दिवाला कानून लागू होने के बाद से पिछले दो साल के दौरान प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से 3 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज का समाधान करने में मदद मिली है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी. दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता सहिंता (IBC) के तहत समाधान के लिये अब तक 9,000 से अधिक मामले आए हैं. इस कानून को दिसंबर 2016 में लागू किया गया. कॉरपोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास ने कहा कि आईबीसी का करीब तीन लाख करोड़ रुपये की फंसी परिसंपत्तियों पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से असर हुआ है और फंसे कर्ज के समाधान में मदद मिली है.

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इस राशि में समाधान योजना के माध्यम से हुई वसूली और राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) के समक्ष आने से पहले निपटाए गए मामलों से प्राप्त राशि भी शामिल की गई है. उन्होंने कहा कि 3,500 से अधिक मामलों को एनसीएलटी में लाने से पहले ही सुलझा लिया गया और इसके परिणास्वरूप 1.2 लाख करोड़ रुपये के दावों का निपटारा हुआ. आईबीसी के तहत, एनसीएलटी से अनुमति मिलने के बाद ही मामले को समाधान के लिए आगे बढ़ाया जाता है.

श्रीनिवास ने कहा कि करीब 1,300 मामलों को समाधान के लिए रखा गया और इनमें से 400 के आसपास मामलों में कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. 60 मामलों में समाधान योजना को मंजूरी मिल गई है, 240 मामलों में परिसमापन के आदेश दिए गए हैं जबकि 126 मामलों में अपील की गई है. इन मामलों में से जिनका समाधान हो गया उनसे अब तक 71,000 करोड़ रुपये की वसूली हुई है.

आईबीसी के तहत परिपक्वता के चरण में पहुंच चुके मामलों में 50,000 करोड़ रुपये और मिल जाने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि कानून की समाधान प्रक्रिया के तहत प्राप्त राशि और जल्द मिलने वाली राशि को यदि जोड़ लिया जाए तो कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये आए हैं. इसमें यदि एनसीएलटी प्रक्रिया में आने से पहले ही सुलझा लिए गए मामलों को भी जोड़ दिया जाए तो यह राशि 2.4 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी.

सचिव ने जोर देते हुए कहा कि जिन खातों में मूल और ब्याज की किस्त आनी बंद हो गई थी और वह गैर-मानक खातों में तब्दील हो गए थे, कानून लागू होने के बाद इनमें से कई खातों में किस्त और ब्याज आने लगा और ये खाते एनपीए से बदलकर स्टैंडर्ड खाते हो गए. ऐसे खातों में कर्जदार ने बकाये का भुगतान किया. यह राशि 45,000 से 50,000 करोड़ रुपये के दायरे में है. उन्होंने कहा कि इस प्रकार करीब तीन लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज पर आईबीसी का सीधा या परोक्ष असर हुआ है.

इसके अलावा, श्रीनिवास ने कहा कि एनसीएलटी, दिवाला समाधान पेशेवरों और कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) के साथ कुछ दिक्कतें हैं. कॉरपोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास और आईबीबीआई के चेयरपर्सन साहू दोनों यहां आयोजित 'समाधान प्रक्रिया में दक्षता सुनिश्चित करने' पर आयोजित सम्मेलन में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि आज, मुझे लगता है कि 3,200 ज्यादा मामले दाखिल होने के लिये 90 दिन से अधिक समय से लंबित है. इसलिये किसे दोष दिया जाये? मैं एनसीएलटी को दोष नहीं दूंगा लेकिन एनसीएलटी को समय को लेकर अधिक सतर्क होने की जरूरत है."

उन्होंने कहा कि समाधान प्रक्रिया और यहां तक कि बोलियों के मूल्यांकन की प्रक्रिया में पहुंची इकाइयों के संबंध में रुचि पत्र तैयार करने में देरी होने के भी उदाहरण है. ये ऐसे मामले हैं जिनमें दिवाला समाधान पेशेवरों को गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए.

श्रीनिवास ने जोर देते हुए कहा कि कर्जदाताओं की समिति को वास्तव में ज्यादा जिम्मेदार, ज्यादा सशक्त और ज्यादा जवाबदेह होना चाहिए. आखिरकार, वे ही हैं जो निर्णय ले रहे हैं. उनका निर्णय ही सार्वजनिक हित और राष्ट्र हित को प्रभावित करता है. भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एम एस साहू ने कहा कि इस तरह का सुझाव नहीं दिया जा सकता है कि सभी तरह की समस्याओं के समाधान के लिये केवल आईबीसी पर ही निर्भर रहा जाए. आईबीसी के तहत सभी पक्षों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए.