Repo rate hike: रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक (RBI MPC Meeting) बुधवार (28 सितंबर) से शुरू होने जा रही है. खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी पर है. केंद्रीय बैंक के सामने महंगाई पर काबू पाना सबसे बड़ी चुनौती है. बाजार से लिक्विडिटी कम करना और डिमांड को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत दरों को बढ़ाना एक कारगर टूल है. महंगाई की यह स्थिति कमोबेश दुनियाभर में है और सभी देशों के केंद्रीय बैंक आक्रामक तरीके से ब्‍याज दरें बढ़ा रहे हैं. अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्‍याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी है. इसके बाद से दुनियाभर के बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली. वहीं, डॉलर में जबरदस्‍त मजबूती दिखाई दी. RBI शुक्रवार (30 सितंबर) को पॉलिसी का एलान करेगा. मार्केट के जानकार मानते हैं कि रिजर्व बैंक लगातार चौथी बार रेपो रेट (Repo Rate) में इजाफा कर सकता है. मई 2022 से अब तक रिजर्व बैंक रेपो रेट में 140 बेसिस प्‍वाइंट (1.40 फीसदी) का इजाफा कर चुका है.

रेपो रेट में 0.50% का होगा इजाफा 

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रिसर्च फर्म एडलवाइजस सिक्‍युरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी पर है. महंगाई खासकर खाने-पीने की चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाना मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि इस साल उत्‍पादन में कमी का अनुमान जताया जा रहा है. वहीं, यूएस फेड कमजोर ग्रोथ के आंकड़ों के बावजूद महंगाई पर सख्‍त बना हुआ है. इसका असर भारत समेत दुनियाभर में हो रहा है. ऐसे में RBI भी एक बार फिर रेपो रेट में 50 बेसिस प्‍वाइंट का इजाफा कर सकता है और आगे भी दरों में बढ़ोतरी बनी रह सकती है. 

रिपोर्ट का कहना है ब्‍याज दरों के इस अनुमान के बीच मॉनेटरी पॉलिसी के एलान में लिक्विडिटी पर आरबीआई की कमेंट्री पर नजर रहेगी. क्‍योंकि LAF (लिक्विडिटी एडजस्‍टमेंट फैसेलिटी) सरप्‍लस लगभग खत्‍म हो चुका है. आरबीआई मैक्रो स्‍टैबिलिटी (इन्‍फ्लेशन और रुपये) को प्राथमिकता दे रहा है. हालांकि, इससे ग्रोथ को झटका लगने की संभावना है, क्योंकि इकोनॉमिक रिकवरी अभी भी शुरुआती दौर में है. 

SBI रिसर्च ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा कि लिक्विडिटी की मौजूदा स्थिति डेफिसिट मोड में है. करीब 40 महीने बाद लिक्विडिटी डेफिसिटी देखा जा रहा है. फाइनेंशियल सिस्‍टम में लिक्विडिटी इनफ्लो पॉलिसी और नॉन-पॉलिसी वजहों से हो सकता है. पॉलिसी से जुड़े फैसलों में रिजर्व, ओपन मार्केट ऑपरेशंस में बदलाव जैसे कदम देखने को मिल सकते हैं. वहीं, नॉन-पॉलिसी कदमों में विदेशी मुद्रा भंडार, सरकारी नकद बैलेंस और सर्कुलेशन में करेंसी का स्‍तर अहम है. 

एसबीआई रिसर्च का कहना है कि मॉनेटरी पॉलिसी समीक्षा में रिजर्व बैंक रेपो रेट में आधा फीसदी का इजाफा कर सकता है. महंगाई के दबाव को देखते हुए रिजर्व बैंक का यह कदम देखने को मिल सकता है. नीतिगत दरों में बढ़ोतरी के इस साइकिल में पीक रेपो रेट 6.25 फीसदी हो सकता है. इसका मतलब कि दिसंबर की पॉलिसी में 35 बेसिस प्‍वाइंट का फाइनल रेट हाइक देखने को मिल सकता है. अभी रेपो रेट 5.40 फीसदी पर है. रिजर्व बैंक ने मई 2022 में 40 बेसिस प्‍वाइंट, जून और अगस्‍त में 50-50 बेसिस प्‍वाइंट का इजाफा रेपो रेट में किया था. अगर इस बार रेपो रेट और आधा फीसदी बढ़ता है, तो तीन साल के हाई पर 5.9 फीसदी पर पहुंच सकता है.

ग्रोथ के सामने 2 बड़े चैलेंज समझिये

एडलवाइस की रिपोर्ट कहती है, महंगाई से लड़ने के लिए फेड के मजबूत संकल्प का असर दुनिया के बड़े हिस्से में पेमेंट डायनेमिक्‍स के संतुलन पर पड़ रहा है. फेड की तरफ से आक्रामक तरीके से ब्‍याज दरों में बढ़ोतरी के चलते डॉलर को लगातार मजबूत हो रहा है. डॉलर इंडेकस (DXY) 20 साल के हाई पर पहुंच गया है. इसके चलते भारतीय रुपये समेत दुनियाभर की करेंसी लगातार कमजोर हो रही हैं. हाल के दिनों में रुपया 81 के लेवल को तोड़ चुका है. भारत के नजरिए से इस चुनौती को देखें, तो भारत का एक्‍सटर्नल डेफिसिट काफी बढ़ गया है और महंगाई भी कम्‍फर्ट जोन से ऊपर है. इसके साथ-साथ रिजर्व बैंक ग्रोथ की बजाय मैक्रो स्‍टैबिलिटी/एक्‍सचेंज रेट को स्‍टैबिलिटी देने को प्राथमिकता दे रहा है. इसके लिए वह विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ ब्‍याज दरों में लगातार इजाफा कर रहा है. 

मौजूदा हालात में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की विकास दर (GDP Growth Rate) दो तरह के चुनौतियों ग्‍लोबल स्‍लोडाउन और घरेलू स्‍तर पर सख्‍त मौद्रिक नीति से जूझ रही है. आर्थिक आंकड़ों में ध्‍यान देने वाली बात यह है कि निर्यात में सुस्‍ती दिखाई देने लगी है, जिसका सीधा असर भारत के इंडस्ट्रियल प्रोडक्‍शन पर देखने को मिल सकता है. जुलाई के महीने में औद्योगिक उत्पादन ग्रोथ रेट (IIP) चार महीने के निचले स्तर पर 2.4 फीसदी रहा. मैन्युफैक्चरिंग, बिजली और खनन जैसे सेक्टरों में खराब प्रदर्शन के कारण देश में औद्योगिक उत्पादन (IIP) की वृद्धि दर सुस्त पड़ी. एक साल पहले जुलाई, 2021 के दौरान औद्योगिक उत्पादन 11.5 फीसदी बढ़ा था.

वहीं दूसरी ओर, विदेशी मुद्रा भंडार के आक्रामक इस्‍तेमाल से लिक्विडटी सरप्‍लस खत्‍म कर दिया है. LAF सरप्‍लस में तेज गिरावट देखने को मिली है. यह 8 लाख करोड़ से घटकर लगभग शून्‍य हो गया है. अगर लिक्विडिटी के मोर्चे पर यही स्थिति बनी रहती है, तो क्रेडिट के मोर्चे पर रिस्‍क हो सकता है. 

महंगाई के मोर्चे पर देखें, गेहूं और चावल के स्‍टॉक में कमी के बीच हाल के दिनों में खाने की वस्‍तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ना चिंताजनक है. सरकार की ओर से खाद्यान्‍य उत्‍पादन के अग्रिम अनुमान में भी दालों और चालव के उत्‍पादन में गिरावट का अनुमान जताया गया है. मानसून कमजोर रहने के चलते इस साल खरीफ सीजन में धान के रकबे में कमी आई है. ऐसे में चावल उत्पादन भी 60-70 लाख टन कम रहने की आशंका है. इन आशंकाओं के बीच चावल की कीमत में उछाल आ सकता है.

इसके बावजूद सर्विसेज की महंगाई भी बढ़ी रही है. आगे की बात करें, तो डिमांड कम होने से नॉन-फूड महंगाई में कमी आएगी. फिर भी नियर टर्म में ग्रोथ-इन्‍फ्लेशन डायनेमिक्‍स एक-दूसरे के विपरित बना रहेगा. इस साल अगस्‍त महीने में खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी पर है. यह रिजर्व बैंक के अनुमान से ज्‍यादा है. ऐसे में रिजर्व बैंक महंगाई के इस आंकड़े पर अपनी बाय-मंथली मॉनेटरी पॉलिसी में जरूर गौर करेगा.