Crude Oil Price: $75 के नीचे फिसला ब्रेंट क्रूड, 15 महीने के निचले स्तर पर रेट; पढ़िए क्या है Credit Suisse कनेक्शन
Crude Oil Price: कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट देखी जा रही है. ब्रेंट क्रूड का भाव 75 डॉलर प्रति बैरल के नीचे आ गया है जो 15 महीने का निचला स्तर है. आइए इस गिरावट के प्रमुख कारण को समझते हैं.
Crude Oil Price: कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट देखी जा रही है. इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल 15 महीने के निचले स्तर पर आ गया है. ऑयल प्राइस की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा के मुताबिक, Crude Oil की कीमत में करीब 5 फीसदी की गिरावट देखी जा रही है और यह 74 डॉलर प्रति बैरल के नीचे पहुंच गया है. WTI क्रूड का भाव भी करीब 5 फीसदी की गिरावट के साथ 68 डॉलर के नीचे आ गया है. ब्रेंट क्रूड दिसंबर 2021 के बाद पहली बार 75 डॉलर के नीचे फिसला है.
Crude Oil में गिरावट के 2 प्रमुख कारण क्या हैं?
Crude Oil की कीमत में गिरावट के दो प्रमुख कारण हैं. ऑयल रिजर्व काफी बढ़ गया है. रूस की तरफ से बाजार में क्रूड पंप किया जा रहा है. दूसरी तरफ अमेरिका में बैंकिंग क्राइसिस के डर से दुनिया में मंदी की आशंका बढ़ गई है. ताजा मामला स्विटजरलैंड के ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बैंक Credit Suisse से जुड़ा है. पिछले कई महीनों से यह बैंक परेशानी का सामना कर रहा था. अब इसके सबसे बड़े निवेशक-Saudi National Bank ने कहा कि वह इसमें अपनी हिस्सेदारी और नहीं बढ़ाएगा. इस खबर के सामने आने के बाद क्रेडिट सुईस के शेयरों में 30 फीसदी की बड़ी गिरावट आई है. यह एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है.
चीन की तरफ से मांग को लेकर सेंटिमेंट कमजोर हुआ
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, क्रेडिट सुईस को लेकर जो ताजा खबर आई है, उसके बाद ग्लोबल मार्केट में तहलका मच गया है. पहले यह उम्मीद की जा रही थी कि दुनिया के सबसे बड़ ऑयल कंज्यूमर चीन की तरफ से मांग में मजबूती मिलेगी, लेकिन बैंकिंग क्राइसिस के कारण फिलहाल सेंटिमेंट कमजोर हो गया है. यही वजह है कि क्रूड ऑयल डिमांड को लेकर कमजोर आउटलुक के कारण कीमत में बड़ी गिरावट आई है.
कच्चे तेल का ग्लोबल स्टोरेज 18 महीने के हाई पर
बता दें कि 2008-2009 में जो फाइनेंशियल क्राइसिस आई थी उस समय महज 5 महीने के भीतर क्रूड का भाव 148 डॉलर से 32 डॉलर तक फिसल गया था. इसके अलावा इंटरनेशनल एनर्जी एक्सचेंज यानी IEA ने कहा कि क्रूड का ग्लोबल स्टोरेज 18 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. ऐसा डिमांड में आई गिरावट के कारण है.non-OPEC देश भी ऑयल सप्लाई बढ़ा रहे हैं जिसके कारण भी स्टोरेज बढ़ गया है और कीमत पर दबाव भी आया है.
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