लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार जीएसटी (GST) जैसी एक और व्‍यवस्‍था ला सकती है. यह व्‍यवस्‍था ईज ऑफ डुइंग (कारोबार में सहूलियत) बिजनेस के तहत आ सकती है. एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो सरकार इस व्‍यवस्‍था में फाइनेंशियल इंस्‍ट्रूमेंट ट्रांसफर करने के लिए स्‍टांप ड्यूटी की दरें पूरे देश में एक कर देगी. फाइनेंशियल इंस्‍ट्रूमेंट में शेयर, डिबेंचर आदि आते हैं, जिसे दूसरे को ट्रांसफर करने के लिए स्‍टांप पेपर की मदद लेनी पड़ती है. इसमें काफी खर्च आता है.

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जीएसटी 2017 में शुरू हुआ

जीएसटी की शुरुआत 2017 में हुई थी. इससे सरकार के कर राजस्‍व संग्रह में काफी बढ़ोतरी दर्ज हुई है. मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि स्‍टांप ड्यूटी अधिनियम करीब 100 साल पुराना है. इसे अब सरकार बदलने पर विचार कर रही है.

प्रस्‍ताव लोकसभा में दिसंबर में पेश होगा

केंद्र सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि प्रस्‍ताव तैयार हो चुका है और सभी राज्‍य भी इस पर अमल करने को तैयार हैं. इसे संसद के विंटर (शीत) सत्र में लोकसभा में पेश किया जा सकता है.

जीएसटी के दायरे से बाहर है स्‍टांप शुल्‍क

अधिकारी ने टाइम्‍स नॉऊ से कहा कि इस कदम से राज्‍यों के राजस्‍व को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. स्‍टांप ड्यूटी की दर हर राज्‍य में अलग-अलग है. इसका ज्‍यादा इस्‍तेमाल जमीन या संपत्ति की खरीद-फरोख्‍त में होता है. यह अभी जीएसटी के दायरे से बाहर है.

क्‍या-क्‍या आता है फाइनेंशियल इंस्‍ट्रूमेंट में

संसद के मुताबिक फाइनेंशियल इंस्‍ट्रूमेंट में बिल ऑफ एक्‍सचेंज, चेक, प्रॉमिसरी नोट, लेटर ऑफ क्रेडिट, बीमा पॉलिसी, शेयर ट्रांसफर और कई और चीजें आती हैं. राज्‍य अपने हिसाब से इस पर अलग-अलग ड्यूटी चार्ज करते हैं.

 

1899 में बना था अधिनियम

स्‍टांप ड्यूटी को पूरे देश में एकीकृत बनाने के लिए कई बार प्रयास हुए, लेकिन 1899 के अधिनियम को बदला नहीं जा सका. राज्‍य इसके लिए कभी तैयार नहीं होते थे.