India crude oil import: रसियन ऑयल को लेकर जारी विवाद के बीच पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि आने वाले दिनों में भारत जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल गल्फ देशों से खरीदेगा. भारत अपने लिए सुरक्षित और किफायती ऊर्जा का सोर्स चाहता है. सऊदी अरब, इराक के तेल का भारत परंपरागत खरीदार रहा है. हालांकि, बीते कुछ महीनों में रूस से आयात बढ़ा है. इंडियन रिफाइनरीज पिछले कुछ महीनों से रूस से डिस्काउंटेड रेट पर क्रूड ऑयल खरीद रहे हैं. अप्रैल और मई के महीने में भारत का रूस से क्रूड ऑयल इंपोर्ट में 4.7 गुना उछाल आया. वह रोजाना आधार पर 4 लाख बैरल तेल खरीद रहा था.

सऊदी अरब से आयात में 25 फीसदी उछाल

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सऊदी अरब ने भी तेल की कीमत में कटौती की जिसके बाद जुलाई के महीने में उससे तेल खरीदारी में 25 फीसदी का उछाल आया. भारत को तेल सप्लाई करने के मामले में सऊदी अरब अभी पहले पायदान पर है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत करते हुए पुरी ने कहा कि आने वाले दिनों में भारत सऊदी अरब, इराक, अबूधाबी, कुवैत जैसे गल्फ देशों से ज्यादा से ज्यादा तेल खरीदेगा.

रूस से आयात में गिरावट आ रही है

जुलाई के महीने में भारत ने रूस से जून के मुकाबले 7.3 फीसदी कम तेल खरीदा. वहां से ऑयल इंपोर्ट में गिरावट देखी जा रही है. इसके बावजूद वह तीसरे नंबर का सप्लायर है. पुरी ने कहा कि मार्च 2022 तक भारत केवल 0.2 फीसदी रसियन ऑयल खरीद रहा था. उसके बाद हालात बदले और भारत ने डिस्काउंटेड रसियन ऑयल का बड़े पैमाने पर आयात करने लगा. क्या रूस से भारत का तेल आयात बढ़ेगा या घटेगा? इसके जवाब में पुरी ने कहा कि अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.

रूस से ऑयल इंपोर्ट जारी रखने की सलाह

एक तरफ पीएम मोदी अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से भारत के बेहतर संबंध के पक्षधर हैं. दूसरी तरफ भारतीय अधिकारियो का कहना है कि घरेलू जरूरत देश के लिए ज्यादा अहम है और इस लिहाज से रूस ज्यादा भरोसेमंद पार्टनर है. तेल की बढ़ती कीमत को लेकर पुरी ने कहा कि इसके लिए केवल यूक्रेन पर रूस का हमला जिम्मेदार नहीं है. ग्लोबल पॉलिटिकल सिचुएशन के कारण सप्लाई और डिमांड का खेल बिगड़ गया है, जिसके कारण कच्चा तेल महंगा हो गया है.

प्रोडक्शन में कटौती के बावजूद कीमत में गिरावट

सोमवार को ओपेक प्लस देशों ने अक्टूबर से ऑयल प्रोडक्शन में रोजाना 1 लाख बैरल कटौती का फैसला किया. इस फैसले के बावजूद  कच्चा तेल इस समय 93 डॉलर के स्तर पर है. दरअसल यूरोप में मंदी के संकेत मिल रहे हैं. चीन की आर्थिक गतिविधियों में भी सुस्ती आई है और कोरोना के मामले बढ़ने के कारण करीब 33 शहरों में किसी ना किसी रूप से लॉकडाउन की स्थिति है. ऐसे में मांग को लेकर नकारात्मक खबरों के कारण क्रूड में गिरावट आई है.