Lok Sabha Results 2024: चार जून यानी मंगलवार को सुबह लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना की शुरुआत होने के साथ ही धीरे-धीरे रुझान सामने आने लगेंगे और फिर अपराह्न होते-होते लगभग यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में आकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रिकार्ड की बराबरी कर लेंगे या फिर साल 2004 की तरह ही कुछ ऐसे चौंकाने वाले नतीजे सामने आएंगे, जिसकी उम्मीद विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन कर रहा है. 

विपक्ष का सबकुछ दांव पर

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ज्यादातर ‘एग्जिट पोल’ इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का पलड़ा भारी है. इसके अलावा कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना रहा है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए दांव पर यही है कि उसकी जीत कैसी होती है और किन-किन नए क्षेत्रों में वह अपने पैर पसार पाती है, जबकि राष्ट्रीय क्षितिज पर लगातार कमजोर होते जा रहे विपक्ष के लिए इस चुनाव में सब कुछ दांव पर लगा हुआ है. 

एग्जिट पोल में मोदी सरकार 400 पार

अंतिम चरण के मतदान के बाद ज्यादातर ‘एग्जिट पोल’ के पूर्वानुमानों में राजग गठबंधन को 400 पार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के करीब दिखाया गया है, वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए 180 सीटों के आंकड़े तक पहुंचने का अनुमान जताया गया है. अतीत में जाकर हम देखें तो चुनावी फैसलों को सभी राजनीतिक दलों द्वारा स्वीकार किया गया है, हालांकि कभी भी निर्वाचन आयोग पर ऐसे गंभीर आरोप नहीं लगे जैसा कि इस बार के चुनाव में विपक्षी दलों ने उस पर लगाए हैं. 

विपक्ष ने खारिज किया एग्जिट पोल

मतगणना से पहले, एग्जिट पोल में सत्तारूढ़ गठबंधन की भारी जीत का पूर्वानुमान व्यक्त किये जाने के बाद सत्ता पक्ष और विपक्षी खेमों के बीच आरोप- प्रत्यारोप का दौर भी शुरु हो गया है. कड़वाहट भरे लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘एक्जिट पोल’ को ‘मोदी मीडिया पोल’ कहकर सरसरी तौर पर खारिज कर दिया है. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर संदेह जताते रहे ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं ने प्रधानमंत्री पर इन ‘काल्पनिक’ ‘एग्जिट पोल’ के जरिए नौकरशाही को संकेत भेजने का आरोप लगाया और मतगणना संबंधी दिशानिर्देशों का पालन करने का आग्रह करते हुए निर्वाचन आयोग का दरवाजा खटखटाया. 

अपने जवाबी हमले में, भाजपा ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारत की चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता पर सवाल उठाने का आरोप लगाया है और आयोग से मतों की गिनती के दौरान ‘हिंसा और अशांति’ के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए कहा है. 

हमलावर है विपक्ष

बहरहाल, अब तो नतीजे ही बताएंगे कि क्या 2014 के बाद से देशभर में लगातार कमजोर होती जा रही कांग्रेस के संगठन और नेतृत्व में भाजपा को चुनौती देने की क्षमता है. लगातार दो लोकसभा चुनावों में वह मुख्य विपक्षी दल का दर्जा पाने तक में भी विफल रही है और वह कुछ राज्यों तक सिमट कर रह गई है. 

पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और मुख्य प्रचारक राहुल गांधी समेत पार्टी नेताओं ने दावा किया है कि 543 सदस्यीय लोकसभा में उनके गठबंधन को 295 सीटें मिलेंगी और इसके साथ ही मोदी युग का अंत हो जाएगा. ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं का दावा है कि उनका गठबंधन जन कल्याण को केंद्र में रखकर और संविधान व आरक्षण पर कथित खतरे के इर्द-गिर्द चुनावी विमर्श को आकार देने में सफल रहा और उसे जनता का समर्थन मिलेगा. 

क्या मोदी करेंगे नेहरू की बराबरी?

भाजपा अगर सत्ता में आती है, तो मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के उस रिकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे, जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी को लगातार तीन चुनावी जीत दिलाई थी. अगर वह विफल होते हैं, तो वह रिकॉर्ड से चूक जाएंगे. 

विपक्षी दलों ने इस चुनाव में अक्सर यह दलील दी है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे 2004 के तर्ज पर आएंगे. साल 2004 के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने ‘फील गुड फैक्टर’ और ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दिया था और प्रचार माध्यमों से एक ऐसा माहौल बनाया गया था कि वह सत्ता में लौट ही रहे हैं, लेकिन जब नतीजे आए तो उसे हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी. 

इन राज्यों में है अनिश्चितता

बहरहाल, इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ क्रमश: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), बीजू जनता दल (बीजद) और वाईएसआर कांग्रेस सहित कई क्षेत्रीय दलों के अलावा वाम दलों के भविष्य को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है. मोदी ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में ताकत बढ़ाने के भाजपा के प्रयासों का नेतृत्व किया है और इस बार उसे इन दोनों ही राज्यों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. 

ओडिशा और आंध्र प्रदेश में विधानसभा की जंग

साल 2019 के विधानसभा चुनाव में ओडिशा में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी थी, वहीं इस बार एग्जिट पोल के अनुमानों में इन दोनों ही राज्यों में भाजपा को शीर्ष पर दिखाया गया है. ओडिशा में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ ही हुए हैं. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व में वर्ष 2000 से राज्य की सत्ता पर काबिज बीजद और भाजपा के बीच इस बार सत्ता के लिए कड़ा मुकाबला है. इसके साथ ही वाईएसआरसीपी शासित आंध्र प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव हुए हैं. इस राज्य में भाजपा ने तेदेपा के साथ गठबंधन किया है. 

क्या गिरेगा दक्षिण का दुर्ग?

एक और मुद्दा जिसने इस चुनाव सुर्खियां बटोरीं, वह यह है कि क्या भाजपा तमिलनाडु और वाम शासित केरल में एक मजबूत ताकत के रूप में उभर पाएगी. इन दोनों ही राज्यों में वर्तमान में उसके पास कोई सीट नहीं है. इस बार उसके इन दोनों राज्यों में कुछ सीटें जीतने का अनुमान जताया गया है. 

सत्ता में वापसी को लेकर हमेशा से आश्वस्त रहे मोदी नतीजों से पहले ही देश के लिए अपने विजन के बारे में एक लेख लिख चुके हैं और 'X' पर पोस्ट कर चुके हैं. इसमें उन्होंने दावा किया है कि लोगों ने राजग को समर्थन और विपक्ष को खारिज किया है. चुनाव के नतीजे शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे क्षेत्रीय दिग्गजों की किस्मत भी तय करेंगे. दोनों ही नेताओं के नेतृत्व वाली पार्टियां में टूट हो गई और टूट को अंजाम देने वाले धड़ों ने भाजपा से हाथ मिला लिया. महाराष्ट्र में शिवसेना और राकांपा के दोनों गुटों ने जनता का समर्थन हासिल करने के लिए इस चुनाव में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था.