वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को कहा कि नोटबंदी से औपचारिक अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ और कर आधार भी बढ़ा. इससे सरकार के पास गरीबों के हित में काम करने और बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध हुए. नोटबंदी की दूसरी बरसी पर एक फेसबुक पोस्ट में जेटली ने लिखा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के पहले चार साल में आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या बढ़कर 6.86 करोड़ हो गई जबकि मई 2014 यह संख्या 3.8 करोड़ थी.

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‘नोटबंदी का प्रभाव’ शीर्षक से लिखे अपने इस लेख में जेटली ने कहा है कि इस सरकार के पांच साल पूरे होने तक, हम करदाताओं की संख्या को दोगुना कर चुके होंगे. उन्होंने कहा कि नवंबर 2016 में उस समय चलने वाले 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का परिणाम यहु हुआ कि ‘हमारी अर्थव्यवस्था अधिक औपचारिक हुई, अधिक राजस्व मिला, गरीबों के लिए अधिक संसाधन मिले, बुनियादी ढांचा बेहतर हुआ और हमारे नागरिकों का जीवन स्तर भी बेहतर हुआ है.’

वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि वस्‍तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने से कर चोरी दिन-ब-दिन मुश्किल होती जा रही है. जीएसटी के बाद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में अप्रत्यक्ष कर 5.4 प्रतिशत बढ़ा है जबकि 2014-15 में यह 4.4 प्रतिशत था. नोटबंदी के दौरान, लगभग पूरी नकदी के बैंकों में लौट आने की आलोचना पर जेटली ने कहा कि ऐसा कहने वालों की ‘जानकारी गलत’ है. नोटबंदी का लक्ष्य मुद्रा की सरकार द्वारा जब्ती किया जाना नहीं था.

उन्होंने कहा कि व्यापक अर्थों में इसका (नोटबंदी) लक्ष्य औपचारिक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना और करदाताओं की संख्या बढ़ाना था. देश को नकदी से डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ाने के लिए व्यवस्था को हिलाने की जरूरत थी. स्वाभाविक तौर पर इसका परिणाम उच्च कर राजस्व और उच्च कर आधार के रूप में दिखा है.

उस समय 15.41 लाख करोड़ रुपये के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट चलन में थे. इसमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये यानी 99.3 प्रतिशत नोट बैंकिंग व्यवस्था में वापस लौट आए. इसका अर्थ यह हुआ कि मात्र 10,720 करोड़ रुपये ही बैंकिंग प्रणाली में नहीं लौटे. नोटबंदी के बाद पुराने नोटों को बैंकों में जमा करने की सुविधा दी गई और असाधारण मात्रा में आयी जमा कर जांच के दायरे में आई. जेटली ने कहा कि नोटबंदी ने नकदीधारकों को नकदी बैंक में जमा करने के लिए मजबूर किया.

उन्होंने कहा कि भारी मात्रा में नकदी जमा होने और उसके मालिकों की पहचान होने से 17.42 लाख खाता धारकों को संदिग्ध पाया गया. इनसे गैर-आक्रामक तरीके से ऑनलाइन प्रतिक्रिया मांगी गई. उन्होंने कहा कि उल्लंघनकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई. बड़ी मात्रा में जमा होने से बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ी. इसमें से एक बड़ी राशि आगे निवेश के लिए म्यूचुअल फंड को हस्तांतरित की गई. यह सब आधिकारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गया.

उन्होंने कहा कि इससे घरेलू स्तर पर तैयार की गई यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) और रुपे कार्ड की पहुंच बढ़ी और यह डेबिट या क्रेडिट कार्ड से किए जाने वाले कुल लेन-देन के 65 प्रतिशत तक पहुंच गई है. जेटली ने कहा कि 2017-18 में 6.86 करोड़ कर रिटर्न दाखिल हुए जो पिछले साल की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है.

इस साल 31 अक्टूबर 2018 तक 5.99 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए जो पिछले साल की इसी तिथि तक की तुलना में 54.33 प्रतिशत अधिक है. इस साल अब तक 86.35 लाख नए करदाता पंजीकृत हुए हैं. आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी सरकार के दूरगामी दृष्टिकोण और उसकी बड़े बुनियादी सुधार लाने की क्षमता को दिखाते हैं.

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा गहरे होते जा रहे हैं नोटबंदी के घाव

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के दो साल पूरे होने के मौके पर नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर प्रहार किया और कहा कि अर्थव्यवस्था की तबाही' वाले इस कदम का असर अब स्पष्ट हो चुका है तथा इसके घाव गहरे होते जा रहे हैं. सिंह ने एक बयान में यह भी कहा कि मोदी सरकार को अब ऐसा कोई आर्थिक कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो.

उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में त्रुटिपूर्ण ढंग से और सही तरीके से विचार किए बिना नोटबंदी का कदम उठाया था. आज उसके दो साल पूरे हो गए. नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो कहर बरपा, वह अब सबके सामने है. नोटबंदी ने हर व्यक्ति को प्रभावित किया, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, पेशे या संप्रदाय का हो.’

सिंह ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि वक्त सभी जख्मों को भर देता है लेकिन नोटबंदी के जख्म-दिन-ब दिन और गहरे होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश के मझोले और छोटे कारोबार अब भी नोटबंदी की मार से उबर नहीं पाए हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि नोटबंदी से जीडीपी में गिरावट आई, उसके और भी असर देखे जा रहे हैं. छोटे और मझोले कारोबार भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं जिसे नोटबंदी ने पूरी तरह से तोड़ दिया. अर्थव्यवस्था लगातार जूझती दिखाई पड़ रही है जिसका बुरा असर रोजगार पर पड़ रहा है. युवाओं को नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं. बुनियादी ढांचे के लिए दिए जाने वाले कर्ज और बैंकों की गैर-वित्तीय सेवाओं पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है.

उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण रुपए का स्तर गिरा है जिससे वृहद आर्थिक आंकड़े भी प्रभावित हुए हैं. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा की थी जिसके तहत, उन दिनों चल रहे 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए थे.