निवेश का नया ट्रेंड बनता जा रहा है को-वर्किंग स्पेस और को-लिविंग, यहां जानें सबकुछ
Investment : पहली तिमाही के आंकड़ों के तरफ देखा जाए तो को-वर्किंग का मार्केट 25 प्रतिशत बढ़ा है. को-वर्किंग यानी किसी भी प्लेयर को शांत वातावरण में बैठकर काम करने की सुविधा और साथ में बिजली कनेक्शन, वाई-फाई और पैंट्री भी.
एक तरफ देश जहां आर्थिक सुस्ती से जूझ रहा है, तो वहीं निवेशक इस बात से परेशान हैं कि कहां निवेश करें, ताकि अच्छा मुनाफा कमाया जा सके. पिछले कुछ सालों से निवेश के लिए एक नया ट्रेंड बना है और वो है को-वर्किंग स्पेस और को-लिविंग. बढ़ती लागत की वजह से कंपनियां काफी परेशान हैं. इस परेशानी को कम करने के लिए को-वर्किंग का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है.
पहली तिमाही के आंकड़ों के तरफ देखा जाए तो को-वर्किंग का मार्केट 25 प्रतिशत बढ़ा है. को-वर्किंग यानी किसी भी प्लेयर को शांत वातावरण में बैठकर काम करने की सुविधा और साथ में बिजली कनेक्शन, वाई-फाई और पैंट्री भी. आप 10-15 हजार देकर को-वर्किंग स्पेस बुक कर सकते हैं. निवेश की बात करें तो स्प्रिंग बोर्ड को-वर्किंग में काफी एक्टिव है. स्मार्टवर्क्स ने भी इसमें निवेश किया हुआ है. ओयो और द हाइव भी को-वर्किंग मार्केट में पहले से मौजूद हैं.
स्मार्टवर्क्स के को-फाउंडर हर्ष बियानी कहते हैं कि हमें बहुत कॉन्फिडेंस है कि अगले कुछ सालों में ओवरऑल रीयल एस्टेट ग्रोथ में यह कारोबार काफी अहम स्थान हासिल करेगा. एक इंडस्ट्री के रूप में को-वर्किंग लगातार दहाई अंकों में आगे बढ़ रहा है. अगले कुछ साल में यह कारोबार 100 मिलियन स्क्वायर फुट स्पेस तक आसानी से पहुंच जाएगा.
निवेश के अवसर को-वर्किंग तक ही सीमित नहीं हैं. को-वर्किंग के साथ को-लिविंग का ट्रेंड भी तेजी से बढ़ रहा है. हायर स्टडीज के लिए लाखों स्टूडेंट बाहर से आते हैं और ऐसे में कंपनियां को-लिविंग के जरिये स्टूडेंट को रहने और खाने-पीने की सुविधा दे रहे हैं. वह भी महज 8000 रुपये में. यानी इतनी रकम में खाना-पीना, एसी कमरा और गेमिंग की सुविधा मिल जाती है. काफी कंपनियां जैसे ऑक्सफोर्डकैप्स ऐप के जरिये स्टूडेंट का पीजी में आने-जाने का समय रिकॉर्ज रखती हैं. ये रिकॉर्ड माता-पिता के साथ शेयर भी किए जाते हैं.
ऑक्सफोर्डकैप्स की को-फाउंडर और सीओओ प्रियंका गेरा कहती हैं कि स्टूडेंट लिविंग मार्केट भारत में को-लिविंग का बड़ा हिस्सा हैं. स्टूडेंट लिविंग मार्केट को भारत में अगर देखें तो यह एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का है. यह करीब 20 बिलियन डॉलर के आस-पास है. अभी जितने ऑपरेटर्स इस स्पेस में हैं वो संगठित हैं. इसमें निवेश अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत हैं. उम्मीद है आने वाले समय में यह ट्रेंड टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में भी तेजी से बढ़ेंगे और इनकम के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी लाएंगे.