कोरोना वैक्सीनेशन अभियान से भारत में बची 34 लाख जानें, अर्थव्यवस्था को 15.17 लाख करोड़ रुपए के नुकसान से भी बचाया
कोरोना वैश्विक महामारी ने कई देशों की कमर तोड़ दी. वहीं, भारत के वैक्सीन अभियान ने 34 लाख जिंदगियों को बचाया है. यही नहीं, इस कारण अर्थव्यवस्था को 18.3 अरब डॉलर के नुकसान से बचाया. इसका खुलासा अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में हुआ है.
कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ जंग में भारत का वैक्सीनेशन अभियान एक कारगर हथियार साबित हुआ. इस अभियान ने भारत में न केवल 30 लाख से अधिक जिंदगियों को बचाया बल्कि अर्थव्यवस्था के 18.3 अरब डॉलर के बड़े नुकसान से बचा लिया. ये खुलासा अमेरिका की स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध में हुआ है. यही नहीं, रिपोर्ट में लॉकडाउन के फैसले पर भी पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार की तारीफ की है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इस रिपोर्ट को जारी किया है.
34 लाख लोगों की बची जान
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की इस रिपोर्ट का शीर्षक है- हीलिंग द इकोनॉमीः एस्टीमेटिंग द इकोनॉमिक ऑफ इंडियाज वैक्सीनेशन एंड रिलेटेड मेजर्स . इस रिपोर्ट में दावा किया गया है राष्ट्रव्यापी वैक्सीन कैंपेन से 34 लाख लोगों की जान बची है. यही नहीं, इस ड्राइव के कारण अर्थव्यवस्था भी दोबारा पटरी पर वापस लौटी. रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन के कारण भारत को 18.3 अरब डॉलर के नुकसान से बचाया था. इस मौके पर डॉ. मनसुख मंडाविया ने बताया कि अभी तक देश में 220 करोड़ वैक्सीन की खुराक दी जा चुकी है. पहली डोज का कवरेज 97 फीसदी और दूसरी डोज का कवरेज 90 फीसदी तक पहुंच गया है.
राहत पैकेज से मिली सहायता
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान सरकार की तरफ से दिए गए राहत पैकेज ने अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाया. कोविड काल के दौरान छोटे बिजनेस, MSME को मदद मिली. केंद्र, राज्यों और जिला के स्तर पर तालमेल अच्छा रहा, इससे लोगों को फायदा मिला. राहत पैकेज के कारण देश की अर्थव्यवस्था को 100.26 अरब डॉलर का फायदा पहुंचा. ये जीडीपी का लगभग 4.90 फीसदी है. वहीं, रिपोर्ट में पीएम मोदी के लॉकडाउन लगाने के फैसले की भी तारीफ की है. रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने सही वक्त पर लॉकडाउन लगाया.
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रिपोर्ट आगे कहती है कि 11 अप्रैल को देश में कोरोना के साढ़े सात हजार मामले थे. यदि लॉकडाउन नहीं लगाया जाता तो ये संख्या दो लाख से अधिक तक पहुंच सकती थी. भारत में पहली पीक आने में 175 दिन लगे थे. वहीं, यूरोप, कनाडा समेत कई देशों में ये पीक 50 दिन में ही आ गई थी.