टैक्स चोरी करने वालों और लोन लेकर न चुकाने वालों को अब सरकार ने धर्म की दुहाई दी है. संसद में गुरुवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि सभी धर्मों में लोन की अदायगी को आवश्यक माना गया है और भारतीय संस्कृति में धर्म के महत्व को देखते हुए अगर टैक्स चोरी और विलफुल डिफाल्ट की समस्या को धर्म से जोड़ा जाए तो ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है. आर्थिक सर्वे के मुताबिक, 'व्यवहारात्मक अर्थ व्यवस्था के सिद्धांत को आध्यात्मिक और धार्मिक मानदंड के साथ जोड़े जाने की आवश्यकता है, जिससे कि देश में टैक्स चोरी और विलफुल डिफाल्ट में कमी आ सके.'

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आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 'हिंदू धर्म में कर्ज न चुकाना पाप है. शास्त्र कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति ने ऋण का भुगतान नहीं किया है और ऋणग्रस्त अवस्था में उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसकी आत्मा को बुरे परिणामों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए यह उनके बच्चों का कर्तव्य है कि वे उन्हें इस तरह की बुराइयों से बचाएं.' इसके साथ ही सर्वे में ये अपेक्षा की गई है कि जो लोग कर्ज नहीं चुका पाए हैं, उनके बच्चे उनका कर्ज चुकाएं.

आर्थिक समीक्षा में हिंदू धर्म के साथ ही इस्लाम और ईसाई धर्म का भी उदाहरण दिया गया है. समीक्षा के मुताबिक, 'इस्लाम के तहत पैगंबर मुहम्मद ने भी वकालत की है- या अल्लाह ताला मैं पाप और भारी ऋण से बचने के लिए तुम्हारे पास शरण चाहता हूं.' सर्वे के मुताबिक, 'सभी तरह के धन का उपयोग कर्ज चुकाने में किया जा सकता है और यदि ये पूरा न पड़े तो कर्ज लेने वाले का एक या अधिक वारिस स्वेच्छा से उस कर्ज का भुगतान कर सकते हैं.'

सर्वे में बाइबिल के हवाले से कहा गया है, 'दूसरों से प्रेम करने के ऋण के अलावा किसी भी प्रकार के ऋण को बाकी न रहने दें. दुष्ट उधार लेता है और चुकाता नहीं है, लेकिन धर्मी दया दिखाता है और देता है.' इस तरह आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया है कि लोगों की धार्मिक आस्थाओं की दुहाई देकर टैक्स और लोन वसूली को बढ़ाया जा सकता है.