UP Lok Sabha Election Analysis:  उत्तर प्रदेश में 18वीं लोकसभा के लिए सात चरण के चुनाव के पहले चरण के लिए बुधवार को अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो रही है. पहले चरण में राज्य की आठ संसदीय सीटों - सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना (अनुसूचित जाति), मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होगा. पिछले लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो पिछली बार का लोकसभा चुनाव सपा-बसपा और रालोद ने साथ मिलकर लड़ा था. 

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इन 8 सीटों में से 5 सीटें सपा-बसपा की झोली में गई थीं. सहारनपुर, बिजनौर और नगीना बसपा की झोली में गई थीं, जबकि मोरादाबाद और रामपुर समाजवादी पार्टी (एसपी) को मिली थीं. लेकिन इस बार बीजेपी और आरएलडी एक साथ हैं. कांग्रेस और सपा मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और बसपा ने अलग से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. ऐसे में क्‍या भाजपा और रालोद का गठबंधन पश्चिमी यूपी की इन 8 सीटों की तस्‍वीर को बदल पाएगा? ये देखना काफी दिलचस्‍प होगा.

भाजपा को पहले चरण के चुनाव से काफी उम्‍मीदें

इस बार उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव से भाजपा को काफी उम्मीदें हैं. राष्ट्रीय लोक दल के सहयोग से भाजपा को यहां सभी सीटें जीतने का भरोसा है. एक पार्टी पदाधिकारी का कहना है कि भाजपा-रालोद गठबंधन पहले चरण में जीत हासिल करेगा. जनता का मूड और चुनावी गणित भी हमारे पक्ष में है. इस बार भाजपा ने बिजनौर सीट सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल को दे दी है, लेकिन अन्य सीटों पर वह सावधानी से कदम बढ़ा रही है. 

बिजनौर सीट पर रालोद का प्रत्‍याशी लड़ेगा चुनाव

रालोद ने अपने मीरापुर विधायक चंदन चौहान, जो कि एक गुर्जर समाज से हैं, को बिजनौर में सपा के दलित उम्मीदवार यशवीर सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा है. बसपा ने जाट बिजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है, जो रालोद छोड़कर मायावती की पार्टी में शामिल हुए थे. रामपुर में, भाजपा ने घनश्याम लोधी को मैदान में उतारा है, जिन्होंने 2022 के उपचुनाव में सपा के असीम राजा को हराया था, जब एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए सपा नेता आजम खान की अयोग्यता के बाद सीट खाली हो गई थी.

रामपुर में अब तक सपा ने घोषित नहीं किया प्रत्‍याशी

कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली सपा ने अभी तक रामपुर के लिए अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन आजम खान फैक्टर एक भूमिका निभा सकता है, भले ही उनका पूरा परिवार इस बार चुनाव से गायब है. भाजपा सहारनपुर पर दोबारा कब्ज़ा करने की कोशिश कर रही है. जहां 2019 में बसपा के हाजी फैजुर्रहमान ने उसके उम्मीदवार राघव लखन पाल को 24 हजार वोटों से हराया था. मुरादाबाद में 2019 में सपा के एस.टी. हसन ने जीत हासिल की थी. इस सीट पर इस बार भी भाजपा उम्मीद लगाए है.हालांकि, भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अभी तक इन दोनों सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित नहीं किए हैं.

कैराना का मुकाबला भी होगा दिलचस्‍प

कैराना में भी मुकाबला दिलचस्प हो सकता है. यह सीट 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले हिंदू परिवारों के पलायन की खबरों के बीच सुर्खियों में आई थी. भाजपा ने मौजूदा सांसद प्रदीप चौधरी, जो कि एक गुर्जर हैं, को सपा के कैराना विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा हसन के खिलाफ फिर मैदान में उतारा है. लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से अंतर्राष्ट्रीय कानून में स्नातकोत्तर इकरा ने 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान नाहिद के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया था.

संयोग से, कैराना पर खींचतान के कारण ही रालोद ने सपा से अपना नाता तोड़ लिया था क्योंकि अखिलेश यादव इस सीट से इकरा को चुनाव लड़ाना चाहते थे. बसपा ने अभी तक किसी उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया है, हालांकि ऐसी अटकलें हैं कि सपा के मुस्लिम वोटों को काटने के लिए मायावती किसी मुस्लिम को चुन सकती हैं. मुजफ्फरनगर में भाजपा अपने मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान पर भरोसा कर रही है, जिन्होंने 2019 में तत्कालीन रालोद प्रमुख अजीत सिंह को 6,500 वोटों के मामूली अंतर से हराया था. वह जाट समुदाय से हैं. उनका मुकाबला इसी समुदाय के सपा के हरेंद्र मलिक से है. बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारकर ओबीसी कार्ड खेला है.

नगीना सीट पर बसपा ने नहीं खोले हैं पत्‍ते

नगीना की आरक्षित सीट 2019 में बसपा के गिरीश चंद्र ने भाजपा के यशवंत सिंह को हराकर जीती थी और अब उम्मीदवारों में बदलाव देखने को मिलेगा. भाजपा ने यशवंत सिंह की जगह जाटव विधायक ओम कुमार को चुना है. उनका मुकाबला सपा के मनोज कुमार से है. बसपा ने अभी तक अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. ऐसी अटकलें हैं कि दलित नेता और आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद भी नगीना से चुनावी मैदान में उतरेंगे और अगर वह ऐसा करते हैं, तो मुकाबला और दिलचस्प हो जाएगा.

पीलीभीत सीट पर सबकी नजर

पहले चरण में फोकस पीलीभीत सीट पर भी है क्योंकि भाजपा ने अभी तक अपने मौजूदा सांसद वरुण गांधी को मैदान में उतारने का फैसला नहीं किया है जो 2021 में कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के बाद से अपनी ही पार्टी की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी पहले ही कह चुकी है कि अगर वरुण गांधी भाजपा के साथ नहीं जाते हैं तो वह पीलीभीत से उन्हें मैदान में उतारने पर विचार कर सकती है. भाजपा द्वारा 2021 में मां-बेटे को राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति से बाहर करने के बाद, सुल्तानपुर से सांसद वरुण गांधी की मां मेनका गांधी भी पार्टी में कम कम सक्रिय दिख रही हैं. भाजपा वरुण गांधी को अपने उम्मीदवार के रूप में नामित करती है या नहीं, ये तो जल्‍द ही स्‍पष्‍ट हो जाएगा, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि पीलीभीत का मुकाबला दिलचस्प होने वाला है.