Food Crisis: दुनियाभर में चावल की सप्लाई प्रभावित होने से खाद्य संकट बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. ऐसे में चावल के दाम बढ़ने से रोकने और सप्लाई बनाए रखने के लिए सरकार लगातार एक्शन में बनी हुई है. पिछले हफ्ते चावल के निर्यात पर बैन लगाया गया है, अब एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध के बाद सरकार ने Distilleries को भी चावल सप्लाई पर पुनर्विचार करने को कहा है. FCI से सप्लाई धीमी हुई है.

गेहूँ पर भी बढ़ी चिंता

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उधर, गेहूं के स्टॉक लिमिट लगाने के बाद भी कीमतों में कमी नहीं आई है. घटने की बजाय दामों में ऊपर का रुख देखा जा रहा है. ऐसे में सरकार त्योहारी सीज़न को देखते हुए कई विकल्पों पर विचार कर रही है. इम्पोर्ट ड्यूटी हटाने या घटी दर के साथ आयात सम्भव हो सकता है. राज्यों को स्टॉक लिमिट और डिस्क्लोजर स्टॉक की सख्ती से जांच को कहा जा सकता है. इसके अलावा, चीनी और खाद्य तेल पर भी सरकार की नजर बनी हुई है. रूस द्वारा Black Sea Grain Deal से पीछे हटना स्ट्रेटजी में बदलाव की वजह है.

चावल पर क्यों लगा बैन?

सरकार ने आगामी त्योहारों के दौरान घरेलू सप्लाई बढ़ाने और खुदरा कीमतों को काबू में रखने के लिए पिछले हफ्ते गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. देश से निर्यात होने वाले कुल चावल में गैर-बासमती सफेद चावल की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत है. विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की एक अधिसूचना के अनुसार, ‘‘गैर-बासमती सफेद चावल (अर्ध-मिल्ड या पूरी तरह से मिल्ड चावल, चाहे पॉलिश किया हुआ हो या नहीं) की निर्यात नीति को मुक्त से प्रतिबंधित कर दिया गया है.’’ 

मंत्रालय ने कहा, ‘‘उचित कीमतों पर पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गैर बासमती सफेद चावल की निर्यात नीति में संशोधन किया गया है.’’ इस कदम का उद्देश्य आगामी त्योहारी मौसम में कम कीमत और पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना है. घरेलू बाजार में गैर-बासमती सफेद चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने और स्थानीय कीमतों में वृद्धि को कम करने के लिए, सरकार ने तत्काल प्रभाव से निर्यात नीति में संशोधन कर इसे '20 प्रतिशत के निर्यात शुल्क के साथ मुक्त' से 'निषेध' श्रेणी में कर दिया है.

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