1, 2 या 3 भारत में एक साथ कितनी सीटों से लड़ सकते हैं चुनाव? दो पर लड़े और दोनों पर जीत गए तो क्या होता है?
Lok Sabha Election 2024: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1957 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश के तीन लोकसभा क्षेत्रों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें जीत सिर्फ बलरामपुर से मिली थी.
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के तीसरे चरण के लिए आज वोटिंग हो रही है. ये चुनाव 7 चरणों में संपन्न होने हैं. पिछली बार की तरह इस बार भी राहुल गांधी दो सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. साल 2019 में उन्होंने वायनाड और अमेठी से चुनाव लड़ा था, लेकिन वो अमेठी से चुनाव हार गए थे. इस बार राहुल गांधी वायनाड और रायबरेली (Rahul Gandhi Lok Sabha Seats) से चुनाव लड़ रहे हैं.
राहुल गांधी के अलावा इस बार ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की भी चर्चा है. लोकसभा के साथ ही ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं. ऐसे में नवीन पटनायक ने भी दो विधानसभा सीटों हिंजली और कांटाबांजी सीट से नामांकन दायर किया है. दो सीट से चुनाव लड़ना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी, लाल कृष्ण आडवाणी समेत तमाम राजनेता एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ चुके हैं. आइए आपको बताते हैं कि भारत में राजनेता कितनी सीटों से एक साथ चुनाव लड़ सकते हैं.
अटल बिहारी 3 सीटों पर लड़ चुके हैं चुनाव
आज के समय में बेशक राजनेता कई बार दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं, लेकिन वर्ष 1996 तक राजनेता कितनी भी सीटों पर चुनाव लड़ सकते थे. 1996 से पहले कुछ नेताओं ने तीन-तीन सीटों से भी चुनाव लड़ा है. इसमें देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी शामिल है. अटल बिहारी वाजपेयी ने 1957 के आम चुनाव मेंउत्तर प्रदेश के तीन लोकसभा क्षेत्रों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें जीत सिर्फ बलरामपुर से मिली थी.
बाद में हुआ नियम में संशोधन
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People Act) की धारा 33 किसी व्यक्ति की उम्मीदवारी के लिए सीटों की सीमा तय करती है. 1996 से पहले जब कुछ नेता कई सीटों पर चुनाव लड़ते थे, तो इस पर सवाल उठने लगे. तमाम आपत्तियों को देखते हुए 1996 में इसमें संशोधन कर दिया गया. अब जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 (7) के तहत अधिकतम दो सीटों से ही चुनाव लड़ा जा सकता है.
दोनों सीटों पर चुनाव जीते तो क्या होता है?
आमतौर पर जब किसी प्रत्याशी को किसी सीट से हार का डर होता है तो वो दो सीटों से चुनाव लड़ता है. मान लीजिए कि अगर उम्मीदवार दोनों सीटों पर चुनाव जीत जाता है, तो नियम के अनुसार उसे एक सीट खाली करनी होती है और ऐसा 10 दिनों के अंदर करना होता है. फिर उस सीट पर उपचुनाव करवाए जाते हैं. हालांकि दो सीटों से चुनाव लड़ने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं क्योंकि इससे सरकार को राजस्व का नुकसान होता है. जुलाई 2004 में चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा 33(7) में संशोधन की सिफारिश की थी. चुनाव आयोग ने सुझाव दिया था कि दोनों सीटें जीतने और एक से इस्तीफा देने पर उपचुनाव का खर्च सीट खाली करने वाले सांसद से ही वसूला जाना चाहिए.
कई दिग्गज लड़ चुके हैं दो सीटों पर चुनाव
साल 1980 के आम चुनाव में इंदिरागांधी ने रायबरेली के साथ मेडक से भी चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की. इसके बाद वे रायबरेली सीट से सांसद बनी थीं, मेडक सीट उन्होंने खाली कर दी थी. 1991 में अटल बिहारी ने लखनऊ और विदिशा से चुनाव लड़ा, वहीं लाल कृष्ण आडवाणी ने नई दिल्ली और गांधीनगर से चुनाव लड़ा, सोनिया गांधी ने भी सियासी पारी दो सीटों बेल्लारी और अमेठी से शुरू की थी, वहीं सपा के पूर्व प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी 2014 के आम चुनाव में मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़े थे. इनके अलावा इस लिस्ट में और भी तमाम दिग्गजों के नाम शामिल हैं.