FM on ZEE: मिडिल क्लास, ग्रोथ, क्रिप्टो जैसे मुद्दों पर वित्त मंत्री का सबसे बड़ा इंटरव्यू, समझें बजट में 'अमृतकाल' का ब्लूप्रिंट
FM on ZEE: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- यह तय करना काफी मुश्किल है. इसके बदले ये सोचना चाहिए कि कौन सा बजट चैलेंजिंग था. पिछले साल 2021 का बजट और बजट 2022 काफी चैलेंजिंग थे. क्योंकि, कोविड-19 अभी खत्म नहीं हुआ है.
FM on ZEE: इंडियन इकोनॉमी को बूस्ट और भारत को आत्मनिर्भर (Aatmanirbhar) बनाने के लिए केंद्र सरकार ने अगले 25 साल का ग्रोथ रोडमैप तैयार किया है. माहौल चुनावी था, लेकिन वित्त मंत्री (Finance Minister) ने आर्थिक रफ्तार देने को प्राथमिकता देते हुए बजट के जरिए देश को ग्रोथ की वैक्सीन दी है. बजट 2022 को लेकर सरकार में किस तरह की प्लानिंग थी. निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) के कार्यकाल का कौन सा बजट उन्हें खुद पसंद आया? क्रिप्टोकरेंसी पर टैक्स (Tax on Crypto) लगाने के पीछे क्या सोच थी? ऐसे ही सवालों के लिए ज़ी बिजनेस और ज़ी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी और ज़ी बिज़नेस की एग्जिक्यूटिव एडिर स्वाति खंडेलवाल ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से खास बातचीत की.
सवाल- आपने 4 बजट पेश किए हैं, कौन सा बजट सबसे बेस्ट लगा? ये वाला या इससे पहले वाला?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- यह तय करना काफी मुश्किल है. इसके बदले ये सोचना चाहिए कि कौन सा बजट चैलेंजिंग था. पिछले साल 2021 का बजट और बजट 2022 काफी चैलेंजिंग थे. क्योंकि, कोविड-19 अभी खत्म नहीं हुआ है. अभी है. पिछला बजट जब पेश किया गया तो इंडस्ट्रियल रिवाइवल की चुनौतियां थीं. इसलिए वो बजट तैयार किया गया उस रिवाइवल को बरकरार रखने के लिए. मगर तुरन्त हमने कोरोना की सेकेंड वेव का सामना किया. उससे बहुत सेक्शन जिन्हें रिवाइवल की जरूरत थी, जैसे- हॉस्पिटैलिटी सेक्टर और डिलिवरी, एयरपोर्ट ग्राउंड स्टॉफ, होटल-रेस्त्रां, सैलून, ब्यूटी पार्लर सब पर इम्पैक्ट हुआ. तो वो बजट एक चैलेंजिंग बजट हमने बनाया. लेकिन, इस साल जब हम तैयारी में हैं और ओमिक्रॉन का वेव सेट हो चुका है. बजट पेश करने से लगातार चैलेंज आए. फिर भी अगर ये सवाल पूछा जाए कि कौन सा बजट चैलेंजिंग लगता है तो इसका जवाब आसान नहीं है. फिर हर भारतीय नागरिकों का धन्यवाद देना चाहती हूं. किसी को राहत मिली या नहीं मिली. फिर भी वो इकोनॉमी के लिए कुछ न कुछ योगदान कर रहे हैं.
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सवाल- आजादी के बाद से इस तरह का चैलेंज किसी वित्तमंत्री के सामने नहीं आया, जब ऐसी स्थिति में बजट बनाना हो, आपको लगा कि एक स्पेशल ट्रेनिंग की जरूरत थी, क्योंकि सबसे मुश्किल दौर के दो बजट आपने पेश किए? तो कभी लगा नहीं कि ये कैसे हो पाएगा..?
वित्त मंत्री ने कहा- प्रधानमंत्री ने इस दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लगातार कंसल्टेशन चलाए. आमने-सामने बैठना संभव नहीं था. लगभग हर वर्ग के साथ उनके मन में क्या चल रहा है ये जानना की कोशिश की. वो एक्सपेक्टेशन क्या है. मेरे स्तर पर भी बातचीत हुई और उसके बाद फाइनेंस की टीम ने हर वर्ग को क्या चाहिए और क्या देना चाहिए. ये चैलेंज था. कठिन परिस्थितियों में राहत देने की कोशिश की. ऐसे देखें तो 2 बजट काफी मुश्किल थे. लेकिन, लॉकडाउन के बाद कम से कम 5 ऐसे अनाउंसमेंट किए गए, जो बजट की तरह ही थे. कभी नहीं देखा ऐसा दौर, लेकिन इन दो बजट के साथ-साथ एक ही साल में कई बजट पेश किए, जिसमें हर वर्ग का ध्यान रखा गया. प्रधानमंत्री खुद इस पर बैठकर तैयार कराते थे. वो सिर्फ फाइनेंस पर नहीं छोड़ते.
सवाल- अब सीधे इस बजट की बात करते हैं. सबसे ज्यादा जिस बात की चर्चा हो रही है वो है क्रिप्टोकरेंसी, कुछ लोग कन्फ्यूजन में हैं. 30% पर टैक्स लगेगा. तो क्या आपने इस लीगल कर दिया गया है? क्या 30% के बाद अलग से GST भी लगेगा? क्या ये लॉटरी की तरह होगा? क्या ये गैम्बलिंग होगा?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- इस पर हमेशा क्लैरिफिकेशन देंगे. लेकिन, क्रिप्टोकरेंसी, डिजिटल करेंसी इन सब शब्दों के पीछे हमें थोड़ा सोचना चाहिए. करेंसी होती जिसे सरकार की मान्यता हो और उसकी कोई वैल्यू हो. वो चीज करेंसी होती है. जब सरकार इसे इश्यू करती है तो ही उसकी कोई वैल्यू होगी. आप और मैं कुछ जारी करें तो वो करेंसी नहीं है. सरकार की अथॉरिटी के साथ देश का सेंट्रल बैंक उसे इश्यू करता है तो उसे करेंसी माना जाता है. ट्रेडशनली ऐसा ही होता है. और मॉर्डन टाइम में जब डिजिटली इश्यू करते हैं तो डिजिटल करेंसी होती है. उसे करेंसी कहते हैं. लेकिन, जो माइनिंग के साथ ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर जारी किया जाता है. कुछ हद तक वो एसेट हो सकता है, लेकिन करेंसी नहीं हो सकता. ये अंतर हमें समझना चाहिए. लेकिन, अगर कोई एसेट क्रिएट हो रही है तो किसी भी तरह की. तो उस पर ट्रांजैक्शन के जरिए आप कुछ प्रॉफिट कमा रहे हो तो उस प्रॉफिट पर हमने टैक्स लगाया है. अगर ट्राजैक्शन के जरिए कुछ बेच रहे हो या कमा रहे हो तो उस पर टैक्स लगाना पड़ता है. अगर किसी ने कुछ नहीं कमाया सिर्फ एक से दूसरे को ट्रांसफर की तो उस ट्रांजैक्शन के ऊपर भी TDS लगेगा. टैक्स इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि, ट्रांजैक्शन हो रही है. इसके ऊपर हमें इसे रेगुलेट करें या नहीं करें इसके लिए कंसल्टेशन कर रहे हैं. सबके साथ कर रहे हैं. सबका ओपनियन लेकर कुछ फैसला लेंगे
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— Zee Business (@ZeeBusiness) February 3, 2022
सवाल- बजट पेश करते हुए आपने कहा ग्रोथ ओरियंटेड बजट है और हमने भी इसे ग्रोथ बूस्टर की तरह देखा. 25 साल के लिए तैयार रहे हैं. 25 साल के लिए कैसे समझें की भूमिका बन रही है. 7.5 लाख करोड़ रुपए कैपेक्स की बात की गई है.
वित्त मंत्री ने कहा- बजट की शुरुआत में हमने कहा- हम ट्वीन ट्रैक कर रख रहे हैं. पहला ट्रैक है, जो पहले से चल रहा है इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए. दूसरा पब्लिक एक्सपेंडिचर इन इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए ही हम ये महामारी से जूझती अर्थव्यवस्था को हम रिवाइव करेंगे. पिछले साल भी काफी बढ़ाकर के रखा. इस साल भी बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपए का कैपेक्स रखा. पब्लिक एक्सपेंडिचर के जरिए रोड, ट्रांसपोर्ट, एयरपोर्ट, वाटरवेज, इकोनॉमिक कोरिडोर पर खर्च होगा. लेकिन, कन्वेंशनल एनालिसिस में ये बोला जाता है कि 1 रुपया खर्च करने में 2.95 रुपए का बेनिफिट होता है. मतलब इकोनॉमिक एक्टिविटी चलती रहेगी. जॉब्स क्रिएट होंगी. सीमेंट, स्टील सेक्टर को फायदा मिलेगा. लेकिन, कैपेक्स के जरिए नहीं करके बल्कि सीधे तौर पर आपके हाथ में पैसा दिया जाए तो 1 रुपया के बदले सिर्फ 0.95 पैसा ही फायदा होगा. इसलिए हम यही सोचते हैं कि अगर खर्च करोगे तो मल्टीप्लायर में आपको रिजल्ट मिलेगा. जॉब भी मिलेगी. डिमांड भी बढ़ेगी. और डिमांड सिर्फ स्टील और सीमेंट की नहीं बढ़ेगी बल्कि वहां काम करने वाला खर्च, उनके आने जाने का खर्च में भी फायदा मिलेगा. इसलिए मल्टीप्लायर में खर्च तभी ज्यादा फायदा मिलेगा.
सवाल- मिडिल क्लास को बजट से क्या मिला? हर बार उम्मीद होती है कि मिडिल क्लास को कुछ मिलेगा. लेकिन, इस बजट को देखते हुए हम मान लें कि अब हमें ऐसे बजट ही देखने को मिलेंगे?
वित्त मंत्री (Nirmala Sitharaman) ने कहा, 'सामान्य रूप से मध्यम वर्ग के पास कमाई का कोई न कोई साधन होता है. वह गरीब लोगों की श्रेणी में नहीं आता. वह फ्लैट खरीद सकता है. वह गाड़ी खरीद सकता है. इस वर्ग को अफोर्डेबल होम खरीदने के लिए टैक्स में छूट दी गई है. उनके बच्चों को पढ़ाने के लिए हायर एजुकेशन और अस्पताल खोल रही है. क्या ये सब मिडिल क्लास के लिए नहीं हैं. किसानों में मिडिल क्लास हैं. मिडिल क्लास के बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं, उनके लिए भी LRS-Liberalised Remittance Scheme स्कीम लॉन्च की गई. 2.5 करोड़ रुपए तक ट्रांसफर कर सकते हैं. मेडिकल कॉलेज खोल रहे हैं वो भी तो मिडिल क्लास के लिए है. देशभर में इन्वेस्टमेंट होती है. देश में जो डेवलपमेंट हो रहा है, उसको दरकिनार करना मुश्किल है. ईमानदार टैक्सपेयर्स के लिए हमेशा दिल में इजजत है और हर बजट में इसका जिक्र भी करते हैं.
आज हर गरीब हमारे भाई-बहन नहीं है. शौचालय, मकान, गैस, हर घर तक नल, उनका भी ध्यान रखना है. हमारे परिवार में भी ऐसे लोग हैं. सुपर रिच के लिए हम क्या कर रहे हैं. ये हमारे टैक्स से हो रही है. आज बिजली का सप्लाई 24*7 करना, इंडस्ट्री को बिजली देना और उसका वहां आकर इंडस्ट्री लगाना, ये सब हम रिच के लिए कर रहे हैं क्या? सबको रोजगार मिले, ये सब इसलिए कर रहे हैं. एक टाइम था जब देश में बिजली का ग्रिड फेल हो गया. पूरी दुनिया हमसे पूछ रही थी कि इमरजिंग इकोनॉमी में ये सब हो रहा है. उससे निकलकर हम एनर्जी सरप्लस की तरफ बढ़े तो ये सब कैसे मुमकिन हुआ. आज के टैक्स रेट की बात कर रहे हैं. एक वक्त था जब 40%, 90% तक टैक्स दे रहे थे. उससे निकलकर हम यहां तक पहुंचे हैं.
सवाल- ईमानदार टैक्सपेयर्स का आपने हमेशा जिक्र किया. टैक्स कलेक्शन का जो आंकड़ा है वो काफी बेहतर है, लेकिन लोग मान रहे हैं कि अगर टैक्स कम होगा तो ज्यादा टैक्सपेयर आकर टैक्स देंगे और उससे कलेक्शन पर भी कोई असर नहीं होगा. क्या ऐसा कुछ सोच रहे हैं?
वित्त मंत्री (Nirmala Sitharaman) ने कहा, 'आपका सुझाव सही है. हमने टैक्स बढ़ाने के लिए उसकी दरें बढ़ाने की नीति नहीं अपनाई है. आप GST को देखिए. GST काउंसिल की बैठक में कई लोगों ने सुझाव दिया कि राजस्व बढ़ाने के लिए टैक्स की दरें बढ़ाई जाएं. लेकिन हमने इस पर सख्ती से इनकार कर दिया. कहा कि अफसर राजस्व बढ़ाने के लिए दूसरे तरीके निकालें. मंत्रालय की कार्यप्रणाली को आसान किया जाए, जिससे लोग स्वेच्छा से आगे आकर खुद ही कर का भुगतान कर सकें.'
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सवाल- बजट बना करता था रूलिंग पार्टी भी काफी हावी होती थी. चुनावी टूल होता था. लोगों को खुश करने की कोशिश की जाती थी. लेकिन, इस बार के बजट में कोई चुनावी बजट नहीं था. क्या ये ट्रूली न्यू ऐज बजट, जिसमें चुनाव को कंसीडर नहीं करेंगे?
वित्त मंत्री ने कहा हर बार कुछ न कुछ ऐसा होता है. पिछली बार ये आशंका जताई गई कि कोविड टैक्स लगेगा. सरकार के पास पैसा नहीं है, कहां से आएगा पैसा. इतनी सारी रियायतें देना कहां से देगी सरकार. इस बार ये अंदाजा लगाया कि पांच राज्यों में चुनाव हैं, खासकर यूपी जैसे राज्य तो चुनावी बजट होगा. मैं इसमें एक बात जोड़ना चाहती हूं.. पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कह रही हूं.. आप प्रधानमंत्री मोदी को समझ नहीं सकते. पिछले साल उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि आप टैक्स नहीं बढ़ाओगी. सबका ध्यान रखना होगा. 5 लाख करोड़ रुपए तक का सॉवरेन गारंटी स्कीम के तहत MSME को लोन. इतने बिजनेस खड़े हो पाए. महामारी के दौर में भी खड़े रहे पाए. कोई कोविड टैक्स नहीं. एक लॉन्ग टर्म बजट दिया गया. जिसमें स्टैबिलिटी, प्रिडक्टिबिलिटी की जरूरत थी. कोई टैक्स रेट नहीं बढ़ाया गया. स्टेबल रखा सबकुछ. बजट में ट्रांसपेरेंसी का खास ध्यान दिया गया. UPA के समय में बजट का कैरेक्टर ये था कि ऊपर कुछ और नीचे कुछ और. लेकिन, हमने जो दिखता है वो ही है बजट. ट्रांसपैरेंट बजट की बात है.
सवाल- हमने ये भी देखा अब टैब से पढ़कर बोलती है. क्या ये न्यू ऐज चेंज. क्या इसके पीछे कोई खास वजह या ये डिजिटल बजट की तरफ एक ट्रेंड सेट करने जैसा है?
वित्त मंत्री ने कहा पिछले साल से ये शुरू हुआ है. हमने सोचा कि ये सही वक्त है पेपरलेस बजट लाने का. फाइल आजकल पेपरलेस चल रही हैं. कोरोना के वक्त काफी उपयोगी रहा. कोरोना की शुरुआत में तो लोग करेंसी को हाथ लगाने से डर रहे थे. बैंकों में नकदी को सैनेटाइज किया गया. उस वक्त हमने सोचा कि इसको डिजिटल करना ज्यादा फायदेमंद है. इसका फायदा भी मिला. वर्क फ्रॉम होम जब होता है तो डिजिटली काफी मदद मिलती है. किसान भी आज के वक्त में QR कोड रखता है. जब वो कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं. अब हर काम में डिजिटल होना एक जरूरत और न्यू नॉर्मल बन गया है. अगर हमारे देश को आगे बढ़ना है तो हमें डिजिटलाइज इकॉनॉमी की ओर आगे बढ़ना ही होगा. आप टैबलेट से बजट पढ़ने को इसका एक प्रतीक कह सकते हैं.
सवाल- बजट का ड्रिल रहता है. आपकी पार्टी बोलती आज तक का सबसे अच्छा बजट है. लेकिन, कुछ देर बाद राहुल गांधी आ जाते हैं. वो बोलते हैं कि एंटी फार्मर बजट हैं. एंटी पूअर बजट है, मिडिल क्लास के लिए कुछ नहीं है. और धीरे-धीरे डिबेट होने लगती है. इसके बाद सरकार सफाई देती है. क्या बजट बनाने से पहले इसकी तैयारी रखते हैं?
वित्त मंत्री ने कहा- हम तैयार रहते हैं कि बजट को एक्सप्लेन करने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं. मुझे किसी ने Rk Laksham के कार्टून भेजा था, जो 1985-86 के वक्त का है. उसमें दिखता है कि मीडिया जाकर किसी नेता से पूछता है. कार्टून में आम आदमी भी साइड में खड़ा होकर सुनता है. आज भी वैसा ही है. उस वक्त भी बोला जाता था कि आम आदमी के लिए कुछ नहीं है. मिडिल क्लास के लिए कुछ नहीं है. कुछ इश्यू हर बजट के बाद आते हैं. अब जब इस बजट के बारे में बात करते हैं. किसानों के लिए इतने सारी योजना हैं, अब सीधे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के जरिए सीधे अकाउंट में पैसा डालते हैं. इससे करीब 10 करोड़ किसानों को फायदा मिल रहा है. उनके फर्टिलाइजर के दाम दुनिया में कुछ भी हो लेकिन इसका बोझ भी हमने किसानों पर नहीं डाला. टेक्नोलॉजी को एग्रीकल्चर में लाए. ड्रोन के जरिए फर्टिलाइजर स्प्रे किया गया. एरिया सर्वे किया गया. इससे अंदाजा लगता है कि हर हेक्टेयर में कितना खर्च आने वाला है. रेंट पर ट्रैक्टर देने जैसे प्रावधान कर रहे हैं. ऐसे नए तरीके से एग्रीकल्चर को सपोर्ट कर रहे हैं.
कृषि कानून जो वापस लिए गए उसकी वजह से ब्रेक लगा. नहीं तो किसानों की आय को दोगुना करने जैसे काम आसानी से हो सकते थे?
वित्त मंत्री ने कहा- वो भी एक तरीका था, लेकिन हमारे पास दूसरे भी विकल्प मौजूद हैं. जुलाई 2019 के बजट में ये कहा था- अन्नदाता, उर्जादाता क्यों नहीं बने? हम उन्हें सोलर उपकरण दिए. सोलर पंप दिए. एग्रो फॉर्म, Beekeeping, जैसे प्रावधान किए. सोलर के जरिए बिजली बनाकर भी दे सकते थे. फूड प्रोसेसिंग के जरिए प्रावधान किए जा रहे हैं. छोटे किसानों को पता है पीएम मोदी उनके लिए काफी कुछ कर रहे हैं. इसका पॉजिटिव इम्पैक्ट दिखेगा. चुनावी राज्यों में भी किसान कनेक्ट करेंगे.
सवाल- कॉरपोरेट इंडिया काफी खुश है. लेकिन, क्या आपको लगता है कि उनके अंदर अब वो कॉन्फिडेंस आया है कि वो आगे आकर प्लांट लगाएंगे, इन्वेस्टमेंट होगा?
वित्त मंत्री के मुताबिक, वो कॉन्फिडेंस अब निश्चित तौर पर आया है. कॉरपोरेट टैक्स के घटने से भी कॉन्फिडेंस आया है. लेकिन, कोविड की दूसरी लहर आ गई. हालांकि, यह उतनी भयवह नहीं रही. यहां भी मैं टू-प्लस-टू देख रही हूं. अब FDI आ रही है. लोग जुड़ना चाहते हैं. मर्जर, अधिग्रहण का नंबर लगातार बढ़ता जा रहा है. विस्तार योजना की क्षमता बढ़ रही है. स्मॉल सेविंग्स स्कीम को लेकर सिटीजन के मन में हमेशा रहता है. लेकिन, अगर एफडी में नहीं कमा पा रहे तो लोग स्टॉक मार्केट की तरफ रुख कर रहे हैं. रिटेल इन्वेस्टर आ रहे हैं. डीमैट अकाउंट रिकॉर्ड खुले हैं. इंडस्ट्री, इंडिविजुअल में कॉन्फिडेंस बढ़ा है. मैं इंडस्ट्री से बात करती हूं. जो लोग महामारी के चलते वापस करे, वो वापस लौटे, कुछ नए एम्प्लॉयर के पास चले गए. कुछ ज्यादा पैसा लेकर दूसरे काम में लग गए. रीसैट के लिए अब समझते हैं कि इंडस्ट्री भी स्किल सेट के लिए ट्रेनिंग प्लान कर रही हैं. तो आने वाले समय में वहां भी बेहतर होता दिखेगा.
सवाल- आप उम्मीद कर रही हैं कि हमारी रेटिंग अच्छी होंगी? क्या रेटिंग एजेंसी अच्छी रेटिंग देंगी?
वित्त मंत्री ने कहा कि रेटिंग एजेंसियों को अच्छी रेटिंग देनी चाहिए. पिछली बार भी ये प्रेशर था कि रेटिंग एजेंसी का परवाह नहीं करो और खर्च करो. ये बात ठीक है. लेकिन, हमारे चैलेंज को समझकर कैसे उन्हें बैलेंस करना है, इफेक्टिव तरीके से पैसे को निचले तबके तक पहुंचाना चाहिए. कई स्कीम्स के जरिए हमने ऐसा किया. हमने बैलेंस करने की कोशिश की है.
सवाल-विपक्ष के दो आरोप लगातार हावी रहे हैं, खासकर ग्राउंड लेवल पर महंगाई और बेरोजगारी, इस पर क्या है रहता है?
डेटा एक विषय है, लेकिन सचमुच हमारे देश में महंगाई के हार्डकोर 3-4 मुद्दे हमेशा रहे. उसके लिए हम काम कर रहे हैं. कुछ साल में सब पर संज्ञान लिया जाएगा. सब्जियों-फल के मामले में अभी तक हम सफलतापूर्वक कुछ नहीं कर पाए. इस देश में जितना दाल हमें चाहिए, उतना उत्पादन नहीं है. और क्रॉप आने से पहले प्राइस बढ़ जाता है. वो गैप फिल करने के लिए इंपोर्ट करना पड़ता है. इंपोर्ट में फैसला लेते वक्त काफी मुश्किल होता है. इंपोर्ट आप कंज्यूमर को ध्यान में रखते हुए करना है. क्योंकि, वो दाम बढ़ रहा है तो उस पर बोझ न बढ़े. लेकिन, दूसरी तरफ MSP लेकर किसान दूसरी क्रॉप की तरफ देखते हैं क्योंकि, उसको उतना दाम नहीं मिल रहा. दाल उत्पादन में किसान के मन में रहता है कि सरकार कंज्यूमर को ध्यान रखते हुए इंपोर्ट कर देगी, जिससे मेरा प्राइस एकदम गिर जाएगा. तो हमें बैलेंस करना होता है. दालों की कमी पूरी करने के लिए प्रधानमंत्री जी अभी किसानों से दलहन और तिलहन में उत्पदान करने को कह रहे हैं तो इससे आत्मनिर्भरता आएगी. इंपोर्ट पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा.
सवाल- यूथ को सरकारी नौकरी चाहिए, बेरोजगारी का मुद्दा भी वैसा ही है?
निर्मला सीतारमण ने कहा जब स्टूडेंट्स कॉलेज से निकलकर आता है उसको ट्रेनिंग चाहिए होती है. छात्रों को वोकेशनल ट्रेनिंग देने पर फोकस है. स्किल देने की कोशिश की गई है. इसके लिए रोजगार दिलाने के लिए श्रम पोर्टल बनाया गया है. स्किल बनाकर उन्हें अच्छे जॉब के लिए तैयार किया जा रहा है.
सवाल- प्रवक्ता से वित्त मंत्री बनने पर काम मुश्किल लगा?
निर्मला सीतारमण ने कहा अब मीडिया से बातचीत कम हो गई है. बतौर वित्त मंत्री कुछ कहने से पहले काफी देखना होता है. बात को काफी मिसइंटरप्रेट हो जाता है.
सवाल- सरकार ने नीति बनाकर बोल्ड स्टेप था. हम प्राइवेटाइजेशन कर रहे हैं. मुश्किलें आई, लेकिन क्या अब थॉट प्रोसेस है?
निर्मला सीतारमण ने कहा पिछले बजट में जो कमिट किया वो कंटिन्यू हो रही है. विनिवेश के किसी फैसले से पीछे नहीं हटे हैं. अगर हम घर या जमीन बेचना चाहते थे तो हम कितना सोचते हैं. काफी कुछ सोचना पड़ता है. CAG, CVC इन सबकी निगरानी होती है. विनिवेश औने-पौने दामों पर नहीं होगा. एयर इंडिया का विनिवेश पारदर्शी तरीके से किया गया. हर कंपनी का विनिवेश सोच समझकर किया जाएगा. PSUs लोगों की संपत्ति है.
09:29 PM IST