विवाद होने पर बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी को दी जा सकती है, साथ ही अनाथ बच्चों की संरक्षक बनाने की प्रक्रिया सरल की जाएगी.
Uttarakhand Uniform Civil Code: ऐसे तय हो सकती है माता-पिता की जिम्मेदारी
सूत्रों के अनुसार, यदि परिवार में एकमात्र कमाने वाले बेटे की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी पत्नी को दिए जाने वाले मुआवजे से उसके माता-पिता की देखभाल करना भी शामिल होगा. अगर महिला पुनर्विवाह करती है तो भी उसे अपने पहले पति की मृत्यु पर मिलने वाले मुआवजे को उसके माता-पिता के साथ साझा करना होगा, इसके अलावा यदि महिला की मृत्यु हो जाती है और उसके माता-पिता की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, तो उनकी देखभाल करना उसके पति की जिम्मेदारी होगी.