ब्याज दरों में कटौती के भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्णय से ब्याज दरों में तो कमी आएगी ही, लेकिन यह इससे भी आगे जाकर 1 व्यापक संदेश देता है, जिसका समग्र अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा. आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, "जहां तक असर का सवाल है, दरों में कटौती का अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा. यह केवल इतना नहीं है कि कर्ज की दरों में कटौती होगी या ऐसा कुछ होगा, बल्कि यह बहुत स्पष्ट रुख देता है."

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आरबीआई ने गुरुवार को वाणिज्यिक बैंकों के लिए प्रमुख ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती की थी, जिसके बाद यह 6.25 फीसदी हो गया. यह पिछले डेढ़ सालों में आरबीआई द्वारा की गई पहली कटौती है. इसके अलावा आरबीआई ने मौद्रिक नीति को लेकर अपना रुख 'जांच-परख कर कड़ा करने' से बदलकर 'तटस्थ' कर लिया है.

उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति न सिर्फ सरकार की ब्याज दरों, बांड दरों को प्रभावित करती है, बल्कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा किए गए निवेश को भी प्रभावित करती है. उन्होंने कहा, "निवेश का फैसला काफी हद तक अर्थव्यवस्था की प्रचलित ब्याज दरों से प्रभावित होता है. तार्किक रूप से कम ब्याज दरों की स्थिति में निवेश बढ़ना चाहिए, लेकिन निवेश में बढ़ोतरी के लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं, ब्याज दरें कोई इकलौता एक्सक्लूसिव कारक नहीं है."

यह पूछे जाने पर कि क्या निकट भविष्य में भी वे आसान मौद्रिक नीति की प्रवृत्ति की उम्मीद करते हैं? उन्होंने कहा कि सबकुछ अभी से दो महीने बाद की स्थिति पर निर्भर करता है, जब दरों की समीक्षा के लिए एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) की अगली बैठक होगी. 

यह पूछे जाने पर कि क्या आरबीआई द्वारा अंतरिम लाभांश सरकार को हस्तांतरित किए जाने की उम्मीद ैहै? गर्ग ने कहा कि बैंक का केंद्रीय निदेशक मंडल इस पर फैसला करेगा, जो कि बैंक के लाभ और उसकी जरूरतों के आधार पर तय होगा. उसके बाद की रकम के हस्तांतरण की बात आएगी. 

वित्त वर्ष 2018-19 के बजट अनुमानों में सरकार ने आकलन किया है कि आरबीआई से उसे 68,000 करोड़ रुपये का लाभांश प्राप्त होगा, जिसमें से सरकार को अबतक 40,000 करोड़ रुपये मिल चुके हैं. आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक 18 फरवरी को होगी.