विदेशी कंपनियों ने चीन के बाजारों से खींचा हाथ, क्या ड्रैगन की हालत हुई खस्ता? क्या कहते हैं आंकड़े
विदेशी कारोबार तेजी से चीन से पैसा निकाल रहे हैं और वहां निवेश कम कर रहे हैं. चीन ने सितंबर के अंत तक तीन महीनों में विदेशी निवेश में 11.8 बिलियन डॉलर की कमी दर्ज की. 1998 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है.
विदेशी कारोबार तेजी से चीन से पैसा निकाल रहे हैं और वहां निवेश कम कर रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में मंगलवार को आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए यह कहा गया है. BBC की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की धीमी होती अर्थव्यवस्था, कम ब्याज दरें और अमेरिका के साथ भू-राजनीतिक खींचतान ने इसकी आर्थिक क्षमता पर संदेह पैदा कर दिया है.
चीन और अमेरिका की अहम बैठक
इस सप्ताह सभी की नजर चीन और अमेरिका के राष्ट्रपति के बीच होने वाली अहम बैठक पर होगी. इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) के निक मैरो ने कहा कि भूराजनीतिक जोखिम, घरेलू नीति में अनिश्चितता और धीमी वृद्धि के बारे में चिंताएं कंपनियों को वैकल्पिक बाजारों के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर रही हैं.
25 साल में पहला Downfall
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने सितंबर के अंत तक तीन महीनों में विदेशी निवेश में 11.8 बिलियन डॉलर की कमी दर्ज की. 1998 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है. इससे पता चलता है कि विदेशी कंपनियां अपना मुनाफा चीन में दोबारा निवेश नहीं कर रही हैं, बल्कि वे पैसा देश से बाहर ले जा रही हैं.
चीन की धीमी वृद्धि
स्विस औद्योगिक मशीनरी निर्माता ऑरलिकॉन के एक प्रवक्ता का कहना है कि चीन इस समय धीमी वृद्धि का सामना कर रहा है और इसमें कुछ सुधार करने की जरूरत है. प्रवक्ता कहते हैं, 2022 में, हम पहली कंपनी थे जिसने कहा था कि चीन में आर्थिक मंदी का असर हमारे कारोबार पर पड़ेगा. परिणामस्वरूप, हमने इन प्रभावों को कम करने के लिए उपायों को लागू करना शुरू कर दिया.
कंपनी के लिए चीन एक प्रमुख बाजार बना हुआ है. देश भर में इसके करीब 2,000 कर्मचारी हैं, जो इसकी बिक्री का एक तिहाई से अधिक हिस्सा है. BBC की रिपोर्ट के अनुसार, ऑरलिकॉन ने कहा कि अगले कुछ वर्षों में चीनी अर्थव्यवस्था में अभी भी लगभग 5 फीसदी की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है.
बड़े बाजारों ने किया भारत का रुख
कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से, ऑरलिकॉन जैसे व्यवसायों ने दुनिया के सबसे बड़े बाजार में परिचालन की चुनौतियों का सामना किया है. चीन ने अपनी "शून्य-कोविड" नीति के माध्यम से दुनिया के सबसे सख्त महामारी लॉकडाउन लागू किया था. इससे कई कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान पैदा हुआ, जैसे कि एप्पल, जो अपने अधिकांश आईफोन चीन में बनाती है. तब से कंपनी ने कुछ उत्पादन भारत में स्थानांतरित कर अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाई है.